जानिए ललई सिंह यादव की वो बातें जो आप नहीं जानते होंगे ?
नई दिल्ली। ललई सिंह यादव का जन्म एक सितम्बर 1911 को ग्राम कठारा रेलवे स्टेशन-झींझक, जिला कानपुर देहात के एक कृषक परिवार में हुआ था. ललई सिंह यादव का परिवार अंधविश्वास और रूढ़ीवाद के पीछे दौड़ने वाला नहीं था. ललई सिंह यादव ने साल 1928 में हिन्दी के साथ उर्दू लेकर मिडिल पास किया. साल 1929 से 1931 तक फॉरेस्ट गार्ड रहे. 1931 में ही का ललई सिंह यादव का विवाह श्रीमती दुलारी देवी के साथ हुआ. 1933 में शशस्त्र पुलिस कम्पनी में कान्स्टेबिल पद पर भर्ती हुए.
हिन्दू शास्त्रों में व्याप्त घोर अंधविश्वास, विश्वासघात और पाखण्ड से वह तिलमिला उठे. स्थान-स्थान पर ब्राह्मण महिमा का बखान तथा दबे पिछड़े शोषित समाज की मानसिक दासता के षड़यन्त्र से वह व्यथित हो उठे. ऐसी स्थिति में इन्होंने यह धर्म छोड़ने का मन भी बना लिया. अब वह इस निष्कर्ष पर पहुंच गये थे कि समाज के ठेकेदारों द्वारा जानबूझ कर सोची समझी चाल और षड़यन्त्र से शूद्रों के दो वर्ग बना दिये गये है. एक सछूत-शूद्र, दूसरा अछूत-शूद्र, शूद्र तो शूद्र ही है. चाहे कितना सम्पन्न ही क्यों न हो.
उनका कहना था कि सामाजिक विषमता का मूल, वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था, श्रृति, स्मृति और पुराणों से ही पोषित है.सामाजिक विषमता का विनाश सामाजिक सुधार से नहीं अपितु इस व्यवस्था से अलगाव में ही समाहित है. अब तक इन्हें यह स्पष्ट हो गया था कि विचारों के प्रचार प्रसार का सबसे सबल माध्यम लघु साहित्य ही है. इन्होंने यह कार्य अपने हांथों में लिया.
दक्षिण भारत के महान क्रान्तिकारी पैरियार ई. वी. रामस्वामी नायकर के उस समय उत्तर भारत में कई दौरे हुए. वह इनके सम्पर्क में आये. जब पैरियार रामास्वामी नायकर से सम्पर्क हुआ तो इन्होंने उनके द्वारा लिखित ‘‘रामायण ए टू रीडि़ंग’’ (अंग्रेजी में) में विशेष अभिरूचि दिखाई. साथ ही दोनों में इस पुस्तक के प्रचार प्रसार की, सम्पूर्ण भारत विशेषकर उत्तर भारत में लाने पर भी विशेष चर्चा हुई. उत्तर भारत में इस पुस्तक के हिन्दी में प्रकाशन की अनुमति पैरियार रामास्वामी नायकर ने ललईसिंह यादव को साल 1968 को दे दी.
इस पुस्तक सच्ची रामायण के हिन्दी में प्रकाशन से उत्तर पूर्व तथा पश्चिम भारत में एक तहलका सा मच गया. पुस्तक प्रकाशन को अभी एक वर्ष ही बीत पाया था कि यूपी सरकार द्वारा दिनांक 08-12-1969 को पुस्तक जब्ती का आदेश प्रसारित हो गया कि यह पुस्तक भारत के कुछ नागरिक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर चोट पहुंचाने तथा उनके धर्म एवं धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने के लक्ष्य से लिखी गयी है.
पेरियार ललई सिंह यादव ने हिंदी में पाँच नाटक लिखे –
1.अंगुलीमाल नाटक,
2.शम्बूक वध,
3.सन्त माया बलिदान,
4.एकलव्य, और
5.नाग यज्ञ नाटक.
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