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Culture - Hindi - August 10, 2020

लोकतंत्र या ब्राह्मण द्विज तंत्र

आज भी भारत में, सत्ता, नौकरियों एवं संपत्ति का बंटवारा वर्णों के क्रम के अनुसार ही है, वर्ण व्यवस्था पूरी तरह लागू है, आईये अब आपको उन तथ्यों से रूबरू करवाते है। बता दें की वर्तमान लोकसभा में (यानी 2019 में चुने गए सदन) कुल 543 सांसदों में 120 OBC, 86 अनुसूचित जाति और 52 अनुसूचित जनजाति के हैं और हिंदू सवर्ण जातियों के सांसदों की संख्या 232 है। आनुपातिक तौर देखें, तो OBC सांसदों का लोकसभा में प्रतिशत 22.09 है, जबकि मंडल कमीशन और अन्य आंकड़ों के अनुसार आबादी में इनका अनुपात 52 प्रतिशत है। इकनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित एक विश्लेषण के मुताबिक, आबादी में करीब 21 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले सवर्णों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व उनकी आबादी  से करीब दो गुना 42.7 प्रतिशत है।  52  प्रतिशत ओबीसी को अपनी आबादी के अनुपात से आधे से भी कम और सवर्णों को उनकी आबादी से दो गुना प्रतिनिधित्व  मिला हुआ है।

 ‘द प्रिंट’ में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, 2019 में पीएमओ सहित केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में कुल 89 शीर्ष आईएएस अधिकारियों (सचिवों) में से एक भी ओबीसी समुदाय से नहीं था और इनमें केवल एक एससी  और 3 एसटी समुदाय के थे। अब जरा विस्तार से केंद्रीय नौकरशाही को देखते हैं।  यानि 95.5 प्रतिशत सर्वण।

1 जनवरी 2016 को केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि ग्रुप-ए के कुल 84 हजार 521 पदों में से 57 हजार 202 पर  सामान्य वर्गों ( सवर्णों) का कब्जा था यानि कुल नौकरियों के 66.67 प्रतिशत पर 21 प्रतिशत सवर्णों का नियंत्रण था। इसमें सबसे बदतर स्थिति 52 प्रतिशत आबादी वाले ओबीसी वर्ग की थी। इस वर्ग के पास ग्रुप-ए के सिर्फ 13.1 प्रतिशत पद थे यानि आबादी का सिर्फ एक तिहाई, जबकि सवर्णों के पास आबादी से ढाई गुना पद थे। कमोवेश यही स्थिति ग्रुप-बी पदों के संदर्भ में भी थी। ग्रुप बी के कुल पदों के 61 प्रतिशत पदों पर सवर्ण काबिज थे।

5 जनवरी, 2018 को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ( यूजीसी) द्वारा दी गई सूचना के अनुसार देश के  (उस समय के) 496 कुलपतियों में 6 एससी, 6 एसटी और 36 ओबीसी समुदाय के थे। यानि सवर्ण 90.33 प्रतिशत और ओबीसी 7.23 प्रतिशत, एसी 1.2 प्रतिशत और एसटी 1.2 प्रतिशत। यहां ओबीसी को अपनी आबादी का करीब आठवां हिस्सा प्राप्त है और एससी-एसटी को  न्यूनतम से भी न्यूनतम, क्योंकि उनके लिए भी यहां आरक्षण का प्रावधान नहीं है। 

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की वार्षिक रिपोर्ट (2016-17) के अनुसार 30 केंद्रीय विश्वविद्यालयों और राज्यों के 80 सरकारी विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों के कुल 31 हजार 448 पदों में सिर्फ 9 हजार 130 पदों पर ही ओबीसी, एससी-एसटी के शिक्षक है यानि सिर्फ 29.03 प्रतिशत। 70.77 प्रतिशत पर सवर्ण, यहां 52 प्रतिशत ओबीसी की हिस्सेदारी केवल 4,785 (15.22 प्रतिशत) है ।

राष्ट्रीय संपदा में हिस्सेदारी के मामले में देखें तो पाते हैं कि (2013 के आंकड़े) कुल संपदा में ओबीसी की हिस्सेदारी सिर्फ 31 प्रतिशत है, जबकि सवर्णों की हिस्सदारी 45 प्रतिशत है,  दलितों की हिस्सेदारी अत्यन्त कम सिर्फ 7 प्रतिशत है, क्योंकि वे वर्ण-जाति के श्रेणीक्रम में सबसे नीचे हैं। कुल भूसंपदा का 41 प्रतिशत सवर्णों के पास है, ओबीसी का हिस्सा 35 प्रतिशत है और एससी के पास 7 प्रतिशत है।

जबकि भवन संपदा का 53 प्रतिशत सवर्णों के पास है, ओबीसी के पास 23 प्रतिशत और एसीसी के पास 7 प्रतिशत है। वित्तीय संपदा ( शेयर और डिपाजिट) का 48 प्रतिशत सवर्णों के पास है, ओबीसी के पास 26 प्रतिशत और एससी के पास 8 प्रतिशत। भारत में प्रति परिवार औसत 15 लाख रूपया है, लेकिन सवर्ण परिवारों के संदर्भ में यह औसत 29  लाख रूपये है, ओबीसी के संदर्भ में 13 लाख और एससी के संदर्भ में 6 लाख रूपये है यानि  सर्वणों की प्रति परिवार औसत संपदा ओबीसी से दो गुना से अधिक है।

न्यायपालिका (हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट) में 90 प्रतिशत से अधिक जज सवर्ण हैं। मीडिया पर सवर्णों के कब्जे के तथ्य से सभी परिचित हैं।भारत में मनुसंहिता पर आधारित वर्ण व्यवस्था का श्रेणीक्रम पूरी तरह लागू है। भारत में बहुलांश लोगों की नियति आज भी इससे तय होती है कि उन्होंने किस वर्ण-जाति में जन्म लिया है।

यह लेख वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सिद्धार्थ रामू के निजी विचार है ।

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