BJP एक भ्रष्टाचार निवारण मशीन है, जो भी भ्रष्ट नेता इसमें गया वो MEDIA की निगाह में पवित्र हो गया
भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने के लिए धर्मनिरपेक्षता का इस्तेमाल नहीं हो सकता है. स्वागत योग्य कथन है. आजकल हर दूसरे राजनीतिक लेख में ये लेक्चर होता है.
ऐसा लगता है कि धर्मनिरपेक्षता की वजह से ही भारत में भ्रष्टाचार है. ऐसे बताया जा रहा है कि धर्मनिरपेक्षता न होती तो भारत में कोई राजनीतिक बुराई न होती. सारी बुराई की जड़ धर्मनिरपेक्षता है.
मुझे हैरानी है कि कोई सांप्रदायिकता को दोषी नहीं ठहरा रहा है. क्या भारत में सांप्रदायिकता समाप्त हो चुकी है? क्या वाकई नेताओं ने भ्रष्टाचार इसलिए किया कि धर्मनिरपेक्षता बचा लेगी? भ्रष्टाचार से तंत्र बचाता है या धर्मनिरपेक्षता बचाती है?
हमारे नेताओं में राजनीतिक भ्रष्टाचार पर खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं बची है. लड़ने की बात छोड़ दीजिए. यह इस समय का सबसे बड़ा झूठ है कि भारत का कोई राजनीतिक दल भ्रष्टाचार से लड़ रहा है.
भारत में लोकपाल को लेकर दो साल तक लोगों ने लड़ाई लड़ी. संसद में बहस हुई और 2013 में कानून बन गया. चार साल हो गए मगर लोकपाल नियुक्त नहीं हुआ है.
नमाज के बाद गले लगकर दी मुबारकबाद
बग़ैर किसी स्वायत्त संस्था के भ्रष्टाचार से कैसे लड़ा जा रहा है? लड़ाई की विश्वसनीयता क्या है? इसी अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के हर बहाने को ख़ारिज कर दिया और कहा कि लोकपाल नियुक्त होना चाहिए. नेता विपक्ष का नहीं होना लोकपाल की नियुक्ति में रुकावट नहीं है.
अप्रैल से अगस्त आ गया, लोकपाल का पता नहीं है. क्या आपने भ्रष्टाचार के लिए धर्मनिरपेक्षता को ज़िम्मेदार ठहराने वाले किसी भी नेता को लोकपाल के लिए संघर्ष करते देखा है?
Remembering Maulana Azad and his death anniversary
Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…