बच्चों की मौत को लेकर ऑक्सीजन सप्लायर ने हॉस्पिटल के प्रिंसिपल को बताया दोषी
गोरखपुर। सरकारी हॉस्पिटल बीआरडी में ऑक्सीजन की कमी से 33 बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई है. घटना ने पूरे सिस्टम पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं, मीडिया रिपोर्ट्स की खबरों के मुताबिक 33 बच्चों की मौत का जिम्मेदार हास्पिटल का प्रंसिपल माना जा रहा है, हास्पिटल को ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पुप्पा सेल्स के यूपी डीलर मनीष भंडारी का कहना है कि संभवत: ये मौतें ऑक्सीजन के लिए जरूरी सिलेंडर की कमी से नहीं, बल्कि हॉस्पिटल में सिलेंडर चेंज करने के दौरान हुई लापरवाही से हुई हों. साथ ही उन्होंने बताया कि ऑक्सीजन का पेमेंट के लिए प्रमुख सचिव को करीब 100 लेटर लिखें जा चुके है.
दैनिक भास्कर से हुई बातचीत के दौरान मनीष भंडारी ने कहा, ”ये सिर्फ हव्वा बनाया जा रहा है कि हॉस्पिटल में जो मौतें हुई हैं, वो ऑक्सीजन की कमी से हुई हैं. मौतें ऑक्सीजन के लिए जरूरी सिलेंडर की कमी से नहीं, बल्कि हो सकता है कि हॉस्पिटल में सिलेंडर चेंज के दौरान हुई लापरवाही से हुई हों. इस घटना के लिए मेडकिल कॉलेज के प्रिंसपिल दोषी हैं.”
हॉस्पिटल की ओर चल रही थी पेमेंट ब्लॉक
मनीषा भंडारी के मुताबिक, ”मेडिकल कॉलेज में हमारा 83 लाख का पेमेंट होना था. अब तक हॉस्पिटल से 22 लाख का ही पेमेंट आया. बीआरडी के प्रिंसिपल का कहना है कि कल तक 40 लाख का और पेमेंट हो जाएगा. हॉस्पिटल की ओर से पेमेंट ब्लॉक चल रही थी. 20 दिन पहले ही सप्लाई बंद होने का अल्टीमेटम दिया गया था.”
6 महीने से लिक्विड ऑक्सीजन का पेमेंट नहीं मिला
उन्होंने बताया कि ”पिछले 6 महीने से लिक्विड ऑक्सीजन का पेमेंट नहीं मिला था. इसे लेकर प्रमुख सचिव को करीब 100 लेटर लिखें जा चुके हैं.
प्रिंसिपल को दिया पेमेंट करने का आदेश
भंडारी ने बताया, ”लेटर की कॉपियां डीएम को भी दी जाती रहीं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. उन्होंने प्रिंसिपल को आदेश दिया है कि पेमेंट करिए. डीएम के आदेश के बाद मेडिकल कॉलेज से रिटन में दिया गया तो आईनॉक्स राजस्थान (ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी) को वह लेटर फॉरवर्ड किया गया. इसके बाद तुरंत ही एक ट्रक लिक्विड ऑक्सीजन वहां से डिस्पैच कराया गया.
प्रिंसिपल राजीव मिश्रा की लापरवाही
भंडारी ने कहा, ”हमारा 3 साल पहले कॉन्ट्रैक्ट हुआ था, लेकिन इससे पहले कभी पेमेंट नहीं रुका. इसमें सारी लापरवाही प्रिंसिपल की है. वो ही पेमेंट रोककर चल रहे हैं. पता नहीं उन पर क्या प्रेशर है. साथ ही उन्होंने बताया कि ये हाल तब है, जब लीगल नोटिस भेजा जा चुका है.” साथ ही उन्होंने बताया कि वैसे तो मेडकिल कॉलेज के सिलेंडर डिपार्टमेंट में पर्याप्त सिलेंडर, ऑक्सीजन की अल्टरनेटिव व्यवस्था है.
दवाइयों का भी पैसा बकाया
भंडारी ने बताया, ”दवाइयों का भी 2 से 2.5 करोड़ रुपए बकाया है. बहुत सारी दवाई कंपनियां सप्लाई होती हैं. ऑक्सीजन के दो सोर्स होते हैं- या तो हॉस्पिटल ट्रक (लिक्विड ऑक्सीजन) ले या फिर सिलेंडर ले. बता दें कि लिक्विड ऑक्सीजन बनाने की दो कंपनियां हैं- आईनॉक्स या फिर ब्रिटिश ऑक्सीजन.
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