सांप्रदायिक हिंसा की आग में सुलग रहा बिहार, भारी पड़ रहा नितीश को बीजेपी का साथ!
By- Aqil Raza
बिहार में पिछले 15 दिनों में कई बड़े बड़े जिलों तक साम्प्रदायिक हिंसा फैल गई है। तो वहीं रामनवमी के बाद से पश्चिम बंगाल भी सांप्रदायिक हिंसा की आग में सुलग रहा है। बिहार में इसकी शुरुआत 17 मार्च को भागलपुर में हुए उपद्रव से हुई थी। इसके बाद समस्तीपुर और शेखपुरा में दो समुदाय के लोगों में झड़प हुई। और आज यानी शुक्रवार को नवादा में एक धार्मिक स्थल को नुकसान पहुंचाने के बाद उपद्रव हुआ।
उपद्रवियों ने सड़क जाम किया और बस, ट्रक और अन्य गाड़ियों में तोड़फोड़ की। भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाना और सरकारी गड़ी और पब्लिक प्रोपर्टी को नुकसान पहुंचाना तो मनो एक आम बात हो गई हो, उपद्रवियों का जब मन करता है वो भारत के अलग अलग शहरों में तोड़फोड़ कर देते हैं, इनपर कोई कार्रवाई नहीं होती, अगर होती भी होगी तो शायद ये लोग पकड़ में न जाने क्यों नहीं आते हैं, लेकिन जब छात्र सरकार से रोज़गार की मांग को लेकर धरना प्रदर्श करते हैं तो उनपर तुरंत कार्रवाई जरूर होती है।
यहां तक की सख्ती के साथ उनपर मंत्रीजी को लाठीचार्ज तक करवाना पड़ जाता है। हमें ये भूलना नहीं चाहिए की ये सब अब नए भारत में हो रहा है। ये वही न्यू इंडिया है जिसका हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबको सपना दिखाया था।
बिहार में इस तरह का माहौल वकई हमें सोचने पर मजबूर करता है कि एक तरफ कई यूनिवर्सिटी के लाखों छात्र 3 साल में बीए नहीं कर पा रहे हैं। और न जाने कितने नौजवान नौकरियों को लेकर धरने पर बैठे हैं, लेकिन बिहार के नौजवानों को न सरकार नौकरी दे रही है और न बिहार में नौकरी का माहोल है। युवाओं के भविश्य पर प्रश्न चिंह लगा हुआ है लेकिन रामनवमी के सहारे बिहार को जलाने और राजनीतिक विसात बिछाने की कोशिश हो रही है, इसमें सब लोग देखकर भी अंजान बन रहे है।
मगर वीडियों में युवाओ को सड़कों पर हथियारों से लेस देखकर ये समझ नहीं आता कि क्या इस राजनीति में बिहार और उसकी सरकार भी शामिल है। लेकिन ये सवाल जरूर खड़ होता है कि इस बार बिहार में इतने सारे हथियार रामनवमी के अवसर पर कहा से आए। हालात ऐसे हैं कि छोटी छोटी बात पर भी लोग उग्र हो रहे है और एक दूसरे की दुकान जलाकर नुकसान पहुचा रहे है । समस्तीपुर में भी कुछ ऐसा हि हुआ जब जुलूस में चल रहे लोगों के ऊपर छत के ऊपर खड़े एक बच्चे के पैर से चप्पल निकल कर गिर गई। इसके बाद विवाद हो गया।
रामनवमी के बाद से बिहार की जो सूरत नजर आ रही है उसकी कल्पना खुद नीतिश कुमार ने भी शायद नहीं की होगी। मगर आंदेशा तो जरूर होगा जब लालू प्रसाद यादव का साथ छोड़कर नए पार्टनर के साथ सरकार बना रहे थे। नीतिश कुमार ने लालू यादव का साथ भ्रष्टाचार के नाम पर छोड़ा था, लेकिन जो नया सहयोगी साथ आया है उसकी धार्मिक आक्रमकता से बिहार जल रहा है। हालत ये है कि न तो नीतिश इसे रोक पा रहे हैं और न हीं नए सहयोगी के स्थानीय से लेकर बड़े नेता रुक रहे हैं। अब रामनवमी के नाम पर जो हो रहा है उससे सवाल ये उठ रहा है कि नीतिश कुमार बीजेपी या बजरंग दल को कब तक काबू में रख पाएगें।
बिहार में जो कुछ भी चल रहा है उसकी शुरुआत 17 मार्च को भागलपुर से हुई थी, जब बिना स्थानीय प्रशासन की अनुमति के केंद्रीय मंत्री अश्वनी चौबे के बेटे अर्जित शासत ने रैली निकाली। इस रैली में जो अपत्ती जनक नारे लगाए गए उसी के कारण विवाद शुरू हुआ। लेकिन अभी तक उन्हे गिरफ्तार नहीं किया गया है जबकि उनकी गिरफ्तारी को लेकर किसी ने रोक भी नहीं लगाई है।
इसके बाद का मामला ओरंगाबाद का है जहां पर स्थानीय सांसद ने खुलेतोर पर चुनोती दी थी की अगर कोई क्रिया होगी तो उसकी प्रतिक्रिया होगी, और उन्ही की आंखो के सामने एक समुदाय की दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया। स्थानीय प्रशासन का ये कहना है कि उन्होंने नेताओं पर खासकर बीजेपी नेताओं पर भरोसा किया जिसका खामियाज उन्हे उठाना पड़ा। वहीं रोसड़ा में भी तनावपूर्ण हालात बने हुए हैं, पुलिस ने 10 लोगों को गिरफ्तार किया है।
जिसके बाद शेखपुरा में 28 मार्च को शोभायात्रा के दौरान रूट की अनुमति नहीं मिलने पर लोग भड़क गए थे। बुधौली चौक पर उपद्रवियों और पुलिस के बीच झड़प हुई। 20 मिनट तक धक्का-मुक्की के बाद पुलिस ने फायरिंग की और फिर लाठीचार्ज कर दिया था। 43 के खिलाफ नामजद और 200 अज्ञात के खिलाफ केस दर्ज किया गया। तनाव अभी भी बरकरार है।
बिहार विधानसभा के दौरान इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक उस वक्त हिंसा भड़काने के 600 से ज्यादा मामले दर्ज हुए थे, लेकिन बिहार में हिंसा नहीं भड़की, लेकिन अब ऐसा क्या हो गया जो आसानी से सांप्रदायिक तनाव खड़ा हो जाता है। क्या अंदर से उन लोगों को छूट मिल रही है, क्या बिहार का सामाजिक तानावाना ध्वस्त किया जा रहा है।
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