जगदेव प्रसाद कुशवाहा एक बहुजन क्रांतिकारी
रूस के महान मजदूरों के नेता लेनिन जो पूरे विश्व में प्रसिद्द है,उनके बारे में तो आपने बहुत सुना होगा | लेकिन क्या आप भारत के लेनिन बाबू जगदेव प्रसाद के बारे में जानते है जिन्होंने भारत के शोषित वर्ग के खातिर अपनी जान न्योछावर कर दी |
जिनके विचारो का आज भी लोहा माना जाता है| भारत के लेनिन बाबू जगदेव प्रसाद कहते थे कि
“पहली पीड़ी के मारे जाएंगे,दूसरी पीड़ी के जेल जायेंगे,तीसरी पीड़ी के लोग राज करेंगे| “
अपने ऐसे विचारो को लेकर बिहार में जन्मे बाबू जगदीश प्रसाद आज पूरे देश में भारत के लेनिन नाम से जाने जाते है जिनका आज 2 फरवरी को जन्म दिवस है|
भारत के लेनिन बाबू जगदेव प्रसाद
भारत के लेनिन जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को गौतम बुद्ध की ज्ञान स्थली बोध गया के समीप कुर्था प्रखंड के कुरहारी नामक ग्राम में हुआ था| इनका परिवार अत्यंत निर्धन था,इनके पिता प्रयाग नारायण कुशवाहा पेशे से प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक थे व इनकी माता रासकली पेशे से ग्रहणी थी|
वे बचपन से ही भारत के लेनिन कहे जाने वाले बाबू जगदेव प्रसाद के बारे में क्या आप जानते है ?
रूस के महान मजदूरों के नेता लेनिन जो पूरे विश्व में प्रसिद्द है,उनके बारे में तो आपने बहुत सुना होगा | लेकिन क्या आप भारत के लेनिन बाबू जगदेव प्रसाद के बारे में जानते है जिन्होंने भारत के शोषित वर्ग के खातिर अपनी जान न्योछावर कर दी | जिनके विचारो का आज भी लोहा माना जाता है| भारत के लेनिन बाबू जगदेव प्रसाद कहते थे कि
“पहली पीड़ी के मारे जाएंगे,दूसरी पीड़ी के जेल जायेंगे,तीसरी पीड़ी के लोग राज करेंगे| “
अपने ऐसे विचारो को लेकर बिहार में जन्मे बाबू जगदीश प्रसाद आज पूरे देश में भारत के लेनिन नाम से जाने जाते है जिनका आज 2 फरवरी को जन्म दिवस है|
वे बचपन से ही ज्योतिबा फूले, पेरियार साहेब, डा.आंबेडकर और महामानववादी रामस्वरूप वर्मा आदि जैसे महामानवो के विचारो से प्रभावित थे| बाबू जगदेव बचपन से ही विद्रोही स्वभाव व समता के पक्षधर रहे थे| बचपन में बिना गलती के शिक्षक ने जगदेव के गाल पर जोरदार तमाचा दिया था,कुछ दिनों बाद वही शिक्षक कक्षा में पढ़ाने के समय सो रहा था|
जगदेव ने शिक्षक के गाल पर जोरदार तमाचा जड़ दिया,शिक्षक ने जब इसकी शिकायत प्रधानाचार्य से की तो जगदेव निडर होकर बोले ‘गलती के लिए सजा सबको बराबर मिलनी चाहिए अब चाहे वो शिक्षक हो या छात्र | ‘
बाबू जगदेव प्रसाद का जीवन परिवर्तन
जगदेव प्रसाद ने अपने पारवारिक हालातो से झूझते हुए उच्च शिक्षा पूरी की| उसके बाद वह पटना विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक तथा परास्नातक की पढ़ाई पूरी की और वही उनकी मुलाकात चंद्रदेव प्रसाद वर्मा से हुई| चंद्रदेव जी ने उन्हें महामानवों के विचारो को पढ़ने के लिए प्रेरित किया|
महामानवों के विचारो से प्रभावित होकर बाबू जगदेव जी राजनीतिक गतविधियों में भाग लेने लग गए और इसी दौरान वो सबसे पहले सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ गए| इसी दौरान उनके पिताजी बीमार रहने लगे,उनकी माता जी पूजा अर्चना में बहुत यकीन रखती थी इसीलिए वो अपने पति के स्वस्थ्य होने के खूब पूजा अर्चना तथा देवी – देवताओ से मन्नते मांगती थी|
लेकिन इन सब क बावजूद भी वो अपने पति को नहीं बचा सकी| बाबू जगदेव ने अपने पिता के अंतिम संस्कार के समय सभी देवी – देवताओ की मूर्तियों और तस्वीरो को अर्थी पर डाल दिया | उसके बाद उन्होंने देवी – देवताओ और भगवानो से सम्बंधित सभी डकोसलों को जिंदगीभर के लिए नकार दिया|
बाबू जगदेव के कार्य
उस दौर में देश में जातिवाद का नशा चरम पर था देश में समांतिवाद व्यवस्था का विरोध करने का दुस्ससाहस मुश्किल हो कोई करता था| किसानो की जमीन की फसल का पांच कट्ठा जमींदारों के हाथियों को चारा देना उस समय एक प्रथा सी बनी हुई थी, इस प्रथा को पंचकठिया प्रथा कहा जाता था|
बाबू जगदेव ने अपने साथियो के साथ मिलकर रणनीति बनाई और जब महावत हाथी को लेकर फसल चराने आया तो उसे मना कर दिया| महावत ने जब जबरदस्ती चराने की कोशिश की तो बाबू जगदेव ने अपने साथियो के साथ मिलकर महावत को सबक सिखा दिया और साथ ही भविष्य में दोबारा न आने की चेतावनी भी दी, इस घटना के बाद पंचकठिया प्रथा का अंत हो गया|
भूदान आन्दोलन
बिहार में उस समय समाजवादी आन्दोलन की बयार थी, लेकिन जे.पी. तथा लोहिया के बीच सद्धान्तिक मतभेद था. जब जे.पी. ने राम मनोहर लोहिया का साथ छोड़ दिया तब बिहार में जगदेव बाबू ने लोहिया का साथ दिया, उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया|
जयदेव प्रसाद और समाजवादी विचारधारा का देशीकरण करके इसको घर-घर पहुंचा दिया. जे.पी. मुख्यधारा की राजनीति से हटकर विनोबा भावे द्वारा संचालित भूदान आन्दोलन में शामिल हो गए. जे. पी. नाखून कटाकर क्रांतिकारी बने, वे हमेशा अगड़ी जातियों के समाजवादियों के हित-साधक रहे|
भूदान आन्दोलन में जमींदारों का हृदय परिवर्तन कराकर जो जमीन प्राप्त की गयी वह पूर्णतया उसर और बंजर थी, उसे गरीब-गुरुबों में बाँट दिया गया था, लोगों ने खून-पसीना एक करके उसे खेती लायक बनाया| लोगों में खुशी का संचार हुआ लेकिन भू-सामंतो ने जमीन ‘हड़प नीति’ शुरू की और दलित-पिछड़ों की खूब मार-काट की गयी, अर्थात भूदान आन्दोलन से गरीबों का कोई भला नहीं हुआ|
उनका जमकर शोषण हुआ और समाज में समरसता की जगह अलगाववाद का दौर शुरू हुआ. कर्पूरी ठाकुर ने विनोबा भावे की खुलकर आलोचना की और उनको ‘हवाई महात्मा’ कहा|
1967 में जगदेव बाबू ने संसोपा उम्मीदवार के रूप में कुर्था में जोरदार जीत दर्ज की | उनकी तथा कर्पूरी ठाकुर की सूझबूझ की वजह से पहली बार बिहार में गैर कांग्रेस सरकार का गठन किया गया| संसोपा पार्टी की नीतियों को लेकर जगदेव बाबू की लोहिया से अनबन हुई और ‘कमाए धोती वाला और खाए टोपी वाला’ की स्थिति को देखकर पार्टी छोड़ दी| 25 अगस्त 1967 को उन्होंने शोषित दल नाम से नयी पार्टी बनाई | बाबू जगदेव प्रसाद के पार्टी के नारे आज भी बहुत प्रचलित है-
दस का शासन नब्बे पर,
नहीं चलेगा, नहीं चलेगा| सौ में नब्बे शोषित है,
नब्बे भाग हमारा है|
धन-धरती और राजपाट में,
नब्बे भाग हमारा है|
बिहार में कांग्रेस की तानाशाही सरकार
उनके नारो से लोगो में एक नया ही जोश उत्पन्न होता था| एक जन नेता होने की वजह से बाबू जगदेव की जनसभाओं में लोगो का हुजूम उमड़ पड़ता था| बिहार की जनता इन्हें ‘बिहार के लेनिन’ के नाम से बुलाने लगी| इसी समय बिहार में कांग्रेस की तानाशाही सरकार के खिलाफ जे. पी. के नेतृत्व में विशाल छात्र आन्दोलन शुरू हुआ और राजनीति की एक नयी दिशा का सूत्रपात हुआ|
लेकिन आन्दोलन का नेतृत्व गलत लोगों के हाथ में था, जगदेव बाबू ने छात्र आन्दोलन के इस स्वरुप को स्वीकृति नहीं दी| इससे दो कदम आगे बढ़कर वे इसे जन-आन्दोलन का रूप देने के लिए मई 1974 को 6 सूत्री मांगो को लेकर पूरे बिहार में जन सभाएं करने लगे और सरकार पर दबाव डालने लगे, लेकिन भ्रष्ट प्रशासन तथा जातिवादि मानसिकता से ग्रस्त सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा, जिससे 5 सितम्बर 1974 से राज्य-व्यापी सत्याग्रह शुरू करने की योजना बनायी गई|
शोषित समाज का नेतृत्व
5 सितम्बर 1974 को जगदेव बाबू हजारों की संख्या में शोषित समाज का नेतृत्व करते हुए अपने दल का काला झंडा लेकर आगे बढ़ने लगे| कुर्था में तैनात डी. एस. पी. ने सत्याग्रहियों को रोका तो जगदेव बाबू ने इसका प्रतिवाद किया और विरोधियों के पूर्वनियोजित जाल में फंस गए| सत्याग्रहियों पर पुलिस ने अचानक हमला बोल दिया|
लेकिन जगदेव बाबू चट्टान की तरह जमें रहे और अपना भाषण जरी रखा, निर्दयी पुलिस ने उनके ऊपर गोली चला दी| गोली सीधे उनके गर्दन में जा घुसी जिससे वो मूर्छित होकर गिर पढ़े| सत्याग्रहियों ने उन्हें बचाने का प्रयास किया लेकिन क्रूर पुलिस ने उनको घायलावस्था में ही घसीटते हुए पुलिस स्टेशन ले गयी| घसीटते हुए ले जाते समय वे पानी-पानी चिल्ला रहे थे|
उनकी छाती को बंदूकों की बटों से बराबर पीटते रहे और पानी मांगने पर उनके मुंह पर पेशाब किया गया| आज तक शायद ही किसी राजनेता के साथ आजाद भारत में इतना अमानवीय कृत्य किया गया होगा| जगदेव जी ने अपनी सांस थाने में ही ली|
पुलिस प्रशासन ने उनके मृत शरीर को गायब करना चाहा लेकिन भारी जन-दबाव के चलते उनके शव को 6 सितम्बर को पटना लाया गया, उनके अंतिम शवयात्रा में देश के कोने-कोने से लाखों-लाखों लोग पहुंचे|
आज़ाद भारत में इस तरीके से भारत के लेनिन व भारत के महान शोषितो के नेता जगदेव प्रसाद की हस्ती को मिटा दिया गया| देश में आज इनको भारत का लेनिन इसी वजह से कहा जाता है जिन्होंने आज़ाद भारत में शोषितो के हक़ के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी।
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