पुलिस को हर मुसलमान क्यों दिखता है अपराधी ? खबर पढ़कर तर्क लगाइए!
By- Lenin Modudi
जब कोई पूंछता है कि मुसलमान पुलिस रिपोर्ट पर भरोसा क्यों नहीं करता जब कोई आतंकवादी पकड़ा जाता है ? तो ये सवाल आपको कई पिछली घटनाओं को याद दिला देता है… तो चलिए इसका छोटा सा जवाब तलाश करते हैं….जोकि आप को प्रद्युम्न मर्डर केस में नज़र आ जाएगा. केस में सबसे पहले गिरफ़्तारी वहाँ के वस कंडक्टर की हई थी.
हद तो ये थी कि जुर्म भी साबित कर दिया गया और मीडिया ने फर्जी रिपोर्ट भी चला दी. शुक्र ये है कि सच बहुत जल्दी सामने आ गया. लेकिन हमेशा इतनी जल्दी सच बाहर नहीं आता है. जैसे आपको याद होगा मालेगांव का वो केस जिसमें भारतीय मीडिया और पुलिस द्वारा घोषित आतंकवादियो को अदालत ने तक़रीबन 6-7 साल बाद बाईज़्ज़त बरी कर दिया .
पर सवाल ये है कि उनकी ज़िन्दगी के 6-7 साल की क्षतिपूर्ति कैसे होगी ? जिन पुलिस वालों ने इन नवजवानों पे झूठे आरोप लगाकर चार्जशीट फ़ाइल की थी क्या उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी ? क्या आज तक किसी पुलिस अधिकारी पर इस बिना पर कोई कार्रवाई हुई है ?
6–7 साल तक उनके परिवार वालो ने और रिश्तेदारो ने एक आतंकवादी के रिश्तेदार के रूप में जो यातनाएं झेली है उसका मुआवज़ा क्या होना चाहिए ? ऐसे ढेर सारे सवाल हैं जिनके जवाब कभी नहीं दिए जाएंगे न सरकार की ओर से न प्रशासन की ओर से….. पर इसका परिणाम क्या होगा ये सोचने वाली बात है.
यही वजह है कि जब किसी को पुलिस आतंकवादी कह कर उठाती है तो मुस्लिम समाज से पहली प्रतिक्रिया ये आती है की ‘ बेचारे निर्दोष को उठा लिया, अब 6-7 साल जेल में यूँही रखेंगे ‘ ये प्रतिक्रिया बहुत स्वभाविक है. ये प्रतिक्रिया ये भी बताती है कि मुस्लिम समाज का सरकार और प्रशासन पर कितना भरोसा है…. और इस भरोसे को बनाए रखने के लिए क्या किया है.
Remembering Maulana Azad and his death anniversary
Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…