जननेता नहीं मौक़ापरस्त नेता हैं अन्ना हजारे! पढ़िए बेनकाव करता शानदार विमर्श
By: Ankur Sethi
विमर्श: एक दौर में अन्ना हजारे को महात्मा गाँधी का दूसरा रूप कहा जा रहा था। उन्होंने लोकपाल बिल के लिए ऐड़ी चोटी के जोर लगा दिए। उस जनआंदोलन से भारत की राजनीति में क्रांतिकारी बदलाव हुए जिसके बाद केजरीवाल, किरण बेदी, प्रशांत भूषण जैसे बड़े नेताओं ने देश की राजनीति में अपनी पैठ जमाई।
2011 में शुरू हुए उस जनलोकपाल विधयेक आंदोलन के बाद कांग्रेस में दीमक लगनी शुरू हो गई और ठीक 3 वर्ष बाद नई सरकार बीजेपी की आयी। उससे पहले उस आंदोलन में अन्ना हजारे के साथ सरीक सारे नेता बिखर गए और अलग अलग पार्टियों का रुख कर लिया पर अन्ना हजारे अपनी बात पर अडिग रहे कि जनलोकपाल बिल लाकर रहेंगे। तो आज 2018 को देखकर क्यों न लगे कि वो सब षड्यंत्र मात्र था एक सरकार को गिराने और दूसरी को खड़ा करने का। 2014 के बाद अन्ना हजारे ने कितने जन आंदोलन किये, कितनी बार जनलोकपाल के लिए रैलियां की, कितनी मानव श्रंखलायें बनाई, कितने युवा सम्मेलन किये।
चलो लोकपाल पर नहीं बोल रहे तो क्या आपके राज्य के किसान अपने बदतर हालात के कारण सड़कों पर दूध बहा रहे थे तब भी मुँह में दही जमा लेना ठीक था ? अन्ना रालेगन सिद्धि, अहमदनगर, महाराष्ट्र से आते हैं तो नासिक से मुम्बई 180 किमी तक पैदल चले किसानों के पैरों से छाले फूटने की आवाज अण्णा हजारे के कानों तक नहीं पहुँची? नक्सली मुद्दा, कश्मीर मुद्दा बड़ा हो सकता है और जनआंदोलन से न सुलझने वाला भी पर किसान(अन्नदाता) तो हमेशा परेशान रहा है आज के दौर में भी उसकी परेशानी बढ़ती जा रही है तो क्यों नहीं उसके साथ खड़े हुए ?
छात्रों की बेरोजगारी से लेकर 3 साल तक भर्तियों का क्लियर न होना क्या मुद्दा नहीं है? भारत की युमना जैसी सैकड़ों नदी दम तोड़ चुकी हैं और गंगा नदी अपने सबसे बुरे दौर में है तो क्या गंगा सफाई के लिए जनता को जगाना जनआंदोलन नही है? भारत की बढ़ती आबादी, निरक्षरता के कारण विकासशील के ढर्रे से जरा आगे न बढ़ना उसके लिए जागरूकता जन आंदोलन नहीं होना चाहिए ? भारत के सरकारी स्वास्थ्य सेवा केंद्रों की हालात बद से बदतर है तो क्या इसकी बेहतरी के लिए आवाज उठाना मुद्दा नहीं है।
मुद्दे तो हजारों हैं पर असल बात यह है की पद्मभूषण सम्मानित अन्ना हजारे मौका परस्त नेता है जिन्होंने मौका देख कर एक सरकार को जमकर कोसा, लोकपाल के नाम पर उसे हटवाने में पूरा साथ दिया जिसे एक लोकपाल विधयेक का बहाना दे दिया गया! अगर यह बहाना न होता तो पिछले 3.5 साल से ढेरो जन आंदोलन अन्ना हजारे बीजेपी सरकार के खिलाफ भी कर चुके होते पर अब उन्हें लोकपाल के नाम सांप सूंघ जाता है।
आप तो जननेता हैं ना तो क्या बीजेपी, क्या कांग्रेस सबके खिलाफ आंदोलन होना चाहिए पर ऐसा हुआ क्या ? अब ये न कभी जवानों के मरने पर बोलते हैं तो न कभी सैकड़ों बच्चों की मौत पर। क्योंकि ये मौक़ापरस्त राजनेता लोग हैं न कि समाजसेवी जिनके जमीर मर चुके हैं! ये सिर्फ चार दिन के लिए खड़े होते हैं और इतिहास में नाम अमर करा जाते है। पर अन्ना हजारे जनता मूर्ख नहीं है इसी इतिहास में आपकी ढोंगी चुप्पी भी लिखी जाएगी, बीजेपी सरकार आने के बाद मुँह पर लगा ताला भी लिखा जाएगा।
आपके बरसाती मेंढक बनने की कहानी जनता अच्छे से जानती है और अब ये मत समझना कि जनता फिर से मूर्ख बनेगी। वो भेड़िये वाली कहानी तो याद है ना जब एक आपके ही जैसा बार-बार चिल्लाता था की भेड़िया आ गया, भेड़िया आ गया और फिर सबका पागल बना देता हँसता और चला जाता था और फिर एक दिन वो बहुत चिल्लाया और कोई न आया तब भेड़िया उसे वास्तव में खा गया था। यही हाल अब आपके कर्मों का होना है। जैसा बीज बोया है, काटोगे भी वैसा ही। अब जनआंदोलन करके जनता को बरगला कर देखना, तब दिखेगा कैसे कलेजा मुँह में आ जाता है और यही भोली-भाली जनता कैसे काट खाने को दौड़ती है।
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