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Hindi - Opinions - August 3, 2021

हे पुरुष प्रधान समाज महिलाएं अब खेल भी रही हैं और मेडल जीत रही हैं

ये सच है हमारा समाज  पुरुष प्रधान समाज रहा है और कई मामलों में आज भी है. एक बात मैं यहाँ स्पष्ट  कर दूँ कि पुरुष प्रधान समाज ने महिलाओं को दो जाति वर्ग में बांटा हैं. पहला धार्मिक रूप से जाति-वर्ग में और दुसरा लिंग के आधार पर. आज भी इस देश के बहुत सारे परिवारों में महिलाओं को रसोई और बेड रूम की चारदीवारी से ज्यादा नहीं सोचा जाता. सभी जानते होंगे हमारे देश का राष्ट्रीय खेल हॉंकी है. लेकिन भारतीयों के दिल में इंगलैंड का राष्ट्रीय खेल क्रिकेट बसता है. गल्ली-मोहल्ले, स्कूल या कॉलेज में ज्यादातर क्रिकेट को ही बढ़ावा दिया जाता है. हमारे राष्ट्रीय खेल का ये हाल है कि हॉंकी के महान खिलाड़ी  मेजर ध्यानचन्द्र को हमारी पीढ़ी नहीं जानती. मगर क्रिकेट के हर खिलाड़ी का नाम बच्चें, बूढ़े यहाँ तक की महिलाओं के जुबान पर भी होता है. वजह भी है इस देश में क्रिकेट के खिलाड़ियों को सबसे ज्यादा प्रमोट भी किया जाता है, मीडिया और टीवी विज्ञापन के जरिए. ऐसे में बेचारे दर्शकों को बाकि खेल के खिलाड़ियों के नाम कैसे याद रहेंगे. उनका खेल या उनका इंटरव्यू भी किसी बड़े अख़बार या टीवी चैनल वाले कहाँ दिखाते. बाकि टीवी विज्ञापन तो आप भूल ही जाएं. आज की युवा पीढ़ी ने धावक पीटी उषा को भी नहीं जानती होगी. आज की युवा पीढ़ी पर एक सर्वे कर लीजिए. मैं दावे के साथ कहता हूँ पीटी उषा के बारे में आज की युवा पीढ़ी नहीं बता पाएगी. चलिए कोई नहीं थोड़ा सा जिक्र पीटी उषा के बारे में मैं ही कर देता हूँ. पीटी उषा केरल की निवासी हैं. इस देश के लिए उनकी उपलब्धी.

1980- मास्को ओलम्पिक खेलों में भाग लिया. कराची अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 4 स्वर्ण पदक प्राप्त किए. 1981- पुणे अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 2 स्वर्ण पदक प्राप्त किए. हिसार अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 1  स्वर्ण पदक प्राप्त किया. लुधियाना अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 2 स्वर्ण पदक प्राप्त किए. 1982- विश्व कनिष्ठ प्रतियोगिता, सियोल में 1 स्वर्ण व एक रजत जीता. नई दिल्ली एशियाई खेलों में 2 रजत पदक जीते. 1983- कुवैत में एशियाई दौड़कूद प्रतियोगिता में 1  स्वर्ण व 1 रजत पदक जीता. नई दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 2 स्वर्ण पदक प्राप्त किए. 1984-  इंगल्वुड संयुक्त राज्य में अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 2  स्वर्ण पदक प्राप्त किया. सिंगापुर में 8 देशीय अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 3 स्वर्ण पदक प्राप्त किए. 1985- चेक गणराज्य में ओलोमोग में विश्व रेलवे खेलों में 2  स्वर्ण व 2 रजत पदक जीते, उन्हें सर्वोत्तम रेलवे खिलाड़ी घोषित किया गया। भारतीय रेल के इतिहास में यह पहला अवसर था जब किसी भारतीय स्त्री या पुरुष को यह सम्मान मिला. इनके योगदान के लिए पद्म श्री पुरस्कार भी मिल चुका है. खैर देश के लिए खेलने वाली पीटी उषा के समय सोशल मीडिया का चलन नहीं था. नहीं तो गूगल पर इनकी भी जाति ढूंढी जाती. जैसे अभी मेडल जीतने वाली लड़कियों की ढूंढी जा रही है. 

अब बात असम की हिमा दास की करते हैं. हिमा दास भी धाविका हैं. आईएएएफ वर्ल्ड अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं.  2018 एशियाई खेल जकार्ता में हिमा दास ने दो दिन में दूसरी बार महिला 400 मीटर में राष्ट्रीय रिकार्ड तोड़कर रजत पदक जीता है. असम विधानसभा चुनाव से पहले इनके बढ़िया खले प्रदर्शन के लिए असम सरकार के डीएसपी बनाया है. 

झारखंड की दीपिका कुमारी महतो तीरंदाजी में अन्तराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी हैं अपने कैरियर में कई पद जीत कर देश का नाम रौशन कर चुकी हैं. लेकिन आज की युवा पीढ़ी इन्हें भी नहीं जानती. 

मणिपुर की मीराबाई चानू जिन्होंने हाल ही के ओलंपिक खेल में देश के लिए पहला रजत पदक जीता. भार उठा कर( जिसे खेल की भाषा में भारोत्तोलन कहा जाता है)  देश का मान बढ़ती हैं. उन्हें भी 2018 में राष्ट्रपति से पद्म श्री सम्मान मिल चुका है. 

पी.वी. सिंधु आंध्र प्रदेश की निवासी हैं बैडमिंटन के क्षेत्र में भारत का नाम रौशन करती हैं. ओलंपिक में कांस्य पदक जीता है. ये दुसरी महिला हैं जिन्होंने भारत का सर ऊँचा किया.  

आज सिर्फ बात करते हैं देश की महिला खिलाड़ियों की जो ओलंपिक में मेडल ही नहीं जीत रही पुरुष-प्रधान समाज वाले देश का गर्व से सर भी ऊँचा कर रही हैं. ऐसी बात नहीं है कि पुरुषों के अन्दर टैलेंट नहीं हैं वो मेडल नहीं जीतते हैं. लेकिन आज भी पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को वो जगह नहीं मिली जो शुरू से पुरुषों मिलते आई है. 

कुछ दिन पहले आपको याद होगा ट्विटर पर सुरेश रैना ने अपनी जाति ब्राह्मण बताई थी. उसके बाद से मीडिया में खबर से लेकर ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा गर्व से कहो हम ब्रह्मण हैं. एक बात बताए सुरेश रैना भारत के लिए खेलते हैं या फिर ब्राह्मण जाति के लिए. ये कोई पहला मामला नहीं है. ऐसे हजारों मामले मिल जायेंगे इस देश में. 

महिला खिलाड़ियों के चंद नाम ही मैंने लिखे हैं जिनके ऊपर न रिलायंस पैसा लगाएगा T20 की तरह, ना ही सरकार या फिर कोई बड़ी विज्ञापन कंपनी. खैर ये लड़कियां फिर भी मायूस नहीं होंगी. ये कभी सोशल मीडिया से नहीं लिखेंगी की मेरी जाति ये हैं और मैं इस धर्म से हूँ. क्योंकि इनकी जीत पर तो  पुरुष प्रधान  समाज ने ही गूगल पर इनकी जाति ढूंढनी शुरू कर दी है. 

खैर पुरुष प्रधान समाज को महिलाओं की इस जीत की बधाई..

लेख़क नूरुल होदा एक स्वतंत्र पत्रकार है

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