बजट 2021 के बीच गाज़ीपुर बॉर्डर हुआ सील,मोदी सरकार “पूंजीपतियों की गुलाम”
किसान आंदोलन के बीच साल 2021 का बजट पेश किया गया है. एक तरफ किसान आंदोलन कर रहे है…किसानों की मांगे नही सुनी जा रही है. लेकिन वहीं दूसरी तरफ साल 2021 का बजट डिजिटल पेश किया गया है. इससे कई सवाल उठ रहे है क्योंकि इस बार बजट कॉपी कागज पर प्रिंट नहीं हुआ है. इस बार वित्त मंत्री ने डिजिटल तरीके से पेश किया है.
जिस हिसाब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डिजिटल इंडिया का स्लोगन देते है लेकिन युवाओं को बेरोजगारी की सड़क पर घूमने के लिए छोड़ देते है. जैसा कि हम सभी जानते है पिछले दो साल से देश की अर्थव्यवस्था दलदल में धसती चली गई..देश की जीडीपी गिर गई..लेकिन साहब को बस कॉर्पोरेट की जेब भरनी है लेकिन साहब जी को किसानों को लेकर कोई हमदर्दी नहीं है…जिस तरीके से आज बजट सत्र पेश किया गया .उसे लेकर ट्वीटर पर काफी आलोचना की जा रही है.
जिसपर कांग्रेस नेता अलका लांबा लिखती है कि एमएसपी व्यवस्था में बदलाव लाएगी सरकार पर कानून नहीं लाएगी ऐसा करने से पूंजीपति मित्रों को नुकसान जो हो सकता है..दूसरा ट्वीट वो लिखती है कि पहले टैक्स चुराने वालों की 6 साल पुरानी फाइलें भी खंगाली जाती थी,अब मात्र 3साल पुरानी फाइलें ही खंगाली जायेगी…क्यों कि टैक्स चोरों ने 2016 में ही 4 साल पहले नोटबंदी के दौरान ही अपने काले धन को सफ़ेद कराने के लिए पिछले दरवाज़े से BJP को खूब चंदा दिया.एयरपोर्ट ले लो… सड़के, बिजली ट्रांसमिशन लाइन ले लो…रेलवे का डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर के हिस्से, वेयरहाउस, बंदरगाह ले लो… इंडियन ऑयल की पाइप लाइन, स्टेडियम भी ले लो…इसका साफ मतलब की सबका निजिकरण तय हो चुका है..लेकिन इस तमाम मुद्दे पर किसानों ने क्या कहां वो जरा सुनते है फिर आगे बढ़ेगे.
आपने सुना किस तरह से किसान इस बजट सत्र को लेकर विरोध जता रहे है..अपना गुस्सा जाहिर कर रहे है सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे है…साल 2021 के बजट से ये साफ है कि मोदी सरकार “पूंजीपतियों की गुलाम” है।सरकार ने देश की संपत्तियों को अंबानी – अदानी को सौंपने की तैयारी कर ली है। किसान, नौजवान, ग़रीब, मजदूर, मध्यम वर्ग से पूंजीपतियों वाली सरकार का कोई सरोकार नहीं है। यह बजट देश को कॉरपोरेट का ‘बधुवा मजदूर’ बना देगा।अब आपको बारिकी से बताती हूं…बजट पर सिर्फ एक संक्षिप्त टिप्पणी एफसीआई पर कर्ज बढकर 3.81 लाख करोड़ रुपये हो गया है क्योंकि सरकार अपनी देनदारी चुकता नहीं कर रही। अब तक इसे लघु बचत योजनाओं से कर्ज देकर जिंदा रखा जा रहा था। इस बार वह भी नहीं। यह एफसीआई के ताबूत में आखिरी कील ठोंकना है। इसका अर्थ है, बहुत जल्द ही, आपको पता चल जाएगा…आपको 4 महत्वपूर्ण बिदूं को बाताती हूं…
1. सरकारी खरीद और एमएसपी की समाप्ति
2. सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानि (पीडीएस) की समाप्ति
3. खाद्यान्न भंडारण और व्यापार का पूर्ण निजीकरण
4. आवश्यक वस्तु अधिनियम का अंत मजदूरों, मेहनतकश किसानों और निम्न मध्य वर्ग तीनों पर सीधा हमला!
जाहिर है आप समझ चुके होगें कि सरकार इस को कहां ढकेलना जा रही है…यानि मतलब साफ कि किसानों की मांग नहीं सुनी जा रही है…प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने बयान में कहते है कि किसान के लिए फोन कॉल खुला है..लेकिन मांगे नहीं सुन रही है…एक तरफ किसान आंदलन को जो पत्रकार कवर कर रहे है उन्हे गिरफ्तार किया जा रहा है..मैं बात कर रही हूं मंदीप पुनिया की गिरफ्तारी की…अर्णब जैसे लोग जो समाज में नफरत फैलाते है…अपनी भाषा की मर्यादा को न्य़ूज रूम में खो दते है लेकिन वो लोग बाहर घूमते है उनको कड़ी सुरक्षा में रखा जाता है…और उनपर कोई कार्रवाई नहीं होती…और एक स्वतंत्र पत्रकार की गिरफ्तारी हो जाती है..यानि मंदीप पुनिया की गिरफ्तारी ब्रिटिश हुकूमत के दौर को दर्शाता है…क्योंकि अंग्रेज बहादुर की पुलिस किसी भारतीय पत्रकार या लेखक को गिरफ्तार करती थी. फिर उसे न्यायिक हिरासत में लेकर जेल भेज दिया जाता था..लेकिन इस मुद्दे पर किसानों ने क्या कहा है..
आप इस वक्त किसानों को सुन रहे थे….जिनका साफ तौर पर कहना है कि सरकार की मिली बगत है…अब तो खबरे ये भी आ रही है कि पत्रकारों को धरना स्थल पर जाने नहीं दिया जा रहा है… खैर आगे बढ़ते है 26 जनवरी की जो हुई वो काफी निंदनिय है…लेकिन मेरा सत्ता के लोगों से कुछ सवाल है …क्या दीप सिद्धु को गिरफ्तार किया गया …क्या किसानों को आतंकवादी कहने वाले ऐसे बीजेपी विधायकों को गिरफ्तारी हुई…तो इसका साफ जवाब है नहीं…क्योंकि यहां सच को दबाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है और झूठ को फैलाया जाता है…वही मंदीप की गरिफ्तारी पर काफी लोग उनके समर्थन में उतर रहे है और रिहा कराने की मांग भी कर रहे है.
जिसपर हरियाणा के रेसलर बजरंग पुनिया लिखते है कि अर्नब के लिए इमरजेंसी सुनवाई करने वाला सुप्रीम कोर्ट मनदीप पूनिया पर मौन क्यों है? यह लोकतंत्र के अंदर ठीक नहीं है,इस बारे में कुछ सोचना चाहिए पत्रकारों की आवाज ऐसे नहीं दबानी चाहिए लोकतंत्र को तानाशाही में क्यू बदला जा रहा हैं।आम किसान मजदूर की बात सुनों उसे दबाने का काम न करें।…लिहाजा साल 21 का आज बजट भी पेश हो गया और देश की जनता को पहले बजट की तरह झुनझुना ही मिला…लेकिन अब सवाल ये है किसानों की मांग कब सुनी जाएगी…इस पर पूरे देश की नजर है.
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