डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म ही क्यों अपनाया?
By–डॉ सिद्धार्थ रामू~
यह प्रश्न अक्सर लोगों की जिज्ञासा का विषय होता है कि आखिर हिंदू धर्म छोड़ने के बाद डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने बौद्ध धम्म ही क्यों अपनाया? इसके बारे में कई तरह के भ्रम हैं. इस संदर्भ में अक्सर यह प्रश्न भी पूछा जाता है कि आखिर उन्होंने हिंदू धर्म क्यों छोड़ा और ईसाई या इस्लाम या सिख धर्म क्यों नहीं अपनाया?
आंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ने की घोषणा 1936 में ही अपने भाषण जातिभेद का उच्छेद यानी एनिहिलेशन ऑफ कास्ट में कर दी थी लेकिन उन्होंने धर्म परिवर्तन 1956 में जाकर किया. इस बीच उन्होंने सभी धर्मों का अध्ययन किया.
इन प्रश्नों का मुकम्मल जवाब डॉ. आंबेडकर के लेख ‘बुद्ध और उनके धर्म का भविष्य’ में मिलता है. इस लेख में उन्होंने बताया है कि क्यों बौद्ध धर्म उनकी नजरों में श्रेष्ठ है और क्यों यह संपूर्ण मनुष्य जाति के लिए कल्याणकारी है. मूलरूप में यह लेख अंग्रेजी में बुद्धा एंड दि फ्यूचर ऑफ हिज रिलिजन (Buddha and the Future of his Religion) नाम से यह कलकत्ता की महाबोधि सोसाइटी की मासिक पत्रिका में 1950 में प्रकाशित हुआ था. यह लेख डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर राटिंग्स एंड स्पीचेज के खंड 17 के भाग- 2 में संकलित है. इस लेख में उन्होंने विश्व में सर्वाधिक प्रचलित चार धर्मों बौद्ध धम्म, हिंदू धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम की तुलना की है. वे इन चारों धर्मों को अपनी विभिन्न कसौटियों पर कसते हैं.
सबसे पहले वे इन चारों धर्मों के संस्थापकों, पैगंबरों और अवतारों की तुलना करते हैं. वे लिखते हैं. कि ‘ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह खुद को ईश्वर का बेटा घोषित करते हैं और अनुयायियों से कहते हैं कि जो लोग ईश्वर के दरबार में प्रवेश करना चाहते हैं. उन्हें उनको ईश्वर का बेटा स्वीकार करना होगा. इस्लाम के संस्थापक मुहम्मद खुद को खुदा का पैगम्बर (संदेशवाहक) घोषित करते हुए घोषणा करते हैं कि मुक्ति चाहने वालों को न केवल उन्हें खुदा का पैगम्बर मानना होगा, बल्कि यह भी स्वीकार करना होगा कि वह अन्तिम पैगम्बर हैं.’ इसके बाद डॉ. आंबेडकर हिंदू धर्म की बात करते हैं. हिंदू धर्म के बारे में वे कहते हैं कि ‘इसके अवतारी पुरुष ने तो ईसा मसीह और मुहम्मद से भी आगे बढ़कर खुद को ईश्वर का अवतार यानी परमपिता परमेश्वर घोषित किया है.’
इन तीनों की तुलना गौतम बुद्ध से करते हुए डॉ. आंबेडकर लिखते हैं कि ‘उन्होंने ( बुद्ध) एक मानव के ही बेटे के तौर पर जन्म लिया, एक साधारण पुरुष बने रहने पर संतुष्ट रहे और वह एक साधारण व्यक्ति के रूप में अपने धर्म का प्रचार करते रहे. उन्होंने कभी किसी अलौकिक शक्ति का दावा नहीं किया और न ही अपनी किसी अलौकिक शक्ति को सिद्ध करने के लिए चमत्कार दिखाए. लेकिन ईसा, पैगंबर मुहम्मद और कृष्ण ने अपने को मोक्ष-दाता होने का दावा किया, जबकि बुद्ध केवल मार्ग-दाता होने पर ही संतुष्ट थे. डॉ. आंबेडकर ऐसा कोई भी धर्म स्वीकार स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे, जिसमें ईश्वर या ईश्वर के बेटे, पैगम्बर या खुद ईश्वर के अवतार के लिए कोई जगह हो. उनके गौतम बुद्ध एक मानव हैं और बौद्ध धर्म एक मानव धर्म, जिसमें ईश्वर के लिए कोई जगह नहीं है.
वहीं ‘बुद्ध एंड फ्यूचर ऑफ हिज रिलिजन’ शीर्षक के अपने इसी लेख में डॉ. आंबेडकर का कहना है कि धर्म को विज्ञान और तर्क की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए. वे लिखते हैं कि ‘धर्म को यदि वास्तव में कार्य करना है तो उसे बुद्धि या तर्क पर आधारित होना चाहिए, जिसका दूसरा नाम विज्ञान है.’ फिर वे धर्म को स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की कसौटी पर कसते हुए लिखते हैं. कि ‘किसी धर्म के लिए इतना पर्याप्त नहीं है कि उसमें नैतिकता हो. उस नैतिकता को जीवन के मूलभूत सिद्धान्तों- स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व को मानना चाहिए.’
इन तुलनाओं के बाद डॉ. आंबेडकर बुद्ध की उन अन्य विशेषताओं को रेखांकित करते हुए लिखते हैं. ‘यह सच है कि बुद्ध ने अहिंसा की शिक्षा दी. मैं इसके महत्व को कम नहीं करना चाहता, क्योंकि यह एक ऐसा महान सिद्धान्त है. कि यदि संसार इस पर आचरण नहीं करता तो उसे बचाया नहीं जा सकेगा. मैं जिस बात पर बल देना चाहता हूं, वह यह है कि बुद्ध ने अहिंसा के साथ ही समानता की शिक्षा दी. न केवल पुरुष और पुरुष के बीच समानता, बल्कि पुरुष और स्त्री के बीच समानता की भी.’
हिन्दू धर्म के अनुसार न शूद्र और न नारी धर्म के उपदेशक हो सकते थे. न ही वह संन्यास ले सकते थे और न ईश्वर तक पहुंच सकते थे. दूसरी ओर बुद्ध ने शूद्रों को भिक्षु संघ में प्रविष्ट किया. उन्होंने नारी के भिक्षुणी बनने के अधिकार को स्वीकार किया (बुद्धा एंड दी फ्यूचर ऑफ हिज रिलिजन).
यही वजह है कि बाबा साहेब आंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ बौद्ध धम्म अपनाया.
सौजन्य – द प्रिंट ,डॉ सिद्धार्थ रामू
वरिष्ठ पत्रकार
संपादक-फारवर्ड प्रेस
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