Home State Bihar & Jharkhand ठग्स ऑफ भारतवर्ष पर कोई क्यों नहीं बोलता?

ठग्स ऑफ भारतवर्ष पर कोई क्यों नहीं बोलता?

“रामोसी” भाषा बोलने वाले “ठग्स ऑफ़ हिन्दुस्तान” पर बनी फिल्म आमिर खान ला रहे हैं. लेकिन क्या आपको “संस्कृत” भाषा बोलने वाले “ठग्स ऑफ़ भारतवर्ष” के बारे में कुछ पता है? नहीं ना? उन ठगों पर हिन्दुस्तान में न कोई फिल्म बन सकती है न कोई ढंग का उपन्यास आ सकता है। लेकिन उन ठगों के बारे में क्रान्तिसूर्य ज्योतिबा फूले ने विस्तार से लिखा है. उनकी किताब गुलामगिरी ठीक से पढ़िए।

रामोसी भाषा बोलने वाले ठग मुसाफिरों में घुल मिल जाते थे और उनके माल असबाब और ताकत का पूरा हिसाब लगाकर दूसरी टीम को सतर्क कर देते थे। दूसरी टीम इन्हें व्यापारियों और किसानों इत्यादि के भेस में मिलकर इनसे दोस्ती बनाती थी और अपने भरोसे के जाल में फंसाती थी। एक तीसरी टीम इन सब मुसाफिरों के लिए कब्र खोदती थी। एक अन्य टीम इन मुसाफिरों को बेहोश करके इनका गला दबाकर काम तमाम करती थी।

अब संस्कृत बोलने वाले ठगों की कहानी सुनिए. ये आपको जन्म के पहले ही जाल में फसाते हैं, कहते हैं ये गर्भ गलत समय स्थापित हुआ है. बच्चा पागल या गूंगा बहरा पैदा होगा। इस तरह मासूम माँ बाप को डराकर अनिष्ट निवारण की भारी पूजा करवाते हैं और भारी दान दक्षिणा लेते हैं। फिर में जन्म के बाद कहते हैं कि बालक गलत नक्षत्र में पैदा हुआ है यह कुल और परिवार का काल बनकर आया है. इतना कहकर वो दुखी परिवार को समझाइश देने के बहाने उनके माल असबाब और मनोदशा का अनुमान लगाता है. फिर ये ठग एक दूसरी टीम को सक्रिय करता है। दूसरी टीम कर्मकांड करके अनिष्ट टालने आती है और इस परिवार से दान दक्षिणा लेकर लूटती है। दान दक्षिणा किस दुकान से लेनी है उन दुकानदारों से इन ठगों की सांठ-गाँठ होती है। हर बार फसल काटने के बाद गरीब बहुजनों को ये ठग और उनके दुकानदार दोस्त फसाते हैं और दान दक्षिणा लेकर लूटते हैं।

फिर बच्चा बड़ा होता है, इसकी शिक्षा और नौकरी का मौक़ा आते ही फिर से इसके परिवार को बताते हैं कि इसकी कुंडली में कालसर्प योग है, या शनि की साढ़े साती चल रही है। इसी कारण इसे नौकरी नहीं मिल रही है। इसका निवारण करने के लिए कोई पूजा लगेगी। इस तरह डराकर वो दुसरी टीम के पास भेजता है किन्ही ख़ास शहरों में पिंडदान, कालसर्प पूजा और पिंडी-पूजा करके इस परिवार को फिर ठगा जाता है. फिर बालक जब युवा होता है तो इसकी शादी का मौक़ा आता है।

ठगों की वही टीम फिर कूद पड़ती है. लड़की वालों को बताते हैं कि लड़की मांगलिक है. कभी-कभी कुत्ते या पीपल के पेड़ से उसकी शादी करवाते है। लड़के वालों को फिर से किसी कालसर्प या पितृ-दोष बताते हैं. दोनों परिवारों को डराकर अपने बनिए दुकानदार मित्रों की मदद से जी भर के लूटते हैं।

फिर परिवार बसने के बाद मकान बनाने के बाद गृहप्रवेश के ठीक पहले बताते हैं कि इस मकान में वास्तुदोष है। इसे ठीक करने के लिए फिर से पूजा पाठ करना होगा। इस तरह डराकर फिर भारी पूजापाठ में फसाकर ठगते हैं। इतना सब करने के बाद भी ओबीसी, एससी-एसटी के गरीब परिवारों की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आता तो इसका जिम्मा पिछले जन्म के कर्मों पर डाल देते हैं।

दुनिया से रुखसत हो चुके पूर्वजों के बारे में भी कहते हैं कि उन्हें परलोक में बड़ा कष्ट हो रहा है। वे भूख से तड़प रहे हैं, उन्हें कपडे, जूते, गद्दे तकिये और ढेर सारा पैसा चाहिए। यह कहकर श्राद्ध के नाम पर फिर से ठगते हैं। फिर अगला जन्म सुधारने के लिए भी अलग से पूजा पाठ हैं।

अगला जन्म सुधारने के लिए गरीबों के लिए कर्मकांड हैं और अमीर ओबीसी, एससी-एसटी को फ़साने के लिए इनके पास ध्यान समाधि, आर्ट ऑफ़ लिविंग, इनर इंजीनियरिंग, प्राणिक हीलिंग, चक्रा हीलिंग, क्वांटम हीलिंग, प्राणायाम इत्यादि के स्पेशल पैकेज है। इसके साथ ही अपने खुद के पिछले जन्मों के कर्म काटने के लिए हर हफ्ते कोई न कोई वृत उपवास और दान दक्षिणा का कार्यकृम चलाते हैं। संस्कृत बोलने वाले ये ठग रात दिन इन ओबीसी, दलितों आदिवासियों को डराते हैं और ये गरीब भोले भाले लोग इन ठगों के कहने पर अपनी खून पसीने की कमाई का बड़ा हिस्सा पूजा पाठ और देवालयों में दान दक्षिणा करके लुटाते रहते हैं।

रामोसी बोलने वाले ठगों से तो मुक्ति मिल गयी, इन संस्कृत वाले ठगों से कब मुक्ति मिलेगी?

लेखक- संजय श्रमण

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