मेहनत और परिश्रम से लायी हरियाली, जल और खुशहाल जीवन
वर्ष 1983 से 1986 के बीच भीमताल केसोन गांव में भयंकर सूखा पड़ने से पानी कोहाहाकार मच गया। तब लोग दूरदराज सेजैसे-तैसे पीने के पानी का इंतजाम करतेथे। जानवरों के लिए चारे और पानी का तोघनघोर संकट खड़ा हो गया। तब लोगों को समझ आया कि पानी के लिए हरियाली कीक्या महत्ता है। वन पंचायत सक्रिय हुई और धीरे-धीरे बांज और चौड़ी पत्ती वाले पेड़ों का जंगल खड़ा होने लगा। इससे पानी के कुछ नए स्रोत फूटे तो कुछ पुनर्जीवित हुए, जो अब साल भर लबालब रहते हैं।
इसी की बदौलत आज सोन गांव सोना उगल रहा है। 31 साल पहले पड़े सूखे की मार ने सोन गांव के बुजुर्गों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया था। उन्होंने ग्रामीणों एकजुट किया और सबसे बड़ी समस्या बन चुकी पेयजल किल्लत पर मंथन हुआ। तय हुआ कि जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने के लिए पेड़ लगाए जाएं। फिर क्या था वन व ग्राम पंचायत ने गांव की सीमा से पौधरोपण शुरू किया। बरसात में पौध लगाने का क्रम साल दर साल चलता गया। बांज, कलौन, उतीस व चौड़ी पत्ती वाले अन्य पौधे बड़े होने लगे और लहलहाने लगा हरा-भरा जंगल। इस हरियाली के बीच दो प्रमुख जलस्रोत भी जीवित हो उठे।
यही नहीं, पानी मिलने पर गांव को तो सुकून मिला ही हरियाली का दायरा भी बढ़ने लगा। सिलसिला यही नहीं रुका। करीब 1200 की आबादी वाली इस ग्रामसभा में हरियाली बचाए रखने को नियम भी बनाए गए। वन पंचायत की देखरेख में ही पातन की अनुमति मिलती है। सबकी मेहनत से 200 हेक्टेयर भूमि में फैले इस जंगल में वन्यजीवों की सुरक्षा के लिहाज से हथियारों के साथ प्रवेश वर्जित है। मवेशी भी यहां नहीं ले जाए जाते। गांव तक पानी पहुंचाने वाले स्रोतों की नियमित सफाई होती है। जंगल के लिए बनाए गए नियम को आज तक किसी ने नहीं तोड़ा। यहां ग्रामीणों के साथ- साथ बाहर से आने वाले लोगों पर भी नजर रखी जाती है। ताकि पेड़ों को कोई क्षति न पहुंचा सके।- गिरीश पांडे, ग्राम प्रधान हम लोगों के लिये पानी के स्रोत सबसे महत्वपूर्ण हैं। स्रोत का ताजा, शुद्ध और ठंडा पानी हमें जंगल की बदौलत ही मिल रहा है।- प्रकाश चंद्र सुयाल, ग्रामीण
जंगल और पानी के कारण गांव की दिक्कतें काफी हद तक कम हुई हैं। शहरी इलाके में जहां गर्मियों में पेयजल वितरण व्यवस्था ध्वस्त हो जाती है, वहीं स्रोत सालभर हमारी प्यास बुझाते हैं।- हेम चंद्र, ग्रामीण गांव के हर व्यक्ति ने सामूहिक उत्तरदायित्व की मिसाल पेश की है। अब आने वाली पीढ़ी को भी इसका संवर्धन करना होगा। -सुरेश सुयाल, ग्रामीण 200 हेक्टेयर में फैले घने जंगल के बीच अब स्रोत उगल रहे हैं ठंडा पानी
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