Citizenship Amendment Bill का अमेरिकी संसद की समिति ने भी किया विरोध, बताया लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करने वाला बिल
नागरिकता संशोधन बिल, 2019 लोकसभा में पारित होने के बाद हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी (HFAC) ने इस बिल के विरोध में अपनी प्रतिक्रिया दी है. HFAC अमेरिकी कांग्रेस की प्रभाशाली द्विदलीय समिति है. कमेटी ने मंगलवार (10 दिसंबर, 2019) को कहा कि धार्मिक बहुलवाद ‘भारत और अमेरिका’ की नींव का केंद्र है. ये नागरिकता के लिए धार्मिक परीक्षा है जो लोकतांत्रिक सिद्धांत को कमजोर करता है.
HFAC ने CAB पर न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट ट्वीट करते हुए कहा, ‘धार्मिक बहुलवाद भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका की नींव का केंद्र है और हमारे मूल साझा मूल्यों में से एक है। नागरिकता के लिए कोई भी धार्मिक परीक्षण बुनियादी लोकतांत्रिक सिद्धांत को कमजोर करता है.’

इसी बीच भारत में यूरोपियन यूनियन के राजदूत ने विश्वास व्यक्त किया कि बिल पर संसद में चर्चा का परिणाम संविधान के उच्च मानकों के अनुरूप होगा, जो समानता की गारंटी देता है. हाल में दिल्ली में नियुक्त हुए ईयू के राजदूत उगो अस्टुटो ने कहा, ‘मैंने संसद में चर्चा के बारे में पढा है. भारतीय संविधान कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है. ये ऐसे सिद्धांत हैं जिन्हें हम साझा करते हैं. इसलिए मुझे भरोसा है कि चर्चाओं का परिणाम संविधान द्वारा निर्धारित उच्च मानकों के अनुरूप होगा.’
भारत में नियुक्ति के बाद उगो ने मीडिया से पहली बार मुखातिब होने के बाद CAB पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी. हालांकि पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने प्रस्तावित बिल की निंदा करते हुए कहा कि यह पड़ोसी देशों में दखल देने का चमकदार प्रयास है.

नागरिकता संशोधन बिल पर अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संघीय अमेरिकी आयोग (USCIRF) ने भी प्रतिक्रिया दी है। आयोग ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक ‘गलत दिशा में बढ़ाया गया एक खतरनाक कदम’ है और यदि यह भारत की संसद में पारित होता है तो भारत के गृह मंत्री अमित शाह और मुख्य नेतृत्व के खिलाफ प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. यूएससीआईआरएफ ने सोमवार को एक बयान में कहा कि विधेयक के लोकसभा में पारित होने से वह बेहद चिंतित है.
आयोग ने कहा, ‘अगर CAB दोनों सदनों में पारित हो जाता है तो अमेरिकी सरकार को गृह मंत्री अमित शाह और मुख्य नेतृत्व के खिलाफ प्रतिबंध लगाने पर विचार करना चाहिए.’ उसने कहा, ‘अमित शाह द्वारा पेश किए गए धार्मिक मानदंड वाले इस विधेयक के लोकसभा में पारित होने से यूएससीआईआरएफ बेहद चिंतित है.’ पूर्व में कश्मीर और एनआरसी जैसे मुद्दों पर बयान दे चुका है.
USCIRF के इस बयान पर भारत ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है। CAB पर अमेरिकी संघीय आयोग की आलोचनात्मक टिप्पणी को सही नहीं बताते हुए भारत ने मंगलवार को कहा कि यह अफसोसजनक है कि अमेरिकी संस्था ने उस विषय पर अपने पूर्वाग्रह से निर्देशित होने का रास्ता चुना जिस पर उसका कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है. यूएससीआईआरएफ के बयान को खारिज करते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि आयोग द्वारा अपनाया गया रुख उसके पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए चौंकाने वाला नहीं है.
बता दें कि नागरिक सशोधन बिल में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने का पात्र बनाने का प्रावधान है. बिल का भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध हो रहा है. इतिहासकार और बुद्धिजीवी वर्ग ने भी सरकार के इस कदम का विरोध किया है.
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