Home State Delhi-NCR टीवी चैनल महिलाओं के अधिकारों के नाम पर धूर्तता करते हैं : रवीश कुमार
Delhi-NCR - Social - State - August 23, 2017

टीवी चैनल महिलाओं के अधिकारों के नाम पर धूर्तता करते हैं : रवीश कुमार

नई दिल्ली। चूंकि ज़माना बदल रहा है इसलिए हो सकता है कि अब दहेज़ न देने के कारण मार दी जाने वाली औरतों की ख़बरों पर भी नज़र जाने की उम्मीद की जा सकती है। 21 अगस्त को दिल्ली के विकासपुरी में 10 लाख दहेज में नहीं लाने के कारण एक महिला को कथित रूप से जला दिया गया। उसे पति और सास ने घर से निकाल दिया था जब वो अपने बच्चे के कपड़े लेने घर आई तो दोनों ने मिलकर जला दिया।

22 अगस्त को जब हम तुरंता तीन तलाक पर रोक की खुशी में झूम रहे थे उसी दौरान पूर्वी दिल्ली की दीपांशा शर्मा फांसी लगाने की तैयारी कर रही थीं। पहले पति को शक हुआ कि नौकरी करती है तो किसी से चक्कर होगा। चरित्र अच्छा नहीं है तो दीपांशा ने नौकरी छोड़ दी। दीपांशा के पिता ने आरोप लगाया है कि दहेज़ के लिए प्रताड़िता किया जा रहा था। दीपांशा की डेढ़ साल की बेटी है।

दिल्ली में जनवरी-फरवरी 2016 के दौरान दहेज़ के कारण 19 औरतें मार दी गईं या ख़ुद मर गईं। जनवरी-फरवरी 2017 के दो महीनों में यह संख्या 26 हो गई। दिल्ली पुलिस कहती है कि इस राजधानी में हर दूसरे दिन दहेज़ से किसी औरत की जान जाती है।

ये खबर भी पढ़ें

http://www.nationalindianews.in/india/%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%A8-%E0%A4%A4%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AE-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE/

वैसे 2016 में दिल्ली शहर से 76 औरतें अगवा कर ली गईं। इस शहर में इतनी लड़कियां अगवा होती हैं, पता भी न

हीं था।

2015 में मेनका गांधी ने संसद में लिखित बयान दिया था कि 2012, 2013, 2014 में दहेज़ संबंधित कारणों से 24,771 महिलाएं मार दी गईं। उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर था। जहां 7048 महिलाएं मारी गईं। बिहार दूसरे नंबर पर और मध्य प्रदेश तीसरे नंबर पर। बिहार में 3,830 महिलाएं मार दी गईं। मध्य प्रदेश में 2,252 महिलाएं मार दी गईं। दहेज के मामले में मेरा राज्य शर्मनाक है। स्थानीय ज़ुबान में खत्तम है।

दहेज़ की समस्या सभी धर्मों में हैं। पूरा समाज शादी के नाम पर होने वाली सौदेबाज़ी का तमाशा देखने आता है और खा पीकर जश्न मना कर जाता है। औरतें भी उस फटीचर पति के साथ जीवन भर सालगिरह मनाती रहती हैं। उसकी शकल कैसे देखती होंगी। मेरा मानना है कि दहेज़ लेकर अपनी बीबी को ग़ुलाम बनाने वाले मर्द ही अंध राष्ट्रवादी होते हैं। घोर सांप्रदायिक होते हैं और सियासी भक्त होते हैं। ठीक इसी तरह के होते हैं त्वरित तीन तलाक वाले मर्द। घटिया और कट्टरपंथी। दहेज़ के आधार पर कह सकता हूं कि भारत के मर्द इतने घटिया सामाजिक उत्पाद हैं।

दहेज़ के ख़िलाफ़ कानून बेअसर है क्योंकि दहेज के लिए पूरा समाज तड़पता है। समाज ऐसे घेरता है कि बग़ैर दहेज़ के शादी संभव ही नहीं है। हर किसी के लिए विद्रोह करना असंभव हो जाता है। वैसे शादी न करने की हिम्मत करनी चाहिए। हलाला पर स्टिंग करने वाले न्यूज़ चैनलों को तो दहेज़ वाली शादियों की स्टिंग की ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी। ऐसी शादियों का तो लोकल केबल पर सरेआम लाइव किया जाता है और वीडियो रिकार्डिंग होती है।

दहेज़ लेने वाला पति या लड़का संभावित हत्यारा भी होता है, इस टाइप के घोंचू पतियों के लिए औरतें व्रत भी करती हैं। ऐसी शादियों में जो लड़कियां पचीसवीं पचासवीं सालगिरह मनाने के लिए बच जाती हैं वो सिर्फ एक चांस की बात है। अगर पिता ने सारा पैसा न दिया होता तो उनका पति उनकी हत्या कर ही देता।

हम दहेज़ से होने वाली हत्याओं और इसके नाम पर झूठी प्रताड़नाओं की ख़बरों को देखकर अनदेखा कर देते हैं। जितनी हत्या संगीन है उतनी है झूठी प्रताड़नाएं। इस कानून का इस्तमाल दहेज रोकने में कम, दहेज़ के नाम पर फंसाने में ज़्यादा होता है। दोनों को लेकर बहुत दुख होता है। कोई कैसे दहेज़ मांग लेता है।

टीवी चैनल महिलाओं के अधिकारों के नाम पर धूर्तता करते हैं। हमें नहीं मालूम कि कल के दिन एंकरिंग करने वाले कितने न्यूज़ एंकरों ने तिलक लेकर शादी की होगी। वैसे ज़्यादातर मर्द पत्रकार दहेज़ लेकर शादी करते हैं। तिलक पर वार का समर्थन नहीं करेंगे क्योंकि इससे उनकी और उनके बाप की दुकान बंद हो जाएगी। इसलिए तुरंता तीन तलाक के साथ तिलक पर भी वार करने की ज़रूरत है। बदले हुए ज़माने के भारत की राजधानी दिल्ली में एक लड़की जला दी जाती है।

कमेंट में ज़रूर लिखें कि दहेज लिया है नहीं।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। रवीश कुमार एनडीटीवी के सीनियर एडिटर हैं। यह लेख उनके फेसबुक पोस्ट से लिया गया है।)

 

 

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

Remembering Maulana Azad and his death anniversary

Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…