बहुजनों पर लगातार बढ़ रहा जुल्म फिर सुप्रीम कोर्ट को लग रहा SC/ST एक्ट का हो रहा दुरुपयोग!
विमर्श। जातिवाद का जहर लोगों की मानसिकता में आज भी कूट-कूट के भरा है। वैसे तो हर रोज जातीय शोषण की खबरें आती रहती है लेकिन ताजा दो मामले ऐसे सामने आए है जिसने एक बार फिर बहुजनों के जख्मों को ताजा कर दिया है।
महाराष्ट्र के जलगांव जिले में दो बहुजन बच्चों की महज इसलिए बेरहमी से पिटाई की गई क्योंकि उन्होंने सार्वजनिक तालाब में नहाने का साहस किया था जो कि तथाकथित उंची जाती के लोगों को बर्दास्त नहीं हुआ। घटना 10 जून की बताई जा रही है, दरअसल जलगांव जिले के वकाड़ी गांव में 12 से 14 साल के तीन बच्चे गर्मी से राहत पाने के लिए तालाब में नहाने गए थे पर इन बहुजन बच्चों के तालाब में नहाने से तथाकथित उंची जाती के लोगों का खून खौल उठा, पहले तो उन बच्चों को गाली-गलौच देकर तालाब से बाहर निकाला उसके बाद बच्चों के सारे कपड़े उतारकर, नंगा शरीर करके पूरे गांव में घुमाया। इस घटना का वकायदा वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल किया गया। बच्चे शर्म से पेड़ों की पत्तियों से खुद को छुपाने की कोशिश करते रहे पर तमाशा देख रहे लोगों को कोई दया नहीं आई।
जाति की नफरत के चलते इन बच्चों ने जो दर्द झेला है उसे शायद यह मासूम पूरी जिंदगी नहीं भुला सकें। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती है ऐसा ही मामला गुजरात से भी सामने आय़ा है। वो ही गुजरात, जहां कभी ऊना में बहुजनों को कार के पीछे बांधकर उनके नंगे जिस्म पर बेरहमी लाठियां बरसाईं गईं थी।
ऊनकांड ने पूरे देश में बहुजन समाज को आंदोलन करने पर मजबूर किया था, सरेआम जुल्म अत्याचार की खौफनाक वारदात ने बहुजनों को अंदर तक हिलाकर दिया था। ऊना कांड के कुछ ही दिनों बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने एक भाषण में कहा था कि आप मुझे मार लीजिए लेकिन मेरे बहुजन भाईयों को मत मारिये, लेकिन तस्वीर बिल्कुल नहीं बदली है, हालात जैसे कल थे बिल्कुल वैसे ही आज हैं!
गुजरात के महसाणा जिले में चार युवकों ने एक नाबलिग बहुजन युवक को जमीन पर गिराकर बेरहमी से पीटा, युवक का गुनाह सिर्फ इतना था कि उसने रजवाड़ी जूतियां पहनने की हिम्मत की थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नाबालिग युवक का कहना है कि जब वो बस स्टॉप पर बैठा था वहां कुछ युवक आए और उससे जाति पूछने लगे, जब उसने खुद को बहुजन समाज से बताया तो उन्होंने कहा कि बहुजन होने के बावजूद उसने मोजड़ी कैसें पहनी, इसके बाद युवक ने खुद को राजपूत बताकर अपना बचाव करना चाहा तो आरोपी युवक उसे पकड़कर एक सूनसान जगह ले गए और उसकी लात-जूतों से जमकर पिटाई की।
चारों में से एक ने घटना का वीडियो भी बनाया। वीडियो में आरोपी लड़के यह कहते हुए सुने जा सकते है कि वो उसे राजपूतों की तरह पहनाव रखने के कारण पीट रहे हैं। वो यह भी कह रह रहे हैं कि इस वीडियो को इसलिए वायरल करेंगे ताकि बहुजन समाज इस बात से सबक लेकर आगे से ऐसा करने की हिम्मत न कर सके। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होते ही यह खबर मीडिया की सुर्खियां बन गई लेकिन जरा सोचिए….ऐसी ही न जाने कितने अनगिनत जुल्म-अत्याचार बहुजन समाज हर रोज सहन करता है जिनकी कोई आवाज नहीं बनती।
इन घटनाओं को देखकर ऐसा लगता है जैसे कि पुराना इतिहास दोहराने की कोशिश की जा रही है। लेकिन इन सबसे भी ज्यादा शर्मनाक हैं कि तमाम कड़े कानून बनने के बावजूद भी इस तरह की वारदातें थमने का नाम नहीं ले रही है। वहीं ऐसे हालातों में जरुरी हो जाता है एससी-एसटी एक्ट का जिक्र करना, जिसमें हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए कुछ बदलाव कर दिए हैं कि इस एक्ट के तहत अमूमन फर्जी मामले दर्ज किए जा रहे हैं। एक्ट में बदलाव के बाद से पूरे बहुजन समाज में आक्रोश है। 2 अप्रैल को भारत बंद करके कानून को ऑर्जिनल फॉर्म में लाने की मांग की लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। केंद्र सरकार ने पुनाविचार याचिका दायर कि लेकिन सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर अटल रहा।
सवाल यह है कि क्या वाकई एससी-एसटी एक्ट में फर्जी केस दर्ज होते हैं, क्या इन घटनाओं को फर्जी केस कहा जा सकता है, कहा जा रहा है कि बहुजनों की सुरक्षा का सबसे मजबूत हथियार माना जाने वाला कानून एससी-एसटी एक्ट में जबसे बदलाव हुआ है तब से जुल्म-अत्याचार का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट को अभी भी लगता है कि एक्ट का गलत प्रयोग हो रहा है। हजारों सालो से हिंदू समाज की जातिवादी व्यवस्था के तहत सताए हुए बहुजन, संविधान लागू होने के 70 साल बाद भी क्यों सम्मान जनक जीवन नहीं जी पा रहे हैं। यह एक बड़ा सवाल है, क्यों उन्हें हर रोज इस तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है। क्यों सरकारें लगातार बढ़ रहे इन अपराधों पर रोक लगाने में नाकम साबित हो रही हैं?
-सुशील कुमार
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