Home Language Hindi आज के कश्मीर के हालात, कश्मीरियों की ज़बानी – पीटर फ़्रेड्रिक के साथ (तीसरा हिस्सा)
Hindi - September 11, 2019

आज के कश्मीर के हालात, कश्मीरियों की ज़बानी – पीटर फ़्रेड्रिक के साथ (तीसरा हिस्सा)

 

गुज़िश्ता दो म़ज़ामीन में हमने पीटर फ़्रेड्रिक(सहाफ़ी, कैलीफ़ॉर्निया) और कुछ कश्मीरियों के दरमियान हुई गुफ़्तगू के कुछ हिस्से आप तक पहुंचाये। आपने पढ़ा के कश्मीर के मौजूदा हालात क्या हैं। आदिल शेख़ और शहनाज़ क़य्यूम से हुई पीटर फ़्रेड्रिक की गुफ़्तगू हमने पेश की। पीटर फ़्रेड्रिक के सारे काम पर जो उन्होंने कश्मीर पर किया है का जायज़ा लिया जाये तो और कई मुद्दे हैं जिन पर मुख़्तसरन बात हम यहां कर रहे हैं जबके मौज़ूआत तफ़सील तलब हैं।

आइये अागे बढ़ते हैं और कुछ ख़ास मौज़ूआत पर बात करते हैं। जो इस गुफ़्तगू पर ही मुश्तमिल है।

 

 

(1)मीडिया लॉक-डाउन और कश्मीर

कश्मीर से 370 हटाने की क़वायद शुरु होते ही मीडिया लॉक-डाउन कर दिया गया। फिर से वही हालात मद्द-ए-नज़र हैं जो अकसर यहां ईद और मुहर्रम या फिर 26 जनवरी या 15 अगस्त पर देखने को मिलते हैं या बिला किसी त्योहार के भी। कश्मीरियों के लिये तमाम नेटवर्क का एक साथ ख़त्म हो जाना कोई नई बात नहीं होती है। आये दिन यही होता है के कश्मीरियों को हर तरह के नेटवर्क से महरूम कर दिया जाता है। और 370 के हटाये जाने से अब तक कश्मीर में यही हालात हैं। अब भी कश्मीर से बाहर रहने वाले लोग अपने घर वालों से बात नहीं कर पा रहे हैं। लैंड लाइन शुरुअ किया गया है। लेकिन उसके लिये भी लोगों को किसी पीसीओ जैसी जगह जा कर अपने घर वालो को फोन करना होता है जो कश्मीर से बाहर हैं। आदिल शेख़ मीडिया लॉक डाउन के बारे में बात करते हुये बताते हैं के ये एक दोगुना अज़ाब हम पर होता है। के एक तो हालात इतने ख़राब होते हैं और दूसरे हम अपने घर वालों और दोस्तों के हालात जानने से भी महरूम कर दिये जाते हैं। हमारे पास इतने सख़्त हालात में हौसला बढ़ाने के लिये दोस्तों की, घर वालों की आवाज़ तक नहीं होती। आवाज़ होती है तो बस भारी भरकम जूतों की।

डॉक्टर तंज़ीला मुख़्तार जो पिछले 14 साल से इंग्लैंड में रहती हैं। बताती हैं के कश्मीर के ये हालात हमने पैदा होते ही देखने शुरु कर दिये थे। और अब तक वैसे ही हैं। कहती हैं के मैं रोज़ घर का नम्बर लगाती हूं के शायद आज बात हो जाये लेकिन ये मुम्किन नहीं होता।

डॉक्टर तंज़ीला कहती हैं के ये इस तरह के ज़ुल्म साफ़ तौर पर ज़ाहिर करते हैं के हिन्दुस्तान की। सरकार को कश्मीर से भले ही मुहब्बत हो लेकिन कश्मीरियों के लिये हर्गिज़ नहीं है। कितने ही लोग सिर्फ़ इस लौक-डाउन की वजह से मौत का निवाला बनते हैं।

 

 

(2) अचानक गिरिफ़्तारियां/तलाशियां

ज़रा एक पल के लिये सोचिये के रात को दो या तीन बजे कोई आपके घर का दरवाज़ा पीटना शुरू कर दे और जब आप दरवाज़ा खोलें तो आप को घसीट कर बाहर खड़ा कर दिया जाये बांध कर और आपके घर को तहस नहस कर दे तलाशी के नाम पर। और फिर आपको छोड़ जाये उस तहस नहस घर के साथ रोते हुये।

ये सब कश्मीरियों के लिये बहुत आम हो चुका है। फ़ौजी रात के किसी भी वक़्त उनके दरवाज़े खुलवा कर उनके घरों की तलाशी लेते हैं और उनके घर के अफ़राद के साथ बदसुलूक़ी भी करते हैं। औरतों और बच्चों को भी इस बदसुलूकी से दूर नहीं रखा जाता है।

ज़फर आफ़ाक़ जो एक कश्मीरी हैं और पेशे से फ़्रीलांस सहाफ़ी हैं। कहते हैं के ये सब इतनी बार हो चुका है के अब ज़हनी तौर पर कश्मीरी लोग इसके लिये तय्यार हो चुके हैं।

एक आम ज़िन्दगी और एक कश्मीरी की ज़िन्दगी में बड़ा तज़ाद है। कश्मीरियों के लिये बाक़ी हिन्दुस्तानी अवाम के जैसी ज़िन्दगी जीना महज़ एक ख़ुशनुमा ख़्वाब जैसा ही है। जिसके पूरे होने की उम्मीद भी वो हुक़ूमत से ही रखते हैं। लेकिन हुक़ूमत उनके साथ जो बरताव कर रही है वो कोई मुल्क अपनी आवाम के लोगों के साथ नहीं करता। कोई मुल्क ये सुलूक अपने बच्चों और औरतों के साथ नहीं करता। ज़ालिमाना और ग़ैर मसावाती सुलूक।

 

 

(3) कश्मीर के लीडर और उनके बयानात

उमर अबदुल्लाह कहते हैं के कश्मीर की अवाम के साथ धोखा हुआ है। इतना बड़ा फ़ैसला बिना बताये और एेसे तानाशाही अंदाज़ में लिया गया है जैसे हिन्दुस्तान डेमोक्रेसी नहीं कोई तानाशाह की सरपरस्ती में पलने वाला मुल्क है। कश्मीर की अवाम की राय की ज़रा भी ज़रूरत नहीं समझी गई और ना ही हुक़ूमत को फ़िक्र है कश्मीरियों की राय की।

शाह फ़ैसल कहते हैं के 370 एक पुल था हिन्दोस्तान और कश्मीर के दरमयान जिसे तोड़ दिया गया। ये अमन और शांती क़ायम करने का एक रास्ता था। जिसके बर्बाद होते ही कश्मीर के हालात भी वैसे ही हैं जैसे की तवक़्क़ो की जा सकती थी। कश्मीर की अवाम की राय लेना बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं समझा गया। और कश्मीर की अवाम सिर्फ़ मुसलमान ही नहीं हैं। बल्के सिक्ख, ईसाई और कश्मीरी पंडित भी हैं। जिनके साथ नाइंसाफ़ी हुई है।

महबूबा मुफ़्ती भी इन दोनो साहेबान से मिलता जुलता ही बयान देती हैं और 5 अगस्त को सियाह दिन कहते हुये कहती हैं के आज वो दिन है जिस दिन कश्मीर की आवाम से पार्लियामेंट ने वो सब छीन लिया है जो उसे इसी पार्लियामेंट से मिला था। कश्मीरी अवाम के तमाम तर हुक़ूक़ उससे रात ही रात में छीन लिये गये हैं।

 

 

जारी…

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