जानेिए राइट टू प्राइवेसी पर सुप्रीम कोर्ट ने किया फैसला सुनाया
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए निजता के अधिकार यानी राइट टू प्राइवेसी को मौलिक अधिकार, यानी फन्डामेंटल राइट्स करार दिया है. मुख्य न्यायधीश जे.एस. खेहर की अध्यक्षता में 9 जजों की बेंच ने इस फैसले को सुनाया. . कोर्ट ने कहा कि यह संविधान की धारा 21 का हिस्सा है. यह धारा भारत के नागरिकों के लिए जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार सुनिश्चित करता है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मोदी सरकार को बड़ा झटका लगा है. क्योंकि मोदी सरकार ने अपनी दलील दी थी कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है. निजता को मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं दिया जा सकता.
क्या होते हैं मौलिक अधिकार?
बहरहाल भारत का संविधान अपने नागरिकों के लिए छह और मौलिक अधिकार प्रदान करता है. आइए जानते हैं कि वे मौलिक अधिकार कौन से हैं : –
स्वतंत्रता का अधिकार- स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार भारतीय नागरिकों को बोलने, कहीं भी रहने, संघ या यूनियन बनाने और व्यापार करने का अधिकार देता है.
शोषण के विरुद्ध अधिकार- शोषण के विरुद्ध मौलिक अधिकार बालश्रम के विरोध में और मानव तस्करी रोकने का अधिकार देता है. 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कारखाने में काम करने से भी रोकता है.
धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार- धर्म की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार धर्म को मानने, उसका आचरण और प्रचार करने की अनुमति देता है. सिक्खों को कटार रखने की अनुमति भी देता है. वहीं धार्मिक कार्यों की स्वतंत्रता के साथ ही स्कूल-कॉलेज में धर्म की उपासना करने का मौलिक अधिकार भी देता है.
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार- संस्कृति और शिक्षा संबंधी मौलिक अधिकार हमे अपनी संस्कृति और भाषा को बचाए रखने का अधिकार देता है. अल्पसंख्यकों के हितों को सुराक्षित रखने और स्कूल-कॉलेज की स्थापन्ना करने के साथ ही उसके संचालन का अधिकारी भी देता है.
संपत्ति का अधिकार- संपत्ति का मौलिक अधिकार नागरिकों को संपत्ति अर्जित करने का अधिकार देता है.
संवैधानिक उपचारों का अधिकार- संवैधानिक उपचारों का मौलिक अधिकार किसी बंदी को कोर्ट के सामने पेश करने. अगर किसी सार्वजनिक पदाधिकारी के कारण किसी नागरिक के मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है तो कोर्ट ऐसे मामले में दखल देता है.
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