भूख से दलित मजदूर की मौत, घर में एक सप्ताह से नहीं जला चूल्हा
बुंलेदखण्ड। यूपी में चाहे अखिलेश यादव की सरकार रही हो या सबका साथ-सबका विकास का नारा देने वाली बीजेपी पार्टी की सरकार बन गई हो लेकिन हालातों में रत्ती भर तब्दीली नहीं है, प्रदेश में गरीबी, भुखमरी की जिंदगी में जीने को आज भी लोग मजबूर हैं।
बुंदेलखण्ड में एक दलित मजदूर की भूख से मौत होने का मामला सामने आया है. खबरों के मुताबिक, तंगहाली और गरीबी के चलते मजदूर के घर गरीब एक सप्ताह से चूल्हा नहीं जला था। मनरेगा में भी उसे काम करने के पैसे नहीं मिले। मजदूर के बच्चे भीख मांगकर अपना पेट भर रहे थे। मृतक की पत्नी के अनुसार दो साल से खेतों में अनाज पैदा नहीं हुआ था।
यह दर्दनाक घटना महोबा जिले की सदर तहसील के घनडुवा गांव की है, गांव में रहने वाले दलित मजदूर छुट्टन के पास कुछ बीघा जमीन थी लेकिन आर्थिक तंगी के कारण वो जमीन में फसल नहीं बो सका।
छुट्टन और उसकी पत्नी उषा परिवार का पालन पोषण करने के लिए मनरेगा में मजदूरी करते थे. लेकिन दोनों को मजदूरी का पैसा नहीं मिला जिसके चलते गुरबत की जिंदगी जीने को मजबूर थे।
खबरों के मुताबिक मृतक की पत्नी का कहना है कि दो वर्षों से खेते में कम पैदावार के चलते हम परेशान हो उठे, पिछले एक सप्ताह से पति को खिलाने के लिए घर में कुछ नहीं था।
मामले की जांच करने पहुंचे एडीएम महेंद्र सिंह का कहना है कि घर की हालत बेहद खराब है लेकिन छुट्टन की मौत भूख से नहीं बीमारी से हुई है। एडीएम ने मृतक का अंतिम संस्कार करने के लिए आर्थिक मदद की और मनरेगा में पैसों क्यों नहीं मिले इसको लेकर जांच की बात कही।
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