आज के कशमीर के हालात कशमीरियों की ज़बानी – पीटर फ़्रेड्रिक के साथ
हमारा मुल्क अब उस मोड़ पर आ गया है के यहां हादसे अपना वो दर्द खो चुके हैं के होना चाहिये था। अब बुरी ख़बरें सुन कर डर नहीं लगता न ही वहशत होती है। और इसकी वजह है के हम लोग आदी हो चुके हैं इन हादिसात के। आज कोई हादसा होगा और शोसल मीडिया पर वायरल हो जायेगा। न्यूज़ चैनल और अख़बारात उस हादसे की आँच पर अपनी रोटियां सेकते हैं, पैसा बनाते हैं। कवी और शायरों को एक नया मौज़ूअ मिल जाता है अपना हुनर दिखाने के लिये. और फिर दो तीन दिन बाद कोई नया हादसा होता है। सब चीज़ें दोहराई जाती हैं। और पुराने हादसे को भुला दिया जाता है।
और अब हालात ये भी हैं के हम इन हादिसात को हादसों की नज़र से देखते भी नहीं। ये महज़ एक वाक़या बन कर रह जाते हैं। जिस में बस कुछ हुआ है।
कशमीर मुद्दे का भी यही हाल है। तमाम न्यूज़ चैनल और अख़बारात चुप्पी साधे बैठे हैं। जैसे कुछ हुआ ही ना हो। कम अज़ कम कशमीर के मौजूदा हालात से वाक़िफ़ किया जा सकता था अवाम को। लेकिन मीडिया और शोसल मीडिया पर छाई पड़ी हैं इन दिनो और ना जाने क्या क्या फ़ालतू और वाहियत ख़बरें।
जब के ये मुद्दा इतना संजीदा है के मुल्क में मौजूद 200 से ज़्यादा न्यूज़ चैनलों को इसकी फ़िक्र हो ना हो लेकिन दीगर ममालिक में भी ये एक क़ाबिल ए ज़िक्र मसअला है।
कैलिफ़ॉर्निया के एक सहाफ़ी पीटर फ़्रेड्रिक इस वक़्त बहुत संजीदगी से कशमीर मुद्दे का मुतालेआ कर रहे हैं। और न सिर्फ़ उन्होंने संजीदगी से मुतालअ किया है बल्की इस पर अच्छा ख़ासा काम भी किया है।
पीटर फ़्रेड्रिक ने कशमीर के मुख़्तलिफ़ लोगों के इन्टरव्यू लिये। पीटर ने कई पढ़े लिखे और समाजी लोगों के इन्टरव्यू लिये और कशमीर के मौजूदा हालात काम जायज़ा लिया। और इन इन्टरव्यूज़ को देखने के बाद कई चौकाने वाली बातें सामने आईं। कशमीर के हालात वैसे नहीं हैं जैसे दिखाये जा रहे हैं।
यअनी ना उस तरह ख़राब हैं जिस तरह कशमीर और कशमीरियों को दिखाया जा रहा है और ना उस तरह अच्छे हैं जिस तरह मीडिया दिखा रहा है।
कशमीर के इन लोगों से की गई गुफ़्तगू जो अलग अलग ऑनलाइन इन्टरव्यू की शक्ल में मौजूद है को पीटर ने अपने फ़ेसबुक पेज पर भी अपलोड लिया है जिन्हें आप वहां जा कर पढ़ सकते हैं। इन मुख़त्लिफ़ लोगों से की गई बातों को हमने तहरीरी शक्ल में आपके सामने पेश किया है। हमारे पास उन लोगों की फ़ेहरिस्त है जिनके साथ पीटर ने मुकालमा किया है।
इस फ़ेहरिस्त का पहला नाम है शहनाज़ क़य्यूम साहब। शहनाज़ क़य्यूम साहब से जब कशमीर के मौजूदा हालात के मुताल्लिक़ पीटर पूछते हैं तो शहनाज़ बताते हैं के कशमीरियों के पास अब भी अवाज़ नहीं है। उनके पास नेटवर्क नहीं है। इंटरनेट से ले कर फोन सब ठप है।
वो अपनी बात किसी तक नहीं पहुंचा सकते। और उनके साथ जो हो रहा है ना तो बता सकते हैं ना दिखा सकते हैं। और ना ही जान सकते हैं के कशमीर के मौजूदा हालात का मुल्क और मुल्क के लोगों पर क्या फ़र्क़ पड़ रहा है। ना वो ये जान सकते हैं के कशमीर के हालात को ले कर सरकार क्या कर रही है। वहां दरपेश मुश्किलात से निमटने के क्या वसाइल तय्यार किये जा रहे हैं।
दुनिया के सामने बीबीसी और ऐसे ही एक दो चैनल हैं जो वहां के बिगड़ते हालात जायज़ा ले रहे हैं और वहां के अस्ल हालात की ख़बर भी हमें दे रहे हैं। लेकिन उनके ज़रिये भी जितनी ख़बर हम तक आ रही है वो नाकाफ़ी है। ऐसे में ख़ुद कशमीरी अवाम की राय उन्हीं की ज़बानी बहुत अहम और ज़रूरी थी। और ये काम पीटर फ़्रेड्रिक ने बख़ूबी किया है।
पीटर के ये कहने पर के मीडिया कह रहा है के अब तो कशमीर में इंटरनेट और फोन चालू कर दिया गया है शहनाज़ कहते हैं के एेसा नहीं हुआ है। बल्की कशमीर के कुछ हिस्से जैसे सम्बा और जम्मू जैसे इलाक़ों में नेटवर्क बहाल किया है। और एेसा वहां मख़सूस तबक़े के होने की वजह से किया गया है। मुस्लिम अकसरियत वाले इलाक़े अभी भी महरूम हैं। वहां रहने वाले लोगों को अभी भी तमाम तर परेशानियो का सामना करना पड़ रहा है। खाने पीने से ले कर रहने तक की दिक़्क़तें सामने हैं। घर से निकलना तक दूभर है।
आगे शहनाज़ कहते हैं के मीडिया कुछ और ही दिखा रहा है। मुल्क के हालात ख़राब कर रहा है बल्के कशमीर के हालात भी। सरकारी फ़ैसले को जो के सरकार ने मुल्क के मफ़ाद के लिये लिया हो या अपने फ़ायदे के लिये को मज़हबी रंग दे कर मुल्क को नफ़रत की आग में झोंक रहा है। कशमीरी लोग अगर फ़ौज से बदज़न हैं तो उसकी वजह फ़ौज की अवाम के साथ की गई ज़्यादतियां हैं। फ़ौज तलाशी लेने के नाम पर उनके साथ बुरा सुलूक करती है। शक की बुनियाद पर ही कशमीरियों के साथ बदतर सुलूल किया जाता है। कशमीरी यक़ीनन फ़ौज से बदज़न हैं लेकिन मुल्क से नहीं और ना ही किसी ख़ास मज़हब के लोगों से। उनके सीनों में भी मुल्क के लिये वही जज़्बा है जो एक आम हिन्दोस्तानी के दिल में होता है। आम कशमीरयों के बच्चे भी फ़ौज में हैं और सरहद पर मुल्क की हिफ़ाज़त में अपनी जानें दाँव पर लगाते हैं।
हर कशमीरी एक आम ज़िन्दगी गुज़ारना चाहता है। वो किसी तबक़े या फ़िरक़े से नफ़रत नहीं करता और ना करना चाहता है।
लेकिन मीडिया ने एक एक कशमीरी को मुल्क के सामने एेसे पेश किया है जैसे हर शख़्स अपने कांधे पर बंदूक़ रखे तय्यार बैठा है क़त्ल ए आम करने के लिये। और इसी का नतीजा भी है के मुल्क के मुख़त्लिफ़ शहरों में रहने वाले कशमीरियों को मारपीट तक का सामना करना पड़ा। उन्हें हर शख़्स अजीब नज़रों से देखता है।
जारी….
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