विश्व कविता दिवस पर बयां हुआ दिल का हाल
दर्द-ए-दिल के वास्ते पैदा किया इंसान को
वर्ना ताअत के लिए कुछ कम न थे कर्र-ओ-बयाँ.
अमूमन ऐसा होता है कि शायरों, कवियों की कुछ ख़ास कविताएं या शेर ही उनकी सारी शायरी का आईना बन जाते हैं। इन शेर और नज़्मों में उनका पूरा साहित्यिक अध्यवसाय परिलक्षित होता है। ख़ास बात तो यह है कि इन सबों की प्रतिनिधी कविताएं या शेर वे होते हैं जो पीड़ा, मर्म, रंज, ग़म और वियोग के धरातल पर लिखे गए होते हैं।
मीर तक़ी ‘मीर’ हों या कि मिर्ज़ा ‘ग़ालिब’; ख़्वाजा मीर ‘दर्द’ हों या कि मोहम्मद रफ़ी ‘सौदा’; हैदर अली ‘आतिश’ हों या कि नवाब मिर्ज़ा ख़ां ‘दाग़’; शौकत अली ख़ां ‘फ़ानी’ बदायूंनी हों या कि इमाम बख़्श ‘नासेख़’—सब की शायरी का बुनियादी मौज़ू दर्द-ए-दिल है।
‘इक़बाल’ ने दर्द-ए-दिल को दुनिया की सब से बड़ी नेअमत क़रार दिया है। इसलिए वो सोज़-ओ-तब-ओ-ताब को अव्वल भी क़रार देते हैं और आख़िर भी। देखिये–
अहवाल-ए-मोहब्बत में कुछ फ़र्क़ नहीं ऐसा
सोज़ ओ तब-ओ-ताब अव्वल सोज़ ओ तब-ओ-ताब आख़िर।
‘सौदा’ ने तो यहाँ तक कह दिया कि ख़ुदा जब आदम का जिस्म बनाने के लिये आग, पानी, मिट्टी और हवा का मुरक्कब (मिश्रण) से तैयार कर रहे थे। ध्यान रहे, मानव शरीर के निर्माण का भारतीय योग दर्शन भी यही बात कहता है कि शरीर पंचतत्व—पृथ्वी (क्षिति), जल (अप), अग्नि (ताप), वायु (पवन) और गगन (शून्य) की बात कर रहे हैं—से मिल कर बना है। ख़ैर, जो मुरक्कब तैयार हुआ उसमें से कुछ आग बच गई थी क्योंकि उसकी ज़्यादा आग मिलाने से ख़मीर का संतुलन बिगड़ सकता था। तो फिर बची हुई इस ख़ालिस आग का क्या किया जाता? हुआ यह कि इस आग से आशिक़ का दिल बनाया गया। आशिक़ का दिल आग का बना होता है जिसमें प्रेम के, ग़म के, वेदना के शोले भड़कते रहते हैं।
अब आशिक़ के दर्द-ओ-ग़म का अंदाज़ा लगाइए। ‘जिगर’ मुरादाबादी ने कहा दिल के जाने से सिर्फ़ रौनक़े हयात जाती है लेकिन ग़म के चले जाने से सारी कायनात ख़त्म हो जाती है।
दिल गया रौनक़-ए-हयात गई
ग़म गया सारी कायनात गई।
अंग्रेज़ी के मशहूर रूमानी शायर पर्सी बिश शेली ने तो फ़ैसला ही सुना दिया है – “हमारे शीरीं तरीन नग़्मात वही हैं जो हमारे मग़्मूम तरीन ख़यालात पर मुश्तमिल हों।” इसी ज़मन में मशहूर छायावादी शायर सुमित्रानंदन पंत ने वाज़ेह अल्फ़ाज़ में कह दिया:
वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान
निकल कर नैनों से चुप-चाप बही होगी कविता अनजान।
The author is Atif Rabanna, an Assistant Professor at Patna University. He is a socio-political analyst and teaches economics to the university students
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यह सूचना हर्षित करने वाली है कि नेशनल इंडिया न्यूज (एनआईएन) यूट्यूब चैनल को सस्क्राइब करने…