जन्मदिन विशेष, जानिए AMU के संस्थापक सर सयैद अहमद खान के जीवन की रोचक बातें
‘तालीम अगर इसके साथ तरबियत न हो या जिस तालीम से क़ोम-क़ोम न बन सके,
वह दर-हकीकत किसी कदर, किसी लायक नहीं है’
“सर सैय्यद एक प्रफुल्लित समाज सुधारक थे । वह तर्कसंगत व्याख्याओं द्वारा धर्म के साथ-साथ आधुनिक वैज्ञानिक विचारों का सामंजस्य करना चाहते थे, लेकिन बुनियादी विश्वास को ठेस पहुंचाकर नहीं। वह नई शिक्षा प्रणाली के प्रचार-प्रसार को लेकर चिंतित थे। वह सांप्रदायिक व अलगाववादी नहीं थे। उन्होंने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि राजनीतिक और राष्ट्रीय हितों में धार्मिक विचारों को नहीं होना चाहिए”
सर सैयद अहमद खान का जन्म 17 October 1817 को दिल्ली में हुआ था. बचपन से पढ़ने लिखने का शौक रखने वाले सर सैयद अहमद खाँन ने अपनी मेहनत के बल पर ईस्ट इंडिया कंपनी के समय 1841 में उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में उपन्यायाधीश का पद हासिल किया था. दिल्ली के सादात (सैयद) खानदान में पैदा हुए सर सैयद अहमद का उत्तर प्रदेश से लगाव यही से हुआ.
भारत के स्वतंत्रता संग्राम 1857 के दौरान मुसलमानों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। इन सब के बीच एक ऐसा शख्स आया जिसने मुसलमानों की नुमाईंदगी की. जिसने क़ौम की रहबरी की कमान अपने हाथ में ली। उन्होंने मुसलमानों की आधुनिक शिक्षा और सामाजिक सुधारों का प्रचार-प्रसार एक महत्वपूर्ण आंदोलन के रूप में शुरु किया। सर सैय्यद के व्यक्तित्व की खासियत यह थी कि वह एक महान दूरदर्शी, राजनेता, सामाज सुधारक, न्यायविद, शिक्षक, लेखक, राजनीतिज्ञ आदि के साथ-साथ हर क्षेत्र में अपने बहुमुखी प्रतिभा को साबित किया था। उन्होंने अपनी शैक्षिक जीवन के दौरान ही अरबी, फ़ारसी, गणित, विज्ञान, चिकित्सा और साहित्य का ज्ञान प्राप्त किया। वह एक महान आलोचक भी थे, और उन्होने हिंसा छोड़कर कलम का जबाब कलम से देने को अपना हथियार बनाया।
सर सैय्यद में अपनी कौम के सामाजिक उत्थान के लिए जुनून और दृढ़ता देखते ही बनती थी यह उनकी क्षमता ही थी कि उन्होने उर्दू भाषा को पुनर्जीवित करने के लिए प्रणोदक के रूप में काम किया, And 11 march, 1872 को उन्होंने तहज़ीबुल अख़्काल लिखा । उन्होंने बर्तानिया हुकूमत के शासकों की मुसलमानों के प्रति दुश्मनी को दूर करने के लिए कड़ी मेहनत की तथा मुसलमानों को पवित्रता और सादगी से इस्लाम के मूल सिद्धांतों पर वापस आने की अपील की।
सर सैय्यद ने अंग्रेजी शिक्षा की वकालत की, इतना ही नहीं उन्होने मुसलमानों के लिए अपनी आवाज़ बुलंद की और कहा कि मेरी क़ौम जब तक “एक हाथ में विज्ञान, दुसरे हाथ में फलसफ़ा और पेशानी पर कल्माये तयबा” न रखेगी, कामयाबी की बुलंदियां नहीं छू सकती। उन्हें ऐसा करने पर अपने ही क़ौम के लोगों की मुखालफत का सामना करना पड़ा। हालांकि, साहस और बुद्धि के साथ, उन्होंने इन बाधाओं पर विजय प्राप्त की।
Sun 1864 In, They ‘Translation Society’ की स्थापना की, जिसे बाद में ‘Scientific Society’ के नाम से जाना जाने लगा । यह Society अलीगढ़ में स्थित थी । उन्होंने विज्ञान और अन्य विषयों पर अंग्रेजी में पुस्तकों का उर्दू में अनुवाद के साथ प्रकाशित भी किया । सामाजिक सुधारों पर उदार विचारों को प्रसारित करने के लिए उनहोंने एक अंग्रेजी-उर्दू पत्रिका प्रकाशित भी की। उन्होने कई सामाजिक पूर्वाग्रहों को खत्म करने की वकालत की, जिससे क़ौम को पिछड़ेपन में रखा गया था । उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी 1875 में अलीगढ़ में मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज (M.A.O.) की स्थापना। यह शैक्षिक संस्था English Medium के माध्यम से मानविकी और विज्ञान में शिक्षा प्रदान कराने लगा। प्रारंभ में इसके कई स्टाफ सदस्य इंग्लैंड से आए थे। मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज (M.A.O.) कॉलेज ही बाद में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (Aligarh Muslim University) के रूप में स्थापित हुआ।
सैय्यद अहमद खान और MAO के साथ मुस्लिम जागृति की आवाज को ही अलीगढ़ आंदोलन के रूप में जाना जाने लगा। इतना ही नहीं सर सैयद ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी अहम किरदार निभाया उन्होंने कुछ हिंदू और मुस्लिम नेताओं के समर्थन से भारतीय देशभक्ति संघ की स्थापना की। उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एकता पर जोर दिया। उनका कहना था कि “ भारत एक खुबसूरत दुल्हन है, हिन्दू और मुस्लमान उसकी दो आंखें ”
सर सैय्यद अहमद खान भारत के सबसे बड़े मुस्लिम समाज सुधारकों में से एक थे। उन्होंने कट्टरता, अज्ञानता, संकीर्ण मनोवृत्ति और कट्टरता के खिलाफ जीवन भर संघर्ष किया और मुक्त सोच पर जोर दिया। अंग्रेजो ने भी उनके इस दृढ परिश्रम का लोहा मना और इन्हें ‘Knight Commander of the order of Star of India’ की उपाधि देकर सम्मानित भी किया| सर सैयद अहमद कि मृत्यु 27 march 1898 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था.
हर साल की तरह आज भी हम 17 October 2017 को सर सैयद अहमद खान का 200वाँ जन्मदिन बड़े ही ख़ुशी और उल्लास के साथ मना रहे हैं । लेकिन उनके योगदान को सिर्फ़ और सिर्फ़ उनकी योमे पैदाइश मानकर अदा नहीं कर सकते बल्कि हम इस महापुरुष को शत-शत नमन भी करते हें और सदियों तक करते रहेंगे ।
-शैख़ एम. निज़ाम, रिसर्च स्कॉलर
सेण्टर फॉर स्टडीज इन इकोनॉमिक्स एंड प्लानिंग
सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ गुजरात, गांधीनगर (गुजरात)
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