देश में मीडिया ‘एक्टिविज़्म’ का बदलता चेहरा
By: Rafik khan
गोदी मीडिया के इस दौर में मीडिया ‘एक्टिविज्म’ का महत्व कितना है इसे हम अच्छी तरह से समझ सकते हैं. मीडिया पर फिलहाल सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी देश-समाज की समस्याओं को सामने लाते हुए सरकार पर भी कड़ी पहरेदारी रखना है. इसके लिए देश में लाखों छोटे बड़े अखबार चैनल और वेबसाइट्स हैं और फेसबुक,ट्विटर पर इनकी तादाद बहुत ज़्यादा है ऐसे में मीडिया ‘एक्टिविज्म’ की बात करना कितना उचित है,इसे हम बखूबी समझ सकते हैं.सर्वेक्षणों के मुताबिक मीडिया की आजादी के मामले में भारत का स्थान एक सौ चालीसवां है। भारत के संविधान में अनुच्छेद 19 (1) के तहत अभिव्यक्ति के अधिकार की गारंटी दी गई है।
फिर भी देश में मीडिया की स्थिति फिलहाल बहुत संतोष जनक नहीं है. हम उसे आरोपों के घेरे से बाहर नहीं हैं. इन सवालों के पीछे हालत भी ज़िम्मेदार हैं. उसे एक तरफ निर्भीक और निष्पक्ष कहा जा रहा है तो दूसरी तरफ ‘गोदी मीडिया’ कहते हुए भी हिचक महसूस नहीं की जा रही है. जिस मीडिया ने आज़ादी के बाद सबसे बड़ा अन्ना आंदोलन खड़ा किया और उसकी शाखाओं से जो कोंपलें फूटीं वो हमारे सामने है. बहरहाल मीडिया के अपने घेरे हैं, फिर भी बड़ी तादाद में मीडिया सक्रिय होकर कार्य कर रहा है और देश समाज के लिए ईमानदारी से भूमिका निभा रहा है.
इंटरनेट के दौर में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की लोकप्रियता में कमी आई है,इन पर निर्भरता लगातार कम होती जा रही है। प्रिंट के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की हालत भी काफी खराब है। चैनलों की संख्या बढ़ती जा रही है और लोग एक चैनल से दूसरे चैनल की ओर रुख कर रहे हैं। यही वजह है कि आज टीआरपी चैनलों के लिए तनाव का कारण बनती जा रही है। हालांकि टीआरपी के बरक्स चैनलों की गणना और गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते रहे हैं। इंटरनेट यूजर्स की तादाद तेज़ी से बढ़ती जा रही है.सोशल मीडिया पर जो सक्रियता बढ़ी है उसने मीडिया की निष्पक्षता-निर्भीकता में निडरता के नए रंग भरे हैं. सोशल मीडिया पर एक तरह की वैचारिक क्रांति आ चुकी है और इसके सकारात्मक परिणाम दिखाई भी दे रहे हैं.
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