जिग्नेश मेवनी तेज बहादुर के लिए वाराणसी क्यों नहीं गए?
जिग्नेश मेवानी गुजरात में कांग्रेस समर्थित एमएलए हैं। लेकिन उन्होंने गुजरात में चुनाव प्रचार नहीं किया।
सिर्फ वोटिंग वाले दिन एक दिन के लिए गुजरात में रहे। जबकि गुजरात में सांप्रदायिकता की चुनौती बड़ी है। मोदी का गढ़ है।
मेवानी ने सारा समय बेगूसराय में बिताया। बेगूसराय में बीजेपी सातों एमएलए सीटों पर हारी हुई है। यहाँ दंगे भी नहीं होते। पिछले तीस साल में तो नहीं ही हुए।
मेवानी ने गुजरात के दलितों से नहीं कहा कि बीजेपी को हराओ। उन्होंने बेगूसराय के दलितों से कहा कि तनवीर हसन को हराओ। ये कौन की पॉलिटिक्स है पार्टनर?
बिहार में ज़्यादातर दलित पहले से सेकुलर खेमे में हैं। लेकिन जिग्नेश बिहार के दलितों को समझाने के लिए और आरजेडी के खिलाफ समर्थन जुटाने आए।
देश के उन हिस्सों में जहाँ दलितों का बड़ा हिस्सा बीजेपी के असर में है, जिग्नेश वहाँ दलितों को समझाने नहीं जाएँगे।
सांप्रदायिकता का किला बनारस भी है। मेवानी यहाँ भी सांप्रदायिकता से लड़ना नहीं चाहते।
मेवानी के इस राजनीतिक व्यवहार का कारण बताएँ।
मेवानी किससे लड़ रहे हैं? किसके लिए लड़ रहे हैं?
इसका जवाब अगर जानना है तो आपको ये पता करना होगा कि ऊना आंदोलन के समय जिग्नेश मेवानी दिल्ली और अहमदाबाद में क्यों थे और वे पहली बार ऊना कब गए।
पता करना होगा कि ऊना का आंदोलन किन लोगों ने चलाया था?
सुरेन्द्रनगर के ज़िलाधिकारी कार्यालय में मरी हुई गाय और हड्डियाँ किन आंदोलनकारियों ने डालीं? मरे हुए जानवर उठाने से मना किन लोगों ने किया? कौन लोग गिरफ़्तार हुए? किन पर मार पड़ी?
और
वे सारे आंबेडकरवादी आंदोलनकारी क्यों भुला दिए गए? किसी भी चैनल ने वास्तविक आंदोलनकारियों को क्यों नहीं दिखाया?
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