कब मिटेगा छुआछूत का कलंक ?
बीजेपी सरकार चाहे जितना दलित हितेषी होने का ढोंग करें, मोदी चाहे जितना बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का नाम अपने भाषणों में दोहराते हो, अमित शाह चाहे जितना दलितों के घर भोजन करने का दिखावा करें लेकिन जातिवाद और छूआछूत ऐसा कोढ़ है जिससे छुटकारा पाना आसान नहीं है।
जातिवाद और छुआ-छूत का असली परिचय देती यह तस्वीर यूपी के बुंदेलखंड की है, हमीरपुर जिले के मौदहा के गढ़ा गांव में एक मंदिर में दलितों के प्रवेश को लेकर मंदिर पुजारी ने रोक लगा दी है, मंदिर पुजारी के इस फरमान के बाद गांव के दलितों में आक्रोश है।
वहीं इस घटना पर समाजिक चिंतकों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, उन्होंने कहा कि बार-बार अपमानित होने और पीटे जाने के बाद भी दलित मंदिर में क्या करने जाते हैं? मंदिर कोई स्कूल या अस्पताल तो नहीं कि वहां बिना जाए दलितों का उद्धार नहीं होगा।
दरअसल मंदिर के पुजारी कुंवर बहादुर सिंह ने दलितों के मंदिर में प्रवेश करने पर रोक लगा दी है, यहां तक मंदिर में रामायण का पाठ पढ़ने पहुंचे दलित बच्चों को पुजारी ने फटकार लगाई औऱ उसे वहां से भगा दिया। पुजारी ने कहा कि मंदिर उसके पुरखों का है इसलिए मंदिर में कोई दलित प्रवेश नहीं कर सकता।
गांव में रहने वाले उमाशंकर श्रीवास ने बताया कि उनका भतीजा अपने साथी के साथ रामायण का पाठ करने मंदिर गया था, जिसे पुजारी ने घुसने से रोक दिया। शिकायत मिलने पर एसडीएम सुरेश मिश्रा ने कानूनगो और लेखपाल को जांच के लिए भेजा है।
एसडीएम के मुताबिक, मंदिर में दलितों के जाने पर पाबंदी लगाने की जानकारी मिली है। राजस्व विभाग की टीम को निरीक्षण के लिए गांव भेजा गया है। रिपोर्ट आने के बाद ही कार्रवाई की जाएगी।
उत्तर प्रदेश में दलितों के मंदिर में प्रवेश को लेकर यह कोई पहली घटना नही हैं। तमिलनाडु, उत्तराखंड, ओडीशा, और गुजरात के मंदिरों में भी दलितों के प्रवेश पर सख़्त पाबंदी लगाई जा चुकी है।
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