Home Language Hindi बामसेफ स्थापना संकल्प दिवस पर जानिए क्या था, बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर का OBC वर्ग के साथ रिश्ता !
Hindi - Political - December 5, 2020

बामसेफ स्थापना संकल्प दिवस पर जानिए क्या था, बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर का OBC वर्ग के साथ रिश्ता !

-डॉ.सुनील यादव

डॉ बाबासाहब और ओबीसी का रिश्ता ?”
इस देश में ओबीसी का ‘संवैधानिक
जन्मदाता’ और ‘संवैधानिक रखवाला’ कोई और
नहीं बल्कि ” बाबासाहब डॉ आंबेडकर”
ही हैं !

1928 में बाम्बे प्रान्त के गवर्नर ने ‘स्टार्ट’ नाम के एक
अधिकारी की अध्यक्षता में
पिछड़ी जातियों के लिए एक कमिटी नियुक्त
की थी. इस कमिटी में डॉ.
बाबा साहेब आम्बेडकर ने ही शूद्र वर्ण से
जुडी जातियों के लिए ” OTHER BACKWARD
CAST ” शब्द का सर्वप्रथम उपयोग किया था,
इसी शब्द का शार्टफॉर्म
ओबीसी है !!

जिसको सामाजिक और
शैक्षिक रूप से पिछड़ी हुई जाति के रूप में आज
हम पहचानते है और
उनको पिछड़ी जाति या ओबीसी कहते
है।
स्टार्ट कमिटी के समक्ष अपनी बात
रखते हुए डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर ने देश
की जनसंख्या को तीन भाग में बांटा था.

(1) अपरकास्ट(Upper cast) जिसमे ब्राह्मण,
क्षत्रिय-राजपूत और वैश्य जैसी उच्च वर्ण
जातियां आती थी

(2) बैकवर्ड कास्ट (Backward cast) जिसमे सबसे
पिछड़ी और अछूत बनायी गई जातियां और
आदिवासी समुदाय की जातियों को समाविष्ट
किया गया था ।

(३) जो जातियाँ बैकवर्ड कास्ट और अपर कास्ट के बीच
में आती थी ऐसी शूद्र वर्ण
की मानी गई जातियों के लिए Other
backward cast शब्द का प्रयोग किया गया था,
जिसको शोर्टफॉर्म में हम
ओबीसी कहते है.

बाबासाहब ने ही संविधान के अनुच्छेद 340
धारा में ओ0बी0सी0 को पहचान
उनकी गिनती कर,
उनको उनकी संख्या के अनुपात में जातिगत आरक्षण
का प्रावधान किया !

क्योंकि उस समय तक
ओ0बी0सी0 की जातियों की सूची
ही नही बनी थी।

बाबासाहब ने
ही ओ0बी0सी0 के लिए निर्मित संविधान के अनुच्छेद 340 को लागू कराने
का दबाव ब्राह्मणी कांग्रेस पर डाला !!

पर ब्राह्मणी कांग्रेस के ब्राह्मण
प्रधानमन्त्री नेहरू इसके लिए तैयार नहीं हुए।

इसीलिए बाबासाहब ने अपने कैबिनेट
मंत्री पद और ब्राह्मणी कांग्रेस
दोनों से इस्तीफा दे डाला

ओ0बी0सी0 के लिए कैबिनेट के मंत्रीपद
को लात मारनेवाले भारत के एक मात्र नेता ‘ ‘बाबासाहब डॉ आंबेडकर”
ही है !!

पर यह बात आज तक ओबीसी से ब्राह्मणों ने
छुपायी
बाबा साहेब के दबाव एवं संवैधानिक बाध्यता के कारण ही बाद में ब्राह्मण
नेहरू ने ब्राह्मण जाति के काका कालेलकर आयोग का गठन
ओ0बी0सी0 की जातियों को पहचान
के लिए बनाया —

संविधान के अनुच्छेद 340 के अनुसार राष्ट्रपति एक
कमीशन नियुक्त करेंगे और कमीशन
ओ0बी0सी0 जातियों की पहचान
कर के उनके विकास के लिए जो सिफारिशें करेगा उनको अमल में
लाया जाएगा।

संविधान के अनुच्छेद 15-(4), 16(4) के
अनुसार ओ0बी0सी0 जातियों के
सरकारी तन्त्र में पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए सरकार
उचित कदम उठाएगी.

शासन और प्रशासन में प्रभुत्व जमाये बैठे
ब्राह्मणी जातिवादियों ने
ओ0बी0सी0 के लिए नियुक्त
काका कालेलकर कमीशन की रिपोर्ट को संसद की समक्ष
भी नहीं रखा और कालेलकर
कमीशन की रिपोर्ट
को कभी भी मान्यता नहीं दी या लागू
नहीं किया गया।

1978 में केन्द्र सरकार ने ओबीसी जातियों की पहचान और उनकी उन्नति की सिफारिशों के
लिए दूसरा कमीशन
बी0पी0 मंडल
की अध्यक्षता में नियुक्त किया।

मंडल कमीशन रिपोर्ट-1980 को भी सत्ता मे
प्रभुत्व जमाये बैठे जातिवादियों ने लागू करने की जरुरत
न समझी और 1990 तक मंडल कमीशन की रिपोर्ट सचिवालय
की अलमारी में धूल खाती रही।

7 अगस्त 1990 के दिन प्रधानमन्त्री वी0पी0 सिंह की केन्द्र सरकार ने देश के 52 %
ओबीसी समुदाय के लिए मंडल
कमीशन की सिफारिशों के
अनुसार केन्द्रीय नौकरियों में 27 %
ओ0बी0सी0 आरक्षण लागू करने
की घोषणा की,

जिसके विरोध में ब्राह्मणों ने देशभर में मंडल विरोधी आंदोलन प्रारंभ
किया।

इस प्रकार एक सुनियोजित षड़यंत्र के तहत बाबा साहेब डॉ आम्बेडकर को पिछड़े वर्गों का विरोधी बताया जाता है ताकि सदियों से शोषित सम्पूर्ण शूद्र समाज (ओ0बी0सी0 + एस0सी0/एस0टी0) को आपस में लडा कर मलाई काटी जा सके।

और उत्तर प्रदेश में यह काम इन्होंने बखूबी अंजाम दिया है।

अब समय आ गया है कि इनके षडयंत्र को समझते हुए आपस में एकता बनाएं और सम्पूर्ण SC, ST, OBC समाज को मजबूत करें।
अब अगर एतहासिक परिपेक्ष्य में देखा जाये तो डॉ. आंबेडकर ने जहाँ SC ST जातियों के अधिकारों के लिए जीवन भर संघर्ष किया वहीँ उन्होंने पिछड़ी जातियों के अधिकारों के लिए भी निरंतर संघर्ष किया. इस तथ्य की पुष्टि निम्नलिखित तथ्यों से होती है:-

  1. डॉ. आंबेडकर की उच्च शिक्षा में बड़ौदा के महाराजा साया जी राव गायकवाड जो कि पिछड़ी जाति के थे और उन्होंने उन्हें अमेरिका में पढ़ने के लिए छात्रवृति दी थी, का बहुत बड़ा योगदान था.
  2. डॉ. आंबेडकर को सहायता और योगदान देने वाले पिछड़ी जाति के दूसरे व्यक्ति छत्रपति साहू जी महाराज थे.
  3. डॉ. आंबेडकर के रामास्वामी नायकर जो दक्षिण भारत के गैर ब्राह्मण आन्दोलन के अगुया थे, से सम्बन्ध बहुत अच्छे थे.
  4. डॉ. आंबेडकर पिछड़ी जाति के समाज सुधारक ज्योति राव फुले की सामाजिक विचारधारा से बहुत प्रभावित थे.
  5. डॉ. आंबेडकर ने ट्रावनकोर (केरल) में इज़ावा जो कि पिछड़ी जाति है, के समानता के आन्दोलन का समर्थन किया था.
  6. डॉ. आंबेडकर ने संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष के रूप में सरकारी नौकरियों में आरक्षण के सम्बन्ध में संविधान की धारा 15 (4) में “बैकवर्ड” शब्द का समावेश करवाया था जो बाद में सामाजिक और शैक्षिक तौर से पिछड़ी जातियों के लिया आरक्षण का आधार बना.
  7. डॉ. आंबेडकर के प्रयास से ही संविधान की धारा 340 में पिछड़ी जातियों की पहचान करने के लिए आयोग की स्थापना किये जाने का प्रावधान किया गया.
  8. डॉ. आंबेडकर ने 1942 में शैडयूल्ड कास्ट्स फेडरशन नाम से जो राजनैतिक पार्टी बनायीं थी उस की नीति में यह उल्लिखित था कि पार्टी पिछड़ी जातियों और जन जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियों के साथ गठजोड़ को प्राथमिकता देगी और अगर ज़रुरत पड़ी तो पार्टी अन्य पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करने के लिए अपना नाम बदल कर “बैकवर्ड क्लासेज़ फेडरशन” कर लेगी. अतः पार्टी ने उस समय सोशलिस्ट पार्टी से ही चुनावी गठजोड़ किया था.
  9. 1951 में जब डॉ. आंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल को लेकर कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दिया था तो उस में उन्होंने कहा था, “मैं एक दूसरा मामला संदर्भित करना चाहूँगा जो मेरे इस सरकार से असंतोष का कारण है. यह पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जातियों के साथ इस सरकार द्वारा किये गए बर्ताव के बारे में है. मुझे इस बात का दुःख है की संविधान में पिछड़ी जातियों के लिए कोई भी संरक्षण नहीं किया गया है. इसे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये जाने वाले आयोग की संस्तुतियों के आधार पर सरकारी आदेश पर छोड़ दिया गया है. हमें संविधान पारित किये एक वर्ष से अधिक हो गया है परन्तु सरकार ने अभी तक आयोग नियुक्त करने की सोचा भी नहीं है.” इस से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि डॉ. आंबेडकर पिछड़े वर्गों के हित के बारे में कितने चिंतित थे.
  10. कानून मंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित करते हुए पिछड़ी जातियों की उपेक्षा के बारे में चेतावनी देते हुए डॉ. आंबेडकर ने कहा था,” अगर वे अपने समानता का दर्जा पाने के प्रयासों में मायूस हुए तो “शैडयूल्ड कास्ट्स फेडरशन” कम्युनिस्ट व्यवस्था को तरजीह देगी और देश का भाग्य डूब जायेगा.” इस से भी अंदाज़ा लगाया जा सकता है की डॉ. आंबेडकर पिछड़े वर्गों के हित के बारे में कितने प्रयत्नशील थे. पिछड़े वर्गों के हितों की उपेक्षा की बात उन्होंने बम्बई के नारे पार्क में एक बड़ी जन सभा में भी दोहराई थी.
  11. डॉ. आंबेडकर द्वारा पिछड़ी जातियों के मुद्दे को लेकर पैदा किये गए दबाव के कारण ही नेहरु सरकार को 1951 में काका कालेलकर की अध्यक्षता में प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग नियुक्त करना पड़ा. यह बात अलग है कि सरकार ने इस आयोग की संस्तुतियों को नहीं माना बल्कि आयोग के अध्यक्ष को ही आयोग की संस्तुतियों ( आरक्षण का जातिगत आधार) के विपरीत मंतव्य देने के लिए बाध्य कर दिया गया.
  12. डॉ. छेदी लाल साथी जो कि सत्तर के दशक में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष थे ने मुझे बताया था कि 1954 का चुनाव हारने के बाद बाबा साहेब बहुत मायूस थे. उस समय पिछड़े वर्ग के नेता चंदापुरी जी, एस.डी.सिंह चौरसिया और अन्य लोगों ने उन्हें कहा कि आप घबराईये नहीं हम सब आप के साथ हैं. इसी ध्येय से उन्होंने पटना में पिछड़ा वर्ग की एक रैली का आयोजन किया था जिस में बहुत बड़ी भीड़ जुटी थी. इस से बाबा साहेब बहुत प्रभावित हुए थे और वे फिर दलितों और पिछड़ों की राजनीति में सक्रिय हुए.
  13. इस सम्बन्ध में डॉ. छेदी लाल साथी ने अपनी पुस्तक ” SC ST व् पिछड़ी जातियों की स्थिति” के पृष्ठ 113 पर लिखा है, “ पटना से वापस आने के बाद बाबासाहेब ने अपने साथियों से विचार विमर्श करके शैड्युल्ड कास्ट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया को भंग करके उसके स्थान पर रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के गठन का फैसला लिया क्योंकि सन 1952 और 1954 में दो बार चुनाव हारने के बाद बाबासाहेब ने महसूस किया कि अनुसूचित जातियों की आबादी तो केवल 20% ही है और जब तक उनको 52% पिछड़े वर्ग का समर्थन नहीं मिलेगा, वह चुनाव में नहीं जीत पाएंगे. अतः; बाबासाहेब ने पिछड़े वर्ग के नेतायों, विशेष करके शिवदयाल सिंह चौरसिया आदि से मशवरा करके रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया में 20% दलित वर्ग के आलावा 52% पिछड़े वर्ग के लोगों तथा 12% आबादी वाले मुसलमान, ईसाई और सिखों को भी सम्मिलित करने का निर्णय लिया. एक साल से अधिक समय रिपब्लिकन पार्टी का संविधान बनाने और सलाह मशविरा में निकल गया.”
    इस दृष्टि से पटना की यह रैली एतहासिक थी क्योंकि इस में दलितों और पिछड़ों की एकता की नींव डली थी. बाबासाहेब ने नागपुर में 15 अक्तूबर, 1956 को शैड्युल्ड कास्ट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया को भंग करके उसके स्थान पर रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया की स्थापना करने की घोषणा की थी. 1957 से 1967 तक इन वर्गों की एकता पर आधारित रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया एक बड़ी राजनैतिक ताकत के रूप में उभरी थी परन्तु बाद में कांग्रेस जिस के लिए यह पार्टी सब से बड़ा खतरा बन गयी थी, ने दलित नेतायों की कमजोरियों का फायदा उठा कर उन्हें खरीद लिया और यह पार्टी कई टुकड़ों में बंट गयी. बाद में उभरी बसपा जैसी पार्टी ने भी इस गठबंधन को तहस नहस कर दिया.
  14. अपने जीवन के अंतिम वर्षों में बाबा साहेब ने SC ST और पिछड़ों की एकता स्थापित करने के लिए पिछड़े वर्गों के नेता राम मनोहर लोहिया आदि से संपर्क स्थापित भी किया और उन के बीच पत्राचार भी हुआ था. परन्तु दुर्भाग्य से जल्दी ही बाबा साहेब का परिनिर्वाण हो गया और वह गठबंधन नहीं हो सका.
  15. उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि डॉ. आंबेडकर ने न केवल SC ST हितों के लिए ही संघर्ष किया बल्कि वे जीवन भर पिछड़े वर्ग के हितों के लिए भी प्रयासरत रहे. उन के प्रयास से ही संविधान में पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान हो सका और उन द्वारा पैदा किये गए दबाव के कारण ही प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग गठित हुआ और बाद में मंडल आयोग गठित हुआ और पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण मिला जिस के लिए पिछड़े वर्ग को बाबा साहेब का अहसानमंद होना चाहिए.
    अतः पिछड़े वर्ग को उन के उत्थान के लिए बाबा साहेब के योगदान को स्वीकार करना चाहिए

ये डॉ. सुनील यादव चिकित्सक और सामाजिक विश्लेषक के नीजी विचार है.

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