Home Social बहुजन समाज का ऐसा महानायक जिसने मरते दम तक लड़ी असमानता के खिलाफ जंग
Social - State - September 5, 2017

बहुजन समाज का ऐसा महानायक जिसने मरते दम तक लड़ी असमानता के खिलाफ जंग

शोषितों, पिछड़ो के हकों की बुलंद आवाज, समाजिक असमानत के खिलाफ लड़ने वाले क्रांतकारी जगदेव प्रसाद कुशवाह आज हमारे बीच में नहीं है, लेकिन उनके विचार, उनकी कही गई बाते आज भी हमारे बहुजन समाज को मार्गदर्शन करती है। साहित्य के पैरोकार, शोषित समाज दल तथा बहुजन सममाज पार्टी की स्थानपना और मंडल कमीशन के प्रेरणास्त्रोत महान नायक लेनिन बाबू जगदेव प्रसाद एक ऐसी नीव डाल गए हैं, जिससे देश की गैर-सवर्ण जनता लगातार सामाजिक-आर्थिक- राजनीति और सांस्कृतिक उन्नति के पथ पर अग्रसर है।

महात्मा ज्योतिबा फूले, पेरियार साहेब, डा. आंबेडकर और महामानववादी रामस्वरूप वर्मा के विचारों को कार्यरूप देने वाले जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को महात्मा बुद्ध की ज्ञान-स्थली बोध गया के समीप कुर्था प्रखंड के कुरहारी ग्राम में अत्यंत निर्धन परिवार में हुआ था. इनके पिता प्रयाग नारायण कुशवाहा पास के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे तथा माता रासकली अनपढ़ थी. अपने पिता के मार्गदर्शन में बालक जगदेव ने मिडिल की परीक्षा पास की. उनकी इच्छा उच्च शिक्षा ग्रहण करने की थी, वे हाईस्कूल के लिए जहानाबाद चले गए.

निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा होने के कारण जगदेव जी की प्रवृत्ति शुरू से ही संघर्षशील तथा जुझारू रही तथा बचपन से ही ‘विद्रोही स्वाभाव’ के थे. जगदेव प्रसाद जब किशोरावस्था में अच्छे कपडे़ पहनकर स्कूल जाते तो उच्चवर्ण के छात्र उनका उपहास उड़ाते थे. एक दिन गुस्से में आकर उन्हों ने उनकी पिटाई कर दी और उनकी आँखों में धूल झोंक दी, इसकी सजा हेतु उनके पिता को जुर्माना भरना पड़ा और माफ़ी भी मांगनी पडी.

 

जगदेव जी ने तमाम घरेलू झंझावतों के बीच उच्च शिक्षा ग्रहण किया. पटना विश्वविद्यालय से स्नातक तथा परास्नातक उत्तीर्ण किया. कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने के बाद वे ‘शोसलिस्ट पार्टी’ से जुड़ गए और पार्टी के मुखपत्र ‘जनता’ का संपादन भी किया. एक संजीदा पत्रकार की हैसियत से उन्होंने दलित-पिछड़ों-शोषितों की समस्याओं के बारे में खूब लिखा तथा उनके समाधान के बारे में अपनी कलम चलायी.

जगदेव बाबू अपने भाषणों से शोषित समाज में नवचेतना का संचार किया करते थे. उन्होंने कहा था,

दस का शासन नब्बे पर,
नहीं चलेगा, नहीं चलेगा.
सौ में नब्बे शोषित है,
नब्बे भाग हमारा है.
धन-धरती और राजपाट में,
नब्बे भाग हमारा है.

जगदेव बाबू एक जन्मजात क्रन्तिकारी थे, उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में अपना नेतृत्व दिया, उन्होंने ब्राह्मणवाद नामक आक्टोपस का सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक तरीके से प्रतिकार किया. वे समतामूलक शिक्षा व्यवस्था के पक्ष में थे. एक सामान तथा अनिवार्य शिक्षा के पैरोकार थे तथा शिक्षा को केन्द्रीय सूची का विषय बनाने के पक्षधर थे. वे कहते थे-

चपरासी हो या राष्ट्रपति की संतान,
सबको शिक्षा एक सामान.

जगदेव बाबू कुशवाहा जी की जयंती हर साल २ फरवरी को कुर्था (बिहार) में एक मेले का आयोजन करके मनाई जाती है, जिसमे लाखों की संख्या में लोग जुटते है. हर गुजरते साल में उनकी शहादत की महत्ता बढ़ती जा रही है. दो वर्ष पहले शोषित समाज दल ने उन्हें ‘भारत लेनिन’ के नाम से विभूषित किया है लोग आज भी उन्हें ऐसे मुक्तिदाता के रूप में याद करते है जो शोषित समाज के आत्मसम्मान तथा हित के लिए अंतिम साँस तक लड़े. ऐसे महामानव, जन्मजात क्रांतिकारी को एक क्रांतिकारी का सलाम.

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