हिन्दू शब्द भारत के अल्पजन जन्मजात शोषक वर्ग का सुरक्षा कवच है
हिन्दू कौन ?
अंबेडकरवादी और मुस्लिम लिबरल अक्सर हिंदुओं की आलोचना करते रहते हैं।
लेकिन ऐसे लोगों से जब कोई प्र्तिप्र्श्न करते हुये पूछता है कि हिन्दू कौन? वे बगले झाँकने लगते हैं। जवाब भी देते हैं तो मुझे उनपर करुणा ही होती है। वास्तव मे हिन्दू कौन, इसका सटीक उत्तर सामने आना जरूरी है। क्योंकि ‘ हिन्दू’ शब्द की आड़ मे ही भारत का अत्यंत अल्पजन जन्मजात शोषक वर्ग खुद को प्रोटेक्ट करने मे सफल हो जाता है: हिन्दू की सही समझ न होने के कारण ही गैर-हिन्दू उन लोगों को भी टार्गेट कर लेते हैं, जो वास्तव मे हिन्दू नहीं हैं। यह सही है कि इस्लाम विजेताओं ने भारत के हारे हुये लोगों को ‘हिन्दू’ कहना शुरू किया।
हिन्दू कहने के पीछे उनका उनका मुख्य आशय पराधीन बनाए गए लोगों ‘ गुलाम’ के रूप मे एड्रेस करना ही रहा होगा। हो सकता इन्हे ‘काला’ ,’चोर’ बताना भी मकसद रहा हो ,किन्तु मुख्यतः ‘गुलाम’ के रूप एड्रेस करने के लिए उन्होने ‘हिन्दू’ शब्द का ईज़ाद किया , ऐसा मेरा मानना है। आज इस्लाम विजेताओं का ईज़ाद किया हुआ शब्द ही भारत और भारत के मूलनिवासियों के लिए ‘ आफत’ बन गया है।क्योंकि इसी शब्द से विकसित ‘ हिन्दुत्व ‘ की आड़ मे भारत के प्राचीनतम विदेशागत साम्राज्यवादी (आर्यों) की वर्तमान पीढी देश के सम्पदा-संसाधनों -सत्ता पर एकाधिकार स्थापित करने मे समर्थ हुई है।
बहरहाल हिन्दू कौन इस पर विस्तार से कभी अलीख लिखकर समझाऊंगा । अभी सिर्फ संक्षेप मे।बहरहाल जिस हिन्दू धर्म से आज हिंदुओं की पहचान है, वह हिन्दू -धर्म , हिन्दू भगवान द्वारा सृष्ट वर्ण- धर्म है, जिसमें जीवन का चरम लक्ष्य मोक्ष अर्जित करने के लिए हिन्दू भगवान के विभिन्न पार्ट्स से जन्मे 4 किस्म के मानव समुदायों का कर्म (Profession ) निर्दिष्ट किया गया है। यदि विभिन्न वर्णों के प्रोफेशन पर गौर करें तो पाएंगे कि वर्ण-व्यवस्था के प्रवर्तकों ने, दुसाध के शब्दों मे शक्ति के समस्त स्रोत (आर्थिक-राजनीतिक-शैक्षिक-धार्मिक ) चिरस्थाइ तौर पर ब्राह्मण-क्षत्रिय- वैश्यों के लिए आरक्षित कर दिया। वही धर्माधारित वर्ण-व्यवस्था में बड़े शातिरना अंदाज़ मे मूलनिवासियों(दलित-आदिवासी-ओबीसी ) को शक्ति के समस्त स्रोतों से बहिष्कृत कर चिरकाल के लिए अशक्त व गुलाम बना दिया।
इस सिद्धांत के आधार पर ब्राह्मण-क्षत्रिय- वैश्य ही असल हिन्दू हैं जिन्हे Sources of Power के भोग का दैविक-अधिकार Divine Right है। दूसरी ओर मूलनिवासी बहुजन Sources of Power से पूरी तरह exclude होने के कारण Divine Slaves(दैविक- गुलाम) की श्रेणि मे आते हैं। तो संक्षेप मे हिन्दू वह हैं जिन्हें शक्ति के स्रोतों के भोग का अधिकार हिन्दू-धर्म और हिन्दू भगवनों ने दिया है। वर्ण-व्यवस्था का अर्थशास्त्र चीख-2 कर बताता है, कि बहुजनॉन को दैविक अधिकार का गुलाम बनाए रखने के लिए ही उन्हे वर्ण-व्यवस्था के प्रावधानों के तहत जीवन जीने के लिए विवश किया गया। जिन बहुजनों को इसका इल्म हुआ वे वर्ण-धर्माधारित हिन्दू धर्म से नाता तोड़कर अन्य धर्मों का आश्रय लिए । Divine-Slaves अधिकांश बहुजन ही इस फर्क को न समझ पाने के कारण गर्व से हिन्दू कहते पाये जाते हैं।
यह बात मूलनिवासियों को ही समझना चाहिये और गैर-हिन्दू समुदायों को । ऐसे मे गैर -हिन्दू धर्मावलम्बी भी बहुजनों को हिन्दू समझ कर रणनीतिक भूल करते है। उनके ऐसा समझने और समझाने पर हिन्दू गुलाम भी हिन्दू शोषकों का ढाल बनकर सामने आ जाते हैं। अतः हिन्दू कौन !, यह जानने के बाद ही देश को नर्क बनाने वाले हिंदुओं के खिलाफ़ ही रणनीति बनाई जा सकती है, जो इतिहास की बहुत बड़ी जरूरत है। आज रियल हिन्दू ही भारत मे शक्ति के स्रोतों पर एकाधिकार जमा कर देश को समस्यायो के दलदल फंसा दिये है। इनको सिर्फ मूलनिवासियों की तानाशाही सत्ता के ज़ोर से नियंत्रित किया जा सकता है ,जैसे दक्षिण अफ्रीका के लोगों ने तानाशाही सत्ता के ज़ोर से वहाँ शक्ति के स्रोतों पर एकाधिकार जमाये गोरों को आज दक्षिण अफ्रीका छोडने के लिए मजबूर कर दिया है।
आज जो लोग हिन्दुत्व और हिंदुओं से त्रस्त हैं, उन्हे दक्षिण अफ्रीका मूलनिवासियों से प्रेरणा लेकर सिर्फ और सिर्फ शक्ति के स्रोतों के संख्यानुपात मे बँटवारे के आधार पर हिंदुओं के खिलाफ देश के तमाम वंचितों को संगठित करना होगा: धर्मनिरपेक्षता जैसे व्ययर्थ के मुद्दों से दूर र्राहना होगा। धर्मनिरपेक्षता उस देश मे प्रभावी हो सकता है, जहां के लोग सभी व विवेकवान हैं।भारत अभी अर्द्ध-सभी देश है , जहां धर्मनिरपेक्षता हिंदुओं के प्रगतिशील तबको का एक साजिश है। बहरहाल भारत को संमतामूलक देश बनाने के लिए हिंदुओं के खिलाफ लामबंद होना जरूरी और इसके लिए हिन्दू कौन की सही जानकारी देना प्राथमिक कार्य है।हिन्दू’ शब्द की आड़ में भारत का अल्पजन जन्मजात शोषक वर्ग खुद को सुरक्षित रखने में सफल हो गया है
~ एच एल दुसाध
{ लेखक तथा प्रख्यात सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक , लखनऊ}
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