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Culture - Opinions - Social - August 18, 2019

अटल बिहारी वाजपेयी और नेली नरसंहार का क्या है रिश्ता ?

असम के नेल्ली कांड और अटल बिहारी वाजपेयी का क्या रिश्ता हो सकता है, ये कई लोगों को समझ नहीं आएगा। बहुत सारे लोगों को अब 1983 के नेल्ली कांड की याद भी नहीं है या उसके बारे में कुछ पता भी नहीं है। हालांकि, ये ऐसा कांड है जिसका अटल बिहारी वाजपेयी से अटूट रिश्ता है।

 

यह सही है कि अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपाई होते हुए भी एक उदार छवि प्रचारित की जाती रही है, भले ही इसके अपने कारण हो सकते हैं।

 

हालांकि असम के नेल्ली में 1983 के फरवरी माह में हुए दंगे एक ऐसा घटनाक्रम है जिसके बारे में जानकर कई लोगों की आंखें खुली रह जाएंगी।

 

वैसे इसके बारे में 28 मई 1996 को लोकसभा में विश्वास मत पर हो रही बहस के दौरान सीपीआई के इंद्रजीत गुप्ता भी बोल चुके हैं और संसद की कार्यवाही में यह दर्ज है।

 

इसके अलावा, वरिष्ठ पत्रकार एनपी उल्लेख ने द अनटोल्ड वाजपेयी: पॉलिटीशियन एंड पेराडॉक्स नाम की किताब में भी इसका जिक्र किया है।

 

मामला ये था कि असम उन दिनों काफी अशांत था और कई संगठन विधानसभा चुनावों का बहिष्कार कर रहे थे। उसी समय भारतीय जनता पार्टी की तरफ से अटल बिहारी वाजपेयी असम के नेल्ली में चुनाव प्रचार करने गए।

 

वहां उन्होंने घुसपैठियों के संवेदनशील मुद्दे पर बेहद भड़काऊ भाषण दे दिया। उन्होंने कहा: “असम में इतने घुसपैठिए आ गए हैं। अगर ये लोग पंजाब में आए होते तो इन्हें काटकर फेंक दिया गया होता।”

 

कई संदर्भ देकर उल्लेख एनपी ने लिखा है कि वाजपेयी के इस भाषण से जनता भड़क गई और देखते ही देखते कुछ ही घंटों में 2000 से ज्यादा लोग मार डाले गए।

 

हालात यहां तक हो गए थे कि खुद भाजपा ने अपने को अटल बिहारी वाजपेयी के इस बयान से खुद को अलग कर लिया था।

 

ये बात तो सही है कि ब्राह्मण अटल बिहारी वाजपेई का चरित्र चित्रण बड़े जाल बुन कर किया गया था और वे उसकी आड़ से बेहद अप्रिय और नफ़रत भरे काम कर रहे थे.

 

जब कवि का आवरण पहनते थे तो ऐसी कविता रचते थे

 

मै शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षार

डमरू की वह प्रलयध्वनि हूं जिसमे नचता भीषण संहार

रणचंडी की अतृप्त प्यास, मै दुर्गा का उन्मत्त हास

मै यम की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुँवाधार

 

फिर अंतरतम की ज्वाला से जगती मेंं आग लगा दूं मैंं

यदि धधक उठे जल थल अंबर, जड़ चेतन तो कैसा विस्मय

हिन्दू तन मन हिन्दू जीवन रग रग हिन्दू मेरा परिचय॥

 

इन पंक्तियों में कवि क्या कहना चाहता है.. किसे डरा रहा है..? अपना इतना भयानक परिचय क्यों दे रहा है?

 

ये था असली चरित्र अटल बिहारी बाजपेई का

 

स्रोत- द अनटोल्ड वाजपेयी: पॉलिटीशियन एंड पेराडॉक्स

हिंदी अनुवाद: महेंद्र यादव की वाल से

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