टीपू सुल्तान जयंती कार्यक्रम: राष्ट्रपति कोविंद की ‘सराहना’ के बाद विवाद और गहराया
नई दिल्ली। टीपू सुल्तान की जयंती को लेकर विवाद बढ़ता चला जा रहा है… यह घटनाक्रम 10 नवंबर को टीपू सुलतान की जयंती मनाने के राज्य सरकार के कदम पर मचे विवाद के बीच हुआ. बीजेपी इस कदम का पुरजोर विरोध कर रही है. बीजेपी का आरोप है कि शेर-ए-मैसूर के नाम से मशहूर 18वीं सदी के मैसूर के शासक ‘धर्मांध’ और ‘जालिम हत्यारा’ थे.
कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार जहां दो साल से टीपू जयंती मना रही हैं वहीं भाजपा और अन्य कुछ दल टीपू को धर्मिक कट्टरवादी कहते हुए उसकी जयंती मनाए जाने का विरोध कर रहे हैं। पिछले दिनों राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने भी टीपू सुल्तान की प्रशंसा करते हुए कहा था कि वो अंग्रेजों से लड़ते हुए बहादुरों की तरह मरे। वहीं नरेंद्र मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री अनन्त कुमार हेगड़े ने टीपू सुल्तान को हजारों हिंदुओं का हत्यारा बताया। उन्होंने कर्नाटक सरकार को पत्र लिखकर कहा कि राज्य सरकार टीपू जयंती को अपने आधिकारिक आयोजनों में शामिल न करें।
लेकिन अनन्त कुमार की अपील को ठुकराते हुए सिद्धारमैया सरकार ने टीपू जयंती मनाने का फैसला किया। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कहा है कि राज्य विधानमंडल में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा दिया गया भाषण उनका अपना था, जिसमें उन्होंने टीपू सुलतान की सराहना की थी. इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि भाजपा इसे राजनीतिक रंग देने का प्रयास कर रही है.
कौन थे टीपू सुल्तान ?
हैदर अली के पुत्र टीपू सुल्तान 18वीं सदी में मैसूर के शासक थे। उन्हें इतिहास में ‘टाइगर ऑफ मैसूर’ के नाम से भी पुकारा जाता है। टीपू सुल्तान का पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान साहब था। रामनाथ कोविंद ने भी एक बयान में कहा कि टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में पहली बार मैसूर रॉकेट का इस्तेमाल किया। इतिहास में भी कई जगह इस बात को कहा गया है कि भारत में रॉकेट टेक्नोलॉजी टीपू सुल्तान के द्वारा ही आई। टीपू सुल्तान ने मैसूर की रक्षा करते हुए अंग्रेजों से चार लड़ाइयां लडीं और अंतिम लड़ाई में वो मारे गए।
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