होली त्योहार का सच – मूलनिवासी बहुजन राजा हिरण्यकश्यप के कत्ल और बहन होलिका को जलाने का जश्न है होली त्योहार
हिरण्यकश्यप जैसे जनप्रिय राजा ने लोगों को उत्पादक कार्यों में लगाने और प्रकृति का संरक्षण करने के लिए प्रेरित किया। कर्मकांड और यज्ञ-हवन में भारी मात्रा में खाद्य सामग्री और लकड़ियाँ जलाकर बर्बाद करने वाले, और प्रदूषण बढ़ाने वाले परजीवी लोगों को यह पसंद नहीं आता था।
हिरण्यकश्यप ने अतिथियों के सुख के लिए घर की अविवाहित लड़कियों को पेश करने की प्रथा को भी जघन्य अपराध घोषित किया था। दुधारू पशुओं के मांस भक्षण पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। इससे जाति पदानुक्रम में अपने को स्वयंभू सर्वोच्च मानने वाले लोग नाराज हो गए । सुरा-सुंदरी में मग्न रहने वाले कुछ लोगों ने हिरण्यकश्यप को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।
हर बार हिरण्यकश्यप उन्हें बुरी तरह से पराजित कर देता था और फिर बुरी तरह से अपमानित करता था। युद्धबंदियों को वह युद्ध में जाने के बजाय, उत्पादक कार्यों में लगने को कहता था और इसके लिए विवश भी करता था। कोई उपाय न देख, सुरों ने षड्यंत्र किया, और उसके नाबालिग बेटे को नशे की लत लगा दी। नशे का लालच देकर वो लोग प्रह्लाद को उल्टी-सीधी रस्में सिखाने लगे। नशे की तलब पूरा करने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार हो जाता था।
प्रह्लाद के जरिए ही सुरों ने हिरण्यकश्यप को मारने की योजना बनाई। राज्य की सुरक्षा-व्यवस्था कड़ी होने के कारण महल में सेंध लगाने के लिए यह ज़रूरी था। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को इस षड्यंत्र की आशंका पहले से हो रही थी। उसने प्रह्लाद को समझाने की कोशिश की। एक दिन सुरों ने होलिका और प्रह्लाद को अकेला पाकर घेर लिया और होलिका को आग में जिंदा जला दिया।
इसके बाद सब उन्माद में मस्त होकर खुशियाँ मनाने लगे। खबर उड़ा दी कि होलिका ही प्रह्लाद को जलाना चाहती थी, लेकिन आग में प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। ऐसी कहानी उड़ाकर प्रजा को धर्मभीरू बनाने की कोशिश की और संदेश दिया कि कर्मकांड करना ही असली धर्म है।
इसके बाद, प्रह्लाद की ही मदद से शाम के समय महल का द्वार खुलवा लिया और एक आदमी ने शेर का मुखौटा लगाकर विश्राम कर रहे हिरण्यकश्यप को नुकीले हथियार से मार डाला और शोर मचाने लगे कि धर्म की जीत हुई है।
बाद में, प्रह्लाद को राजा घोषित कर दिया गया, लेकिन प्रच्छन्न रूप से शासन परजीवियों-प्रकृति-विनाशकों के हाथ में आ गया। सत्ता हाथ में आते ही स्थानीय लोगों की संस्कृति नष्ट करने और अपनी संस्कृति थोपने का अभियान शुरू कर दिया जो आज तक जारी है।
ये लेख वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र यादव के अपने निजी विचार है, इससे नेशनल इंडिया न्यूज का कोई संबंध नही है।
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