बहुजनों के लिए हमेशा खलनायक के रुप में याद किए जाएंगे अटल बिहारी वाजपेयी
By-Siddartha Ramu
1- अटल बिहारी बाजपेयी 1 अप्रैल 2004 के बाद भर्ती होने वाले सरकारी कर्मचारियों की पेंशन खत्म कर दी थी। सांसदों- विधायकों की पेंशन छोड़कर अन्य सभी सरकारी कर्मचारियों की पेंशन उन्होंने खत्म कर दी थी
2- अटल बिहारी बाजपेयी ने 1999 में देश के सरकारी और सार्वजिनक सार्वजनिक संस्थाओं को देशी-विदेशी पूंजीपंतियों को बेचने के लिए विनिवेश मंत्रालय बनाया।
3-अटल बिहारी वाजपेयी ही गुजरात में मुसलानों के नरसंहार के समय प्रधानमंत्री थे। उन्होंने राजधर्म निभाना चाहिए कह कर पल्ला झाड़ लिया और मुसलमानों का कत्लेआम देखते रहे।
4- अ़टल बिहारी वाजपेयी ने बुद्ध मुस्कुराए इस नारे के साथ परमाणु बम का विस्फोट किया। शान्ति के प्रतीक बुद्ध को मानवता के बिनाश के अस्त्र परमाणु बम से जोड़ दिया।
5- 2001 की जनगणना में जाति को शामिल करने का फैसला तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा की सरकार ने किया. लेकिन 1998 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार आ गई और उसने जाति जनगणना न कराने का फैसला कर लिया.
अटल बिहारी वाजपेयी आपको इस बात के लिए याद करता हूं कि उन्होंने करोड़ों कर्मचारियों के बुढ़ापे का सहारा पेंशन छीन कर बुढापे की लाठी उनसे छीन ली। ऐसा करके उन्होंन निजि कंपनियों को पेंशन न देने का रास्ता पूरी तरह साफ कर दिया। जाति जनगणना को इसलिेए रोका ताकि सच्चाई समाने न आ आए कि कैसे 16 प्रतिशत से भी कम उच्च जातियां ही इस देश की अधिकांश संसाधनों और संपदा पर कब्जा किए हुए हैं।
जरा उनके उदारतावाद पर बात करते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे एक उदार संघी, उदार ब्राह्मण और उदार द्विज थे, लेकिन आजीवन ब्राह्मण, द्विज और संघी ही बने रहे। गोरखपुर के महाराणा प्रताप के मैदान में उन्होंन दिल खोल कर मनुस्मृति के तारीफ की। मनु को ऋषी बताया। लालकृष्ण आडवानी या मोदी के हिंदुत्व और अटल बिहारी वाजपेयी के हिंदुत्व के बीच सिर्फ उतना ही अंतर है, जितना डॉ.आंबेडकर ने हिंदू महासभा और कांग्रेस के हिंदुत्व के बीच बताया था।डॉ. आंबेडकर ने लिखा कि “कांग्रेस और हिंदू महासभा में बस इतना ही अंतर है कि जहां हिंदू महासभा अपने कथनों में अधिक अभद्र है और अपने कृत्यों में भी कठोर है, वहीं कांग्रेस नीति-निपुण और शिष्ट है। इस तथ्यगत अंतर के अलावा कांग्रेस और हिंदू महासभा के बीच कोई अंतर नहीं है”। इस तथ्यगत अंतर के अलावा मोदी और अटल बिहारी वाजपेयी के हिंदुत्व में कोई अंतर नहीं है।
कार्पोरेट मीडिया और सवर्ण मानसिकता के लोग जीवन भर संघ और पूंजीपतियों के लिए समर्पित अटल बिहारी वाजपेयी को महानायक बनाकर प्रस्तुत कर रहे यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। इसी तरीके से इस देश में हजारों वर्षों से पुराण और महाकाव्य गढ़कर शूद्रों, अतिशूद्रों और महिलाओं के खिलाफ काम करने वालों को नायक, महानायक, यहां तक कि ईश्वर बनाकर प्रस्तुत किया गया और ये तबके यह मान भी बैठे । अटल बिहारी वाजपेयी की तरह ही धीरे-धीरे दीनदयाल उपाध्याय को महानायक बनाया गया। अगर अ़टल बिहारी वाजपेयी इतने महान हैं, जितना कहा जा रहा है, तो दीनदयाल उपाध्याय से क्या दिक्कत है?
अटल बिहारी वाजपेयी के गुणगान से पहले एक बार ठहरिए और बताए कि उन्होंने कौन सा ऐसा कार्य किया है जिससे व्यापक भारतीय जन का भला हुआ?
-Siddartha Ramu
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