कांचा इलैया की किताब पर प्रतिबंध लगाने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज
new Delhi. बहुजन लेखक, चिंतक कांचा इलैया पिछले एक महीने से अपनी किताब ‘पोस्ट हिंदू’ इंडिया’ के अनुवादित अंश ‘सामाजिका स्मगलर्लु कोमाटोल्लू’ पर हुए विवाद में घिरे हैं. आर्य वैश्य समुदाय की ओर से पर आपत्ति जताई गई थी, साथ ही इस किताब को बैन करने के लिए उच्चतम न्यायालय में याचिका भी दायर की गई थी. 13 अक्टूबर को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने लेखक की अभिव्यक्ति के अधिकार का हवाला देते हुए इस याचिका को ख़ारिज कर दिया.
द हिंदू के अनुसार कोर्ट ने कहा कि किताबों पर प्रतिबंध लगाना उसकी क्षमताओं में नहीं आता क्योंकि ये लेखक के उसके आस-पास समाज के बारे में विचार हैं, जिसे व्यक्त करने के लिए वे स्वतंत्र हैं. कोर्ट से किसी मुक्त अभिव्यक्ति को रोकने के लिए नहीं कहा जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार को हमेशा सबसे ऊपर रखा है.
इकोनॉमिक टाइम्स की ख़बर के अनुसार चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली एक बेंच ने किताब पर प्रतिबंध की मांग करने वाले वकील से कहा कि वे किसी किताब को सिर्फ इसलिए बैन नहीं कर सकते क्योंकि वो विवादित है.
आपको बता दें कि पोस्ट हिंदू इंडिया नाम की यह किताब 2009 में आई थी. इस किताब में विभिन्न जातियों के बारे में लेखों की एक श्रृंखला थी, जिसका हाल ही में तेलुगू अनुवाद हुआ. इस किताब के एक लेख में आर्य-वैश्य समुदाय को ‘सोशल स्मगलर’ (सामाजिक तस्कर) कहा गया है, जिसके बाद इलैया के ख़िलाफ़ इस समुदाय ने तीखा विरोध शुरू किया और उन्हें जान से मारने की धमकी मिली, साथ ही उन पर हमले की कोशिश भी की गई.
इस किताब पर प्रतिबंध लगाने की ये जनहित याचिका आर्य वैश्य एसोसिएशन के नेता और वकील रामनजनेयुलू द्वारा दायर की गई थी, जिनका कहना था कि ये किताब पूरे आर्य वैश्य समुदाय को बदनाम करने की कोशिश है, इसलिए इसे बैन करना चाहिए.
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकारते हुए कहा कि इलैया की किताब को प्रतिबंधित करने का उसका निवेदन ‘महत्वाकांक्षी’ ज़्यादा लग रहा है. द हिंदू के अनुसार कोर्ट ने कहा, ‘जब कोई लेखक किताब लिखता है, तो ये उसकी अभिव्यक्ति का अधिकार है. हमें नहीं लगता कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस कोर्ट का किसी किताब/किताबों पर प्रतिबंध लगाना उचित होगा.’
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