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Culture - Social - July 15, 2020

ज्योतिराव फूले और सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कार्यों का तुलनात्मक विश्लेषण

भाग १
आज मै ब्राह्मण जात का ”सर्वपल्ली राधाकृष्णन” और मूलनिवासी
बहुजन ”राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले”
दोनो के ”एजुकेशन” के लिए किये गए कार्यो
को बताउंगा ,
फिर फैसला आपलोग ही करना की किसका
जन्मदिन ”राष्ट्र गुरु” / टीचर दिवस के रूप में
मनाना चाहिए ,


1)ब्राह्मण जात सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पैदा
होने के 40 साल पहले से ही ”राष्ट्रपिता
ज्योतिराव फुले” ने आधुनिक भारत में एजुकेशन के
फिल्ड में क्रांति सुरु कर दी थी (सबूत =
”राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले” का जन्म 11
अप्रैल 1827 में हुआ और उन्होंने क्रांति की
सुरुवात 1848 को कर ही दिया जबकि
विदेशी ब्राह्मण जात ”सर्वपल्ली
राधाकृष्णन” का जन्म 5 sep 1888 को हुआ मतलब
फुले की क्रांति के 40 साल बाद )!


2)”राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले” ने 1848 से
शुरू कर 4 साल के अन्दर ही करीब 20 स्कूल खोल
डाले ,जब की ब्राह्मण सर्वपल्ली ने एक भी स्कूल
नहीं खोला !
3)”राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने पिछड़ी
जात के लोगो को बिना पैसे लिए एजुकेशन
दिया ,जब की ब्राह्मण जात सर्वपल्ली ने
जिंदगी भर पैसे की लालच में लोगो को
पढ़ाया !


4)”राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले” ने खुद की
जेब से पैसे खर्च कर लोगो को education दी
,जबकि ब्राह्मण जात सर्वपल्ली ने एजुकेशन देने के
नाम पर खूब पैसा कमाया !
5)गाव देहातो में ”राष्ट्रपिता
ज्योतिराव फुले” ने 20 स्कूल खोले ,जब की
ब्राह्मण जात सर्वपल्ली गावो में स्कूल खोलने
गया ही नहीं
6)सबको बैज्ञानिक सोच वाली एजुकेशन
”राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने दिया ,जब
की ब्राह्मण सर्वपल्ली ने ”ब्राह्मण
धर्म” (हिन्दू धर्म) की गैर बराबरी और
अंधविश्वास वाली एजुकेशन का कट्टर समर्थक
था !


7)”बालविवाह” का विरोध और ”विधवा
विवाह” को बढ़ावा दिया “‘राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने जबकि
ब्राह्मण जात सर्वपल्ली बाल विवाह का
समर्थक था ,और विधवा विवाह का
विरोधी !
8)महिलाओं के लिए पहला स्कूल अगस्त 1848 को
”राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने खोला जब
की ब्राह्मण जात सर्वपल्ली स्त्री एजुकेशन का
विरोधी था
9)”राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने अपनी
पत्नी को सबसे पकले एजुकेशन दी ,ब्राह्मण जात
सर्वपल्ली ने अपनी औरत को ही अनपढ़ बनाए
रख्खा !
10)”राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले” ने अपना
गुरु ”छत्रपति शिवाजी महाराज” को
माना ,ब्राह्मण सर्वपल्ली ने अपना गुरु
ब्राह्मण भगौड़ा ”सावरकर” को माना !


11)”राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने
”गुलामगिरी” नमक ग्रन्थ लिख पिछड़ी
जातियों को गुलामी का एहसास कराया
,जब की ब्राह्मण सर्वपल्ली ने ब्राह्मण धर्म
का कट्टर समर्थन कर बहुजनो के दिमाग की
नसबंदी कर उनके दिमाग को बांज बनाया !
12)किसानो को जगाने के लिए
”राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले” ने किताबे
लिखी जैसे ”किसान का कोड़ा”, आज से 150
साल पहले ‘कृषि विद्यालय’ की बात की, जब
की ब्राह्मण सर्वपल्ली ने जीतनी भी
किताबे लिखी सब की सब ब्राह्मण धर्म को
महिमामंडित करने को लिखी !


13) सभी को एजुकेशन मुफ्त और सख्ख्ती से दिया
जाय इसके लिए ”हंटर कमिसन” (उस समय का
भारतीय एजुकेशन आयोग) के आगे अपनी मांग
”राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले” ने रख्खी ,जब
की ब्राह्मण सर्वपल्ली बहुजनो को एजुकेशन देने
का विरोधी था
14)लोगो ने ”राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले”
को ”राष्ट्रपिता” की उपाधि दी
,ब्राह्मण सरकार ने ब्राह्मण सर्वपल्ली की
चोरी की थीसिस पर उन्हें डॉ की उपाधि
दी !
15) ”राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले” ने
ब्राह्मणों को विदेशी कहा ब्राह्मण
सर्वपल्ली ने भी खुद को विदेशी आर्य ब्राह्मण
कहा (बस केवल एक जगह दोनों सामान थे )


भाग २

जोतीराव फुले और बाल गंगाधर तिलक के बीच कड़ा संघर्ष
क्यों…?

ओबीसी वर्ग के जोतीराव फुले((11 अप्रैल 1827, मृत्यु – 28 नवम्बर 1890)और
चितपावन ब्राह्मण बाल गंगाधर तिलक(23 जुलाई 1856 – 1 अगस्त 1920)के बीच
तीखा संघर्ष क्यों होता रहा ?

दोनों के बीच संघर्ष के कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे

मुद्दा नंबर 1-

तिलक का मानना था की…जाति पर भारतीय समाज की बुनियाद टिकी है, जाति की समाप्ति का अर्थ है, भारतीय समाज की बुनियाद को तोड़ देना, साथ ही राष्ट्र और राष्ट्रीयता को तो़ड़ना है।

इसके बरक्स
जोतीराव फुले….जाति को असमानता ,गैरबराबरी, भेदभाव की बुनियाद मानते थे और इसे समाप्त करने का संघर्ष कर रहे थे।
तिलक ने…फुले को राष्ट्रद्रोही कहा, क्योंकि वे राष्ट्र की बुनियाद जाति व्यवस्था को तोड़ना चाहते थे।( मराठा, 24 अगस्त 1884, पृ.1, संपादक-तिलक )

मुद्दा नंबर – 2

तिलक ने…प्राथमिक शिक्षा को सबके लिए अनिवार्य बनाने के फुले के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया।

तिलक ने कहा कि… शूद्र,अतिशूद्र (OBC/SC ST ) समाज के बच्चों को इतिहास, भूगोल और गणित पढ़ने की क्या जरूरत है, उन्हें अपने परंपरागत जातीय पेशे को अपनाना चाहिए।आधुनिक शिक्षा उच्च जातियों के लिए ही उचित है।( मराठा, पृ. 2-3 )

मुद्दा नंबर – 3

तिलक का कहना था कि…सार्वजनिक धन से नगरपालिका को सबको शिक्षा देने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि यह धन करदाताओं का है, और शूद्र-अतिशूद्र कर नहीं देते हैं।( मराठा, 1881, पृ. 1 )

मुद्दा नंबर – 4

तिलक ने… महार और मातंग जैसी अछूत जातियों के स्कूलों में प्रवेश का सख्त विरोध किया और कहा कि केवल उन जातियों का स्कूलों में प्रवेश होना चाहिए, जिन्हें प्रकृति ने इस लायक बनाया है यानी उच्च जातियां (Bhattacharya, Educating the Nation, Document no. 49, p. 125.)

मुद्दा नंबर – 5

तिलक ने…लड़कियों को शिक्षित करने का तीखा प्रतिरोध और प्रतिवाद किया और लड़कियों के लिए स्कूल की स्थापना के विरोेध में आंदोलन चलाया।( “Educating Women and Non-Brahmins as ‘Loss of Nationality’: Bal Gangadhar Tilak and the Nationalist Agenda in Maharashtra”).

मुद्दा नंबर – 6

जब….
फुले के प्रस्ताव और निरंतर संघ्रर्ष के बाद ब्रिटिश सरकार किसानों को थोड़ी राहत देने के लिए सूदखोरों के ब्याज और जमींदारों के लगान में थोड़ी कटौती कर दी, तो तिलक ने इसका तीखा विरोध किया।

हम सभी जानते हैं कि…. राष्ट्रपिता जोतीराव फुले ने 1848 में शूद्रों और अतिशूद्रों के बच्चों के लिए स्कूल खोल दिया था और 3 जुलाई 1857 को लड़कियों के लिए अलग से स्कूल खोला।

लोकमान्य कहे जाने वाले…बाल गंगाधर तिलक से जोतिराव फुले एवं शाहू जी का संघर्ष.. और
महात्मा कहे जाने वाले गांधी से डॉ. आंबेडकर के संघर्ष का इतिहास वास्तव मे…ब्राह्मण निर्मित गैरबराबरी, भेदभाव वाले जातिव्यवस्था(DIVIDE and RULE) आधारित राष्ट्रवाद के खिलाफ फूले-शाहू-अंबेडकर (Majority must Rule) का समता, स्वतंत्रता, न्याय, बंधुत्व आधारित जातिविहीन समतामूलक समाज निर्माण का संघर्ष है

~ लेखक
सुनील यादव
चिकित्सक एवम् सामाजिक विश्लेषक
मुंबई

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