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Delhi-NCR - Social - State - September 27, 2017

रोहिंग्या मुसलमानों पर वरूण गांधी की अपनी ही सरकार को नसीहत, जानें क्या कहा ?

नई दिल्ली। रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर मोदी सरकार घिरती नजर आ रही है. बीजेपी के बड़े नेता वरूण गांधी ने रोहिंगया मुसलमानों को लेकर मोदी सरकार के विचार से इतर अपनी राय रखी है. वरुण गांधी चाहते हैं कि रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में शरण दी जाए. दरअसल एक हिंदी समाचार पत्र में वरुण गांधी ने रोहिंग्या मुसलमानों पर लेख लिखा है. इसमें उनका कहना है कि रोहिंग्या मुसलमानों को वापस नहीं भेजा जाना चाहिए. हमें रोहिंग्या की मदद करनी चाहिए. उनके साथ मानवतापूर्वक पेश आना चाहिए. साथ ही उनका यह भी कहना है कि हमे अंतरराष्ट्रीय संधियों के बारे में सोचने के साथ ही अपने देश की समृद्ध परंपरा का भी ध्यान रखना होगा. क्योंकि अतिथि देवो भव: हमारी परंपरा रही है.

जब मोदी सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को देश में रखने के पक्ष में नहीं हैं, ऐसे वक्त वक्त में वरुण गांधी का ये बयान खासा अहमियत रखता है. वहीं ‘रोहिंग्या मुसलमानों को यूं न ठुकराएं’ बीजेपी सांसद वरुण गांधी के इस लेख के बाद से बीजेपी खेमे में हंगामा मच गया है. बताया जा रहा है कि उनके इस स्टैंड से पार्टी नाराज है. वहीं रोहिंग्या मुसलमानों के लेकर वरुण गांधी के दिए बयान के बाद बीजेपी नेता और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहिर ने उनकी काफी आलोचना की. उन्होंने वरुण गांधी की देशभक्ति पर ही सवाल उठा दिए. उन्होंने कहा कि जो देशभक्ति होगा और देशहित के बारे में सोचता हो वो इस तरह के बयान कभी नहीं देगा. मतलब साफ है कि पार्टी और मोदी सरकार वरुण गांधी की सोच से इत्तेफाक नहीं रखती. बहरहाल, वरुण गांधी के इस लेख को बीजेपी से उनकी नाराजगी के तौर पर भी देखा जा रहा है.

अपने लेख में वरुण गांधी ने क्या लिखा ?
आज़ादी के बाद से करीब चार करोड़ शरणार्थी भारत की सीमा लांघ चुके हैं और अभी रोहिंग्याओं के बांग्लादेश पहुंचने के साथ ही हमारी सरहद पर एक और शरणार्थी संकट आ खड़ा हुआ है.

दुनिया में कुल 6.56 करोड़ लोगों को जबरन उनके देश से निकाल दिया गया है जिसमें 2.25 करोड़ लोगों को शरणार्थी माना गया है.

इसके अलावा एक करोड़ लोग और हैं जिन्हें राष्ट्रविहीन माना जाता है. इन्हें कोई भी राष्ट्रीयता हासिल नहीं है और ये लोग साफ-सफाई, शिक्षा, स्वास्थ्य और साधिकार रोज़गार के बुनियादी अधिकारों से भी वंचित हैं.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) की रिपोर्ट के अनुसार संघर्ष और उत्पीड़न के कारण हर मिनट औसतन 20 लोग अपने घरों से बेघर किए जा रहे हैं.

बहुतेरे शरणार्थी विदेश नीति के नियम कायदों में उलझकर रह जाते हैं और संकीर्ण घरेलू राजनीति के चलते कई बार उन पर ध्यान नहीं दिया जाता. इसके चलते भारत, नेपाल और श्रीलंका ने भारी संख्या में शरणार्थियों को शरण देने का ज़िम्मा उठाया है. यूएनएचआरसी की रिपोर्ट के अनुसार, अभी करीब दो लाख शरणार्थी (जिनमें सिर्फ 30 हजार पंजीकृत हैं) भारत में रहते हैं.
शरणार्थियों के मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की चौखट पर एक शरणार्थी क़ानून की मांग उठी है. सुप्रीम कोर्ट ने (खुदीराम चकमा बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य; राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य) शरणार्थी सुरक्षा के महत्व पर ज़ोर देते हुए व्यवस्था दी कि चकमा शरणार्थियों को मार दिए जाने या भेदभाव की संभावना को देखते हुए प्रत्यावर्तित नहीं किया जा सकता.

हमारा संविधान जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देते हुए आदेश देता है कि ‘राज्य बिना नागरिकता का भेद किए सभी इंसानों के जीवन की सुरक्षा करेगा’ (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, 2014).
शरणार्थियों के लिए निवास की व्यवस्था सबसे बड़ी समस्या है. दिल्ली में रहने वाले ज़्यादातर अफगानियों और म्यांमारियों को मकान मालिकों के भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

सोमालियाई शरणार्थी स्थानीय लोगों के भेदभाव का शिकार होते हैं. सरकारी स्कूलों में शरणार्थी बच्चों के साथ उत्पीड़न और भेदभाव सामान्य बात है.

ज़्यादातर म्यांमारी शरणार्थी कुछ गिने-चुने पेशों में लगे हैं, जहां वे काम की कठिन पस्थितियों का सामना करते हैं. कई शरणार्थी अच्छी शैक्षणिक योग्यता के बावजूद मान्यता और कामकाजी वीज़ा के अभाव में अच्छी नौकरी नहीं कर सकते.
जिन इलाकों में बड़ी संख्या में शरणार्थी हों, वहां तनाव और भेदभाव कम करने के लिए स्थानीय निकायों को आगे बढ़ कर मकान मालिकों और स्थानीय एसोसिएशनों को इनके प्रति संवेदनशील बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए.

शरणार्थी समुदायों के प्रति समर्थन, युवाओं के बीच वर्कशॉप में उनकी भागीदारी और महिला सशक्तीकरण के लिए उठाए कदमों से उनकी स्वीकार्यता की राह आसान होगी.

हमें म्यांमारी रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण जरूर देना चाहिए लेकिन इससे पहले वैध सुरक्षा चिंताओं का आकलन भी करना चाहिए. स्वाभाविक रूप से अधिकांश शरणार्थी अपने घर लौटना चाहेंगे.
हमें शांतिपूर्ण उपायों से अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए उन्हें स्वेच्छा से घर वापसी में मदद करनी चाहिए. आतिथ्य सत्कार और शरण देने की अपनी परंपरा का पालन करते हुए हमें शरण देना निश्चित रूप से जारी रखना चाहिए.

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