Home Language Hindi आखिर क्यूँ अपरकॉस्ट आज तक भारत की राजनीति नियंत्रित और संचालित करता रहा है?
Hindi - Language - May 15, 2021

आखिर क्यूँ अपरकॉस्ट आज तक भारत की राजनीति नियंत्रित और संचालित करता रहा है?

अपरकॉस्ट की राजनीतिक शक्ति, आबादी में उसके अनुपात से कई गुना ज्यादा क्यो है- कुछ मित्रों के प्रश्न का उत्तर, हिंदी पट्टी-गाय पट्टी के संदर्भ में।

सबसे पहले यह स्पष्ट कर दूं कि एक सामाजिक समूह के तौर पर भारत का सबसे संवेदनहीन और सबसे पिछड़े विचारों का वाहक अपरकॉस्ट है, यही सबसे अधिक समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुता का विरोधी सामाजिक समूह है। यही सबसे अधिक लोकतांत्रिक चेतना और वैज्ञानिक मानस का भी विरोधी है। इसको पुष्ट करने के लिए मेरे पास अनगिनत वस्तुगत तथ्य, तर्क और अनुभवपरक ज्ञान है। फिलहाल यह विषय नहीं है, इस कारण से मैं इसे तथ्यों, तर्कों और अनुभवों से पुष्ट करने नहीं जा रहा हूं।

प्रश्न यह है कि भारत की आबादी में करीब 15 प्रतिशत हिस्सा रखने वाला सबसे पिछड़े विचारों का वाहक यह समूह आजादी के बाद से आज तक भारत की राजनीति को कैसे नियंत्रित और संचालित करता रहा है और आज भी कर रहा है?

भारत की पहली लोकसभा (1952) में ही अपरकॉस्ट की सिर्फ एक जाति ब्राह्मणों ( अपरकॉस्ट में भी सबसे अधिक पिछड़े विचारों की वाहक) का प्रतिनिधित्व 35 प्रतिशत रहा, दूसरी लोकसभा (1957) में यह बढ़कर 47 प्रतिशत हो गया। यह अनुपात कमोवेश 35 प्रतिशत से ऊपर तक बरकरार रहा। 1970 के दशक के बाद धीरे-धीरे थोड़ी गिरावट आई, लेकिन मोदी के उभार के बाद इसमें बढ़ोत्तरी हुई है।

वर्तमान लोकसभा ( 2019) में अपरकॉस्ट का प्रतिनिधित्व 42.7 प्रतिशत है। एससी-एसटी के लिए आरक्षित सीटों पर भी चुने गए अधिकांश लोग कांशीराम की शब्दावली में अपरकॉस्ट चमचे ही होते हैं। उपरोक्त तथ्यों या वर्तमान लोकसभा के आंकड़ों के आधार पर हम दो निष्कर्ष निकाल सकते हैं।

पहला यह कि चूंकि अपरकॉस्ट, उसमें विशेषकर ब्राह्मण सबसे बेहतर तरीके से पिछड़े,दलितों और आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करते हैं या कर सकते है, इस कारण से वे आजादी के बाद से आज तक आबादी में अपने अनुपात से कई गुना राजनीतिक प्रतिनिधित्व रखते हैं

या दूसरा निष्कर्ष यह निकाल सकते हैं कि अपनी कम आबादी के बावजूद विभिन्न कारणों से उनकी राजनीति ताकत इतनी अधिक है कि वे अपनी आबादी के अनुपात से कई गुना अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व हासिल कर लेते हैं।

पहले तर्क पर अपरकॉस्ट के लोगों के अलावा शायद ही कोई विश्वास करे। दूसरा तर्क ही सही है।

अपरकॉस्ट की राजनीतिक शक्ति इतनी अधिक क्यों है, इसका विश्लेषण करने से पहले एक तथ्य और रेखांकित कर लेना जरूरी है कि पिछड़ों और दलितों के नेतृत्व वाली पार्टियों को भी अक्सर अपरकॉस्ट के लोग ही विभिन्न तरीकों से संचालित-नियंत्रित करते हैं या गहरे स्तर पर प्रभावित करते हैं। खासकर गाय पट्टी में।

वैकल्पिक राजनीति के एक महत्वपूर्ण केंद्र कहे जाने वाली वामपंथी पार्टियों पर आज भी इन्हीं का नियंत्रण कायम है।

भले ही वैधानिक और औपचारिक तौर सबके वोट का महत्व एक हो, लेकिन आजादी के बाद से आज तक अपरकॉस्ट के वोट का महत्व अन्य सामाजिक समूहों की तुलना में वास्तविकता कई गुना अधिक रहा है और है।

प्रश्न यह है कि आखिर अपरकॉस्ट राजनीतिक तौर पर इतना ताकतवर क्यों है? यहां विस्तार में जाने की गुंजाइश नहीं है। बिंदुवार रेखांकित कर लेते है।

1- गाय पट्टी-हिंदू पट्टी-राम पट्टी में आज भी अपरकॉस्ट की वैचारिकी और संस्कृति का ही वर्चस्व है, यह वैचारिक और सांस्कृतिक प्रभुत्व गहरे स्तर पर पिछड़ी जातियों के बड़े हिस्से पर है,जो इस पट्टी की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा हैं। दलितों पर तुलनात्मक तौर पर इस वैचारिकी का प्रभाव कम है, कांशीराम ने इसके प्रभुत्व को काफी कम किया, डॉ. आंबेडकर की वैचारिकी को फैलाकर, फिर भी दलितों का एक बड़ा हिस्सा और कुछ मामलों में अधिकांश दलित इसके प्रभाव में हैं।

2- पूरे गाय पट्टी के आर्थिक संसाधनों पर अभी भी अपरकॉस्ट का सबसे अधिक मालिकाना है, यह आर्थिक ताकत उनके राजनीतिक ताकत के विस्तार और प्रभाव को बढाने में बहुत अधिक मददगार होती है।

3- गाय पट्टी का बौद्धिक वर्ग का सबसे बड़ा समूह इसी अपरकॉस्ट से बना हुआ है।

इन्हीं का बौद्धिक केंद्रों-विश्वविद्यालयों और बौद्धिक संस्थानों पर कब्जा है। सच यह है कि यही लोग आज भी विभिन्न रूपों में गाय पट्टी की वैचारिकी को नियंत्रित और संचालित करते हैं।

यही वामपंथी विचारक भी हैं, यही उदारवादी विचारक भी हैं और यही दक्षिणपंथी विचारक भी हैं।

इस बहुसंख्यक हिस्से के मातहत या इनके साथ काम करने वाला दलित-बहुजनों का भी बौद्धिक वर्ग अक्सर वस्तुगत और मनोगत कारणों से कई बार इन साथ चलने में ही भलाई समझता है या उसकी यह मजबूरी होती है।

4- गाय पट्टी का दिमाग नियंत्रित करने वाले सारे हिंदी अखबारों और टी. वी. चैनलों पर इन्हीं का नियंत्रण हैं। अंग्रेजी अखबार और टी. वी. चैनल भी हिंदी अखबारों-चैनलों से तुलनात्मक तौर पर बेहतर होते हुए भी मूलत: अपरकॉस्ट वैचारिकीऔर संस्कृति की ही सेवा करते हैं।

इसी के चलते इन्हें ब्राह्मणवादी मीडिया या कांशीराम जी के शब्दों में मनुवादी मीडिया कहा जाता है।

जिसे वैकल्पिक मीडिया कहते हैं, उसके भी अधिकांश हिस्से पर इन्हीं का नियंत्रण है, चाहे वह हिंदी का हो या अंग्रेजी की।

यानि विचारक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और एंकर के रूप में यही लोगों के दिमागों को नियंत्रित करते हैं।

इतिहास लेखन, समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्री, अन्य मानविकी विषयों और साहित्य पर भी कमोवेश इन्हीं का नियंत्रण अभी भी कायम है।

5- देश की संवैधानिक संस्थाओं-सरकारी संस्थाओं पर भी कमोबेश इन्हीं का नियंत्रण है। चाहे चुनाव आयोग हो या हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट हो, राज्य की एजेंसिया-सीबीआई, ईडी, एनआईए आदि हों या नौकरशाही, विशेषकर सचिव और मुख्य सचिव हो।

6- अपरकॉस्ट सबसे संगठित समूह है। इसका सबसे बड़ा और विस्तारित संगठन आरएसएस और उसके आनुषांगिक संगठन हैं। लेकिन इसके बहुत सारे अन्य संगठन भी हैं। मुख्य राजनीतिक पार्टियां तो उनके नियंत्रण में अभी हैं ही।

7- जिसे भारतीय मूल के प्रवासी भारतीय कहते हैं, जो दुनिया के कोने-कोने में बसे हैं और पश्चिमी दुनिया में काफी प्रभावशाली स्थिति में हैं और भारत की वैचारिकी को भी गहरे स्तर नियंत्रित और संचालित करते हैं, उनका भी बहुलांश अपरकॉस्ट से ही बना है और अपनी सारी उदारवादिता- प्रगतिशीलता के बावजूद ज्यादात्तर अपरकॉस्ट वैचारिकी से अक्सर बाहर नहीं निकल पाते हैं।

8- जिसे भारत का पूंजीपति वर्ग या आजकल कार्पोरेट कहते हैं, वह भी मुख्यत: इसकी अपरकॉस्ट से बना है और इसी मानसिकता का है।

9- भारत का अपर मिडिल क्लास का वह एक प्रतिशत हिस्सा, जो भारत की कुल संपत्ति के 73 प्रतिशत का आज की तारीख में मालिक है, मुख्यत: इसी अपरकॉस्ट से बना है।

यह हैं, मुख्य कारक जिनके चलते आबादी में अनुपात से कई गुना अधिक राजनीतिक ताकत अपरकॉस्ट रखता है।

नोट- इस या उस सामाजिक समूह के व्यक्तियों के व्यक्तिगत स्तर पर अपरकॉस्ट वैचारिकी से बाहर होने या उसका समर्थन करने के आधार पर पूरे सामाजिक समूह के बारे में राय नहीं बनाई जाती है और न बनाई जानी चाहिए।

जैसे कोई कहे कि फला व्यक्ति दलित है, लेकिन अपरकॉस्ट की सबसे प्रतिनिधि संस्था आरएसएस का समर्थन करता है या अपरकॉस्ट का फला व्यक्ति पूरी तरह अपरकॉस्ट वैचारिकी का विरोधी रहा है या है।

ऐसी परिघटनाओं पर राय कुछ चंद व्यक्तियों के आधार पर नहीं, समूह के बहुलांश हिस्से के आचरण के आधार बनाई जाती है।

आप कल्पना कीजिए, जिसे देश का नेतृत्व उस देश सामाजिक समूह का सबसे प्रतिक्रियावादी वैचारिकी वाला हिस्सा कर रहा हो, उस देश और वहां के जन का क्या होगा?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

Remembering Maulana Azad and his death anniversary

Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…