देश की सरकार का रवैया फिलहाल कुछ ऐसा है !
By_Arvind Shesh
कोई डकैत आए, आपका सारा धन लूट ले, आपका एक पांव काट ले और कटे हुए पांव की जगह अपने खर्चे से नकली पांव लगवा दे! कैसा महसूस होगा आपको? इस सस्ते और हल्के वाक्य में कही गई बात का आपका जवाब आपको मालूम है! आपको साफ बताऊं, आप इतने भी भोले नहीं हैं!
लेकिन अभी हमारा लगभग समूचा बौद्धिक जगत इसके जवाब में यह कहने को तैयार बैठा है, बड़ी प्रतिबद्धता से, बड़े जतन से उन्होंने इस जवाब की जमीन बनाई है कि अहा… थैंक्स गॉड… डकैत कितना भला था… उसने मेरे पांव तो काट लिए, लेकिन देखो, अपने खर्चे से मुझे नकली पांव लगवा दिया, वरना मैं तो चल-फिर भी नहीं पाता..!
ये लोग मुझे अपने गांव के उन बाल काटने वाले अनपढ़ तीन भाइयों से अलग नहीं लगते हैं, जिनके खाते में सरकार ने पांच सौ रुपए भिजवाए और वे लोग अपने माथे पर मेहरबानी का झंडा लहराते हुए सरकार का कीर्तन गा रहे थे! जबकि तीन महीने की बंदी में तीन भाइयों के सैलूनों से उनकी रोजाना की आमदनी के हिसाब से उन्हें सत्तर-अस्सी हजार रुपए का नुकसान हो चुका था..! समझदारी के दो विपरीत ध्रुव हैं, दोनों एक ही निष्कर्ष पेश कर रहे हैं..!
ये लेख अरविंद शेष के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है.
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