न्याय की अग्नि लेकर पैदा हुई फूलन को शहादत दिवस पर नमन!
अभी ठीक से बचपन खत्म भी नही हुआ था कि फूलन पर लैंगिक अत्याचार शुरू हो गया। एक बार शुरू हो गए ऐसे हमलों पर विराम तभी लगा, जब फूलन ने “बेहमई” को अंजाम दिया … अतः यह सेल्फ-डिफेंस के अलावे कुछ नही था .. यह आत्मरक्षा में मिनिमम हिंसा का प्रयोग था। इससे कम डोज बेअसर रहता …
फुलन ने एक सार्वजनिक भाषण में अपनी बात रखते हुए कहा था :-
“मैंने कई बार सोचा कि आत्महत्या कर लूँ। फिर सोचा कि मरती तो लड़कियाँ रोज़ हैं।
रावण ने सीता हरण किया तो लोग आज भी उसका पुतला जलाते हैं। मेरे साथ भी ऐसे ही रावणों ने अत्याचार किया और मैंने उन्हें जबाब दिया। तो मैंने क्या बुरा किया? पर लोग मुझे डाकू कहते हैं!”
बीहड़ की फुल फूलन देवी की जिंदगी में जो दो महत्वपूर्ण मोड़ आए। उस समय दो महत्वपूर्ण लोग का विशेष साथ और सहयोग मिला है। पहला, विक्रम मल्लाह का साथ मिला -अबला फूलन को सबला फूलन बनने में। दूसरा, मानसिंह यादव का साथ मिला – सबल फूलन को सरदार फूलन बनने में …
फूलन की सबसे बड़ी विशेषता यह कि उनने शक्ति का दुरुपयोग तो छोड़िए अतिशय प्रोयोग तक नही किया । अनपढ़ होते हुवे एक तो स्वयम शक्ति हासिल करना , न परिवार न राज्य का इसमे कोई योगदान , और स्वयम अर्जित शक्ति का ऐसा नपा तुला न्यायिक प्रयोग , जो IPC के तहत सेल्फ डिफेंस में मान्य है , आश्चर्यजनक है । पुनः ज्योही उनको अपने प्रति लगातार हो रहे जुल्म से छुटकारा मिल गया , तुरत मुख्य धारा में शामिल हो जाना और ज्यो ही मौका मिला .. अन्यो को भी जुल्म से छुटकारा दिलाने के लिए शक्ति हासिल करने में लग जाना …. उन्हें महान विभूतियो में शामिल कर देता है।
10 अगस्त 1963 को यूपी में जालौन के घूरा का पुरवा में फूलन का जन्म हुआ था. गरीब मल्लाह जाति में जन्मी फूलन में पैतृक दब्बूपन नहीं था. उसने अपनी मां से सुना था कि चाचा ने उनकी जमीन हड़प ली थी. दस साल की उम्र में अपने चाचा से भिड़ गई.
इस गुस्से की सजा फूलन को उसके घरवालों ने भी दी. उसकी शादी कर दी गई. 10 की ही उम्र में उससे उम्र मे चौगुना बड़े आदमी से. कुछ साल किसी तरह से निकला पर धीरे-धीरे फूलन की हेल्थ इतनी खराब हो गई कि उसे मायके आना पड़ गया. पर कुछ दिन बाद उसके भाई ने उसे वापस ससुराल भेज दिया. वहां जा के पता चला कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है. पति और उसकी दूसरी बीवी ने फूलन की बड़ी पिटाई की. फूलन को पुनः वह घर छोड़ना पड़ा.
अब परित्यक्ता फूलन को गाँव मे सामान्य जिंदगी जीना मुश्किल हो गया। गाँव के मुखिया के लड़के ने उससे जोर जबरजस्ती करनी चाही, पर उसे मुह की खानी पड़ी। पर गाँव मे उसे ही बदनामी झेलनी पड़ी, उसे ही दोषी ठहराया गया। ऐसे में उसने अपने यहाँ कभी कभार आने वाले दूर के रिश्तेदार विक्रम से दोस्ती बढ़ाई, जो कि खुद बागी जिंदगी जी रहा था, डकैत था। धीरे-धीरे फूलन की उससे नजदीकी बढ़ी और साथ घूमने लगी. फूलन ने ये कभी क्लियर नहीं किया कि अपनी मर्जी से उसके साथ गई या फिर उसे जबरी उठा लिया गया. फूलन ने अपनी आत्मकथा में कहा: शायद किस्मत को यही मंजूर था. गैंग में फूलन के आने के बाद झंझट हो गई. सरदार बाबू गुज्जर फूलन पर आसक्त हो गया . इस बात को लेकर विक्रम मल्लाह ने उसकी हत्या कर दी . अब फूलन विक्रम के साथ रहने लगी.
अब श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर का गैंग ने विक्रम मल्लाह को मार दिया . और फूलन को किडनैप कर बेहमई में 3 हफ्ते तक बलात्कार किया. ये फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ में दिखाया गया है. पर माला सेन की फूलन के ऊपर लिखी किताब में फूलन ने इस बात को कभी खुल के नहीं कहा है. फूलन ने हमेशा यही कहा कि ठाकुरों ने मेरे साथ बहुत मजाक किया. इसका ये भी नजरिया है कि बलात्कार एक ऐसा शब्द है, जिसे कोई औरत कभी स्वीकार नहीं करना चाहती.
यहां से किसी तरह छूटने के बाद फूलन को मानसिंह यादव नामक डाकू का साथ-सहयोग मिला. उसकी सहायता से फूलन ने अपना स्वयं का गैंग बनाया और 1981 में फूलन बेहमई गांव लौटी और गांव से 22 ठाकुरों को निकालकर गोली मार दी.
यही वो हत्याकांड था, जिसने फूलन की छवि एक खूंखार डकैत की बना दी. चारों ओर कोहराम मच गया और यूपी के मुख्यमंत्री वी. पी. सिंह. को बेहमई कांड के बाद रिजाइन करना पड़ा था .
दो साल बाद फूलन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए राजी हो गईं. बिना किसी मुकदमा के 11 साल जेल में रखा गया. उसके बाद मुलायम सिंह की सरकार ने 1993 में उन पर लगे सारे आरोप वापस लेने का फैसला किया.
1994 में फूलन जेल से छूट गईं. बेहमई कांड के पूर्व से ही उनके साथ साए की तरह रहने वाले मानसिंह यादव फूलन के साथ ही सरेंडर किए थे पर उनसे एक साल पहले ही जेल से रिहा कर दिए गए थे। कहते हैं जेल में दोनों ने शादी कर ली थी और पति-पत्नी की तरह रहते थे।
अरुंधती रॉय ने लिखा है: जेल में फूलन से बिना पूछे ऑपरेशन कर उनका यूटरस निकाल दिया गया. डॉक्टर ने पूछने पर कहा- अब ये दूसरी फूलन नहीं पैदा कर पायेगी. एक औरत से उसके शरीर का एक अंग बीमारी में ही सही, पर बाहर कर दिया जाता है और उससे पूछा भी नहीं जाता.
बिना मुकदमा चलाये ग्यारह साल तक जेल में रहने के बाद फूलन को 1994 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने रिहा कर दिया। फूलन ने अपनी रिहाई के बाद ब्राह्मण संस्कृति त्यागकर बौद्ध संस्कृति को अपनाकर घर वापसी किया।
1996 में फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत गईं. मिर्जापुर से सांसद बनीं. 1998 में हार गईं, पर फिर 1999 में वहीं से जीत गईं. 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा फूलन से मिलने आया. इच्छा जाहिर की कि फूलन के संगठन ‘एकलव्य सेना’ से जुड़ेगा. खीर खाई. और फिर घर के गेट पर फूलन को गोली मार दी . 14 अगस्त 2014 को दिल्ली की एक अदालत ने शेर सिंह राणा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.पर कुछ ही साल बाद वह बेल पर रिहा कर दिया गया और देशभर में छूटा घूमने लगा.
कुल 38 साल के जीवन में फुल जैसी फूलन की कहानी एक परिकथा से कम नही है।
जन्म – 10 अगस्त 1963
मृत्यु – 25 जुलाई 2001
लेखक – एडवोकेट मनीष रंजन , सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक
(अब आप नेशनल इंडिया न्यूज़ के साथ फेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब पर जुड़ सकते हैं.)