Home Social Culture जै भीम के नारे से जै श्रीराम के नारे को पराजित करना जरूरी क्यों है
Culture - August 22, 2019

जै भीम के नारे से जै श्रीराम के नारे को पराजित करना जरूरी क्यों है

By-डॉ सिद्धार्थ रामू~

जब तक जै भीम का नारा पूरी तरह से जै श्रीराम के नारे को पराजित नहीं कर देता, तब तक इस देश में वास्तविक अर्थों में स्वतंत्रता, समता, भाईचारा, न्याय और लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो सकती है।

सार्वजनिक जीवन में दो नारे गूंज रहे हैं। पहला नारा जै श्रीराम का है और दूसरा नारा जै भीम का है। जै श्रीराम का नारा भारत की सत्ता पर द्विजों के कब्जे का नारा बन चुका है। इस नारे के माध्यम से संघ-भाजपा ने हिंदू राष्ट्र की अपनी कल्पना को साकार किया है। यह ब्राह्मणवाद, वर्ण-जाति व्यवस्था और स्त्रियों पर पुरूषों के प्रभुत्व का नारा है। यह नारा गैर हिंदुओं ( मुसलमानों-ईसाईयों) को आधुनिक युग का राक्षस यानी म्लेच्छ घोषित कर घोषित करता है और उनके सफाए का घोषित या अघोषित अभियान चलाता है। इस नारे के साथ वह बाबरी मस्जिद तोड़ी जाती है, गुजरात नरसंहार और मुजफ्फर नगर के दंगे, मुस्लिम महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार और माब लिंचिंग होती। यह प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक समता, स्वतंत्रता, भाईचारा, न्याय और लोकतंत्र का विरोधी रहा है और अपने से भिन्न जीवन पद्धतियों के लोगों को अनार्य, असुर और राक्षस ठहराकर उनकी हत्या को प्रोत्साहित और गौरवान्वित करता रहा है। यह हर आधुनिक मूल्य का विरोधी है।

इसके विपरीत जय भीम का नारा ब्राह्मणवाद, वर्ण-जाति और पितृसत्ता के विनाश का नारा है। इसका संबंध डॉ. आंबेडकर की विचारधारा से है। जिनका आदर्श स्वतंत्रता, समता, बंधुता और लोकतंत्र था। जिन्होंने मनु स्मृति का दहन किया था। जिन्होंन जाति के विनाश का नारा दिया। जिन्होंने महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में समानता के लिए हिंदू कोड़ बिल पेश किया। जिन्होंने ऐसा संविधान रचने की भरपूर कोशिश की, जिससे राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन में समता, न्याय और लोकतंत्र की स्थापना हो सके। जीवन के सभी क्षेत्रों में आधुनिक मूल्यों की स्थापना जै भीम के नारे के साथ ही की जा सकती है।

दोनों नारे एक दूसरे से पूरी तरह उलट हैं। इस सच्चाई से शायद ही कोई आंख मूंद पाए कि जै श्रीराम के नारे को यदि कोई नारा रह-रह कर चुनौती दे रहा है, तो वह है जै भीम का नारा।

लेकिन इस सच से कोई इंकार नहीं कर सकता कि देश का बड़ा हिस्सा आज भी जै श्रीराम के नारे के साथ खड़ा है, इसमें दलित-बहुजन और महिलाएं भी हैं, जिनकी दासता को यह नारा प्रकट करता है। जबकि जय भीम के नारे से तो द्विजों ( सवर्णों) को पूरी तरह एलर्जी है, लेकिन दलित-बहुजन का बड़ा हिस्सा भी अभी जय भीम के नारे को पूरी तरह अपनाया नहीं है। उसका एक बड़ा हिस्स जै श्रीराम का नारा लगाता है। एक हिस्सा दोनों नारे साथ लगाता है। हां एक ऐसा हिस्सा जरूर है जो समझता है कि जय भीम के नारे और जै श्रीराम के नारे में कोई एकता कायम नहीं हो सकती।

जै श्रीराम का नारा भारत के द्विज मर्दों के प्रभुत्व का सबसे बड़ा उपकरण है और यही दलित-बहुजनों की गुलामी के केंद्र में भी है।

जै भीम का नारा जब तक भारत की बहुलांश आबादी का नारा नहीं बनता और जै श्रीराम के नारे को पूरी तरह पराजित नहीं कर देता। देश में समता, स्वतंत्रता, भाईचारा, न्याय और लोकतंत्र की, वास्तविक स्थापना के बारे में सोचा नहीं जा सकता।

~डॉ सिद्धार्थ रामू

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

Remembering Maulana Azad and his death anniversary

Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…