लोकशाही व्यवस्था को लेकर बाबा साहेब का था खास नजरिया
By: Nikhil Ramteke
Dr. अंबेडकर भारत के संविधान निर्माता के रूप में सारे दुनिया में पहचाने जाते हैं। सिर्फ संविधान ही नहीं समाज को भी बहुत बारीकी से समझते थे। जनता की हर जरुरतों से वे आत्मीयता से जुड़े थे। वह जानते थे कि विविधताओं से भरे देश को एकसूत्र में कैसे पिरोया जा सकता है।
लोकतंत्र के प्रति बाबा साहब का क्या नजरिया था? सामाज की समस्याओं को बाबा साहब कैसे देखते थे ? इन तमाम चीजों को समझने के लिए बाबा साहब के एक ऐतिहासीक दस्तावेज पर नज़र डालना जरूरी है।
बाबा साहब की उम्र लगभग 27-28 साल रही होंगी। देश के शासन में भारतीय प्रतिनीधि शामिल करने के लिए अंग्रेजों द्वारा भारत में साउथ बुरो कमिटी भेजी गई थी। इस साउथ बुरो कमिटी के समक्ष बाबासाहब ने साक्ष्य प्रस्तुत किये थे।
जनता का शासन जनता का प्रतिनिधित्व की व्यवस्था के बाबा साहब पुरजोर पक्षधर थे। बाबा साहब इस से भी आगे बढ कर जनप्रतिनिधियों के बारे में कहते थे कि व्यक्तिगत क्षमताओं के प्रयोग के लिए सरकार सार्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यह लोक हित में होगा कि किसी भी व्यक्ति को सरकार की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने के अवसर से वंचित न किया जाए।
लोकतंत्र के बारे में उनका कहना था कि, लोकप्रिय सरकार का अर्थ केवल जनता के लिए सरकार से नही है। उसको सही अर्थ में चरितार्थ करने के लिए उसमें जनता का प्रतिनिधित्व होना भी आवश्यक है।
बाबा साहब भारत के इतिहास से भली भांति परिचित थे। यूरोप की समाज व्यवस्था से भारत की समाज व्यवस्था को वो अलग मानते थे। इसलिए वे साउथ बुरो कमिटी के समक्ष लार्ड डफरिन का उदाहरण देते है। भारत एक ऐसा जनसमूह है…जिसमें अलग-अलग धर्म और अनेकों जातियां है। उनके धर्म, अनुष्ठान तथा भाषाएं अलग-अलग है। उनमें से अनेक के बीच और भी गहरा अलगाव है। उनके पूर्वग्रह, आचार-व्यवहार के स्रोत और यहां तक कि भौतिक हित भी अलग है। लेकिन संभवत: हमारे अति विशाल भारत की सर्वाधिक सुस्पष्ट विशेषता यह है कि वह दो शक्तिशाली राजनीतिक समुदायों में बंटा हुआ है और उनमें आकाश पाताल का अंतर है।
बाबासाहब की सोच का गहरा प्रभाव संविधान में देखने को मिलता है। फिर वह लोकतंत्र हो या समानता का अधिकार। बाबासाहब ने संविधान को बनाते समय सभी बातों का खासा ख्याल रखा था।
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