बीबीसी आणि मीना कोतवाल: पत्रकार वांशिक छळ बहुजन मुलगी कथा, भाग 8
मी बीबीसी- 8
कालांतराने, माझ्या मनात राग निर्माण होऊ लागले. मी नेहमी माझ्या स्वत: ची प्रशंसा प्रेम करेल. मार्ग तीन वेळा Newsroom राजेश प्रियदर्शनी डोके लोकांच्या समोर मला रागावली होती, माझे स्वत: ची प्रशंसा मनापासून त्याला धक्का बसला होता.
दुसऱ्या वेळी दोन दिवसांनी जाण्यासाठी मला एकटा घेतला की तो मला रागावली होती दिलगीर सांगितली. ते योग्य होते, तर मी काय आणि तो ही चुकीची होती एकतर मार्ग मला Newsroom मध्ये रागावली नाही प्रत्येकाला खेद म्हणू नये होते माफ करा. पण, गोष्ट मी त्या वेळी त्यांना बोललो नाही, पण प्रश्न माझ्या मनात नेहमी होते.
त्याचे हे वर्तन अस्वस्थ मी माझ्या संपादक मुकेश शर्मा सर सांगितले की शेवटी कथा आपल्या राजेश प्रियदर्शनी डोके कोणत्याही जाणार नाहीत. मुकेश सर लागले, तू मला किंवा नियोजन आपल्या कथा बद्दल जा. पण या प्रती बोलणे नाही फक्त कसे शक्य आहे. कोणतीही फक्त कथा त्याला तोंड द्यावे लागले. आणि मी तुझ्या कथा राजेश सर करण्याची गरज नाही सर्व बोलता येईना.
ते माझ्या कथा एक अडथळा ठेवले पाहिजे, कई बार मेरी स्टोरी उनके लिए महत्व नहीं रखती तो कई बार वो इंटरनेशनल लेवल की नहीं होती. लेकिन मुझे याद है प्रगति मैदान पर बने स्काई वॉल्क फ्लाईओवर की स्टोरी उनके लिए इंटरनेशनल स्टोरी थी क्योंकि वो मैंने नहीं किसी और ने प्रपोज़ की थी, जिसे वे शायद मना नहीं कर पाए होंगे. लेकिन मेरी जामिया की स्टोरी हो या ग़ाजीपुर में मुर्गा काटने पर लगे बैन जैसी कई स्टोरी थी, जिनसे पूरे देश में नहीं तो कई राज्यों में फ़र्क पड़ता है. पण, वे स्टोरी मैंने की तो जरूर लेकिन बहुत कुछ सुनने के बाद.
मेरी तबियत लगातार बिगड़ रही थी. और ऐसे में मुझे ऑफिस के माहौल को भी झेलना पड़ रहा था. चिंता और तनाव के बढ़ने के कारण मेरी छाती में दर्द भी होने लगा था. कई डॉक्टर को दिखाया लेकिन कहीं कुछ पता नहीं चल रहा था. कमजोरी के साथ सांस लेने पर परेशानी होने लगी थी. पास के क्लिनिक से लेकर, मैक्स, और गंगाराम में इलाज करवाया. लेकिन आराम नहीं हो रहा था. सभी का कहना था कि चिंता और तनाव के कारण ये बीमारी बढ़ रही है. अगर चिंता करना खत्म नहीं किया तो कुछ भी हो सकता है.
लेकिन ऑफिस में अगर मैं बीमारी का ज़िक्र करती या बीमारी के चलते छुट्टी मांगती तो कुछ लोग मज़ाक करते कि ये आए दिन बीमार होती है. मुझे तो मेरी बीमारी के कागज़ दिखाने के लिए भी कह दिया गया था, जैसे मैं अपनी खुशी से बीमार पड़ रही हूं.
कई लोग ऑफिस में ही पूछते थे कि मैं इतनी चुप क्यों रहती हूं. मैं खुद को ही जवाब देती कि जिसके अंदर एक बवंडर चल रहा हो वो बाहर से शांत ही रहते हैं. लेकिन सामने वाले को एक स्माइल देकर ही चुप होना पड़ता. कई बार ऑफिस के कुछ लोगों ने बोला भी कि मीना तुम सबसे बात किया करो, अगर तुम्हारे पास बात करने के लिए कुछ नहीं होता तो खाने-पीने की बात करो. मैंने उन्हें कहा कि सर मुझसे ये सब बात नहीं होती, मैं जो हूं सामने हूं.
पहले सब को मेरी ट्रांसलेशन से परेशानी थी लेकिन अब तो मेरी कॉपी हू-ब-हू पेज पर लगती थी. अगर अब कोई परेशानी थी तो मुझे लगता है जो मेरी कॉपी देखते थे उन्हीं में कमी होती थी, जो हू-ब-हू छाप देते थे. लेकिन फिर भी ना मेरी शिफ्ट में ज्यादा बदलाव हुए ना लोगों के व्यवहार में. मेरे आखिरी दिनों तक हैंडओवर में कुछ लोग स्पेशल मेंशन करते थे कि ये कॉपी मीना ने बनाई है ध्यान से देखें. यहां तक कि मुझे बीबीसी रेडियो की न्यूज़ पढ़ने के लिए भी नहीं कहा जाता, जिसे रेडिया की शिफ्ट वाला बनाकर देता था और उसे केवल लाइव पढ़ना होता था. कदाचित माझा आवाज पुरेसे चांगले नाही किंवा मी हिंदी वाचले नाही होता!
कोणीही जास्त खाली आणले जाऊ शकते, काय निर्विवाद-Ayogy केले जाऊ शकते आहे, सर्व मी येथे शिकत. कधी कधी काम खरोखर काही फरक पडत नाही कारण माझे काम मला लोकांचे डोळे मध्ये एक मूर्ती तयार केली होती तर. मी काहीही करू नये तर मी बदलू शकत नाही की. आत संताप प्रती गेला, मी स्वत: ला किंवा परिस्थिती काय होते काय माहित नाही!
क्रमश करण्यासाठी ... तो घटना खालील लेख वाचले, कोणता भाग -9 येईल.
मौलाना आझाद आणि त्यांच्या पुण्यतिथीनिमित्त त्यांचे स्मरण
मौलाना अबुल कलाम आझाद, मौलाना आझाद म्हणूनही ओळखले जाते, एक प्रख्यात भारतीय विद्वान होते, फ्रीडो…