जयंती विशेष: संत बाबा गाडगे बहुजन क्रान्ति के सूरमा थे
BY: Ankur sethi
भारत में समाज सुधार आंदोलन का यूँ तो बड़ा इतिहास रहा है पर इनमें एक महत्वपूर्ण नाम बाबा गाडगे का भी है। बहुजन समाज के लिए लंबे समय तक समर्पित रहने वाले बाबा गाडगे आज की दिन यानि 23 फरवरी सन् 1876 को जन्मे थे. लंबे समय तक बुद्धिजीवियों का ध्यान बाबा गाडगे से हटा रहा लेकिन अब समाज को उनके योगदानों के बारे में पता लगने लगा है.
बाबा गाडगे संत कबीर और रैदास से बहुत प्रभावित थे। वो महाराष्ट्र के अमरावती जिले में शेगाँव के धोबी जाति के एक गरीब परिवार में जन्मे थे. उनकी माता का नाम सखूबाई और पिता का नाम झिंगराजी था।
उन्हें प्यार से ‘डेबू जी’ कहते थे। डेबू जी हमेशा अपने साथ मिट्टी के मटके जैसा एक पात्र रखते थे। इसी में वे खाना भी खाते और पानी भी पीते थे। महाराष्ट्र में मटके के टुकड़े को गाडगा कहते हैं। इसी कारण कुछ लोग उन्हें गाडगे महाराज तो कुछ लोग गाडगे बाबा कहने लगे और बाद में वे संत गाडगे के नाम से प्रसिद्ध हो गये।
गाडगे बाबा और डा. भीमराव अम्बेडकर के बहुत अच्छे संबध रहे, वैसे तो गाडगे उम्र में पन्द्रह साल बड़े थे. लेकिन वे डा. आंबेडकर के कार्यों से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। कारण था कि जो समाज सुधार सम्बन्धी काम वो अपने कीर्तन के माध्यम से कर रहे थे, वही कार्य डा0 आंबेडकर राजनीति के माध्यम से कर रहे थे। गाडगे बाबा के कार्यों की ही देन थी कि डा. आंबेडकर तथाकथित साधु-संतों से दूर ही रहते थे.
भारतीय समाज में अगर किसी को स्वच्छता का प्रतीक कहा जाए तो वो संत गाडगे बाबा ही हैं. उन्होंने झाड़ू, श्रमदान और पुरूषार्थ को अपना हथियार ही नहीं बल्कि उद्देश्य भी बनाया, जिसको लोगों ने सराहा और अपनाया भी. उस वक्त गाडगे बाबा अचानक किसी गांव में पहुंच जाते थे और झाड़ू से सफाई करने में मग्न हो जाते जिसको देखकर गांववासी बडे प्रभावित होते थे.
पर आज के दौर में सरकारें स्वच्छता अभियान तो चला रही है और करोड़ों रुपये भी खर्च कर रही है, पर वो बाबा गाडगे के समाजिक कार्यों को भूल गयीं. उनके योगदान का जिक्र कही नहीं किया जाता पर धीरे धीरे ही सही बाबा गाडगे की विचारधारा महाराष्ट्र के साथ साथ पूरे भारत में फैलती जा रही है.
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