तेज तर्रार अद्भूत वक्ता, कवि, लेखक, ब्राह्मणवाद विरोधी आन्दोलनकारी और प्रखर राजनेता: मुथुवेल करुणानिधि को सलाम
मुथुवेल करुणानिधि.
‘मु का का’ एवम कलाईनार (तमिल: கலைஞர், “कला का विद्वान”) के नाम से पहचाने जाते थे | वे महानतम कलाकार (साहित्य, संगीत और रंगमंच) थे। उनके भीतर कला और राजनीति का बेजोड़ संगम था। साउथ इंडिया की करीब 50 फिल्मों की कहानियां और संवाद लिखने वाले करुणानिधि की पहचान एक ऐसे सियासतदान की थी, जिसने अपनी लेखनी से तमिलनाडु की तकदीर लिखी।
एम करुणानिधि का जन्म 3 जून, 1924 को नागपट्टिनम जिले के तिरुवुवालाईयूर में मुथुवेल्लू (पिताजी) और अंजुगम अम्मल (माताजी) के यहाँ हुए था। किशोरावस्था से ही वे द्रविड़ आंदोलन से प्रेरित थे। ईवी रामसामी ‘पेरियार’ और द्रमुक संस्थापक सी एन अन्नादुरई की ब्राह्मणवाद विरोधी विचारधारा से प्रभावित करुणानिधि के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1938 में तिरूवरूर में हिंदी विरोधी प्रदर्शन के साथ शुरू हुई। तब वह सिर्फ 14 साल के थे।
उस समय ब्राह्मणवाद चरम सीमा पर था. शिक्षा, सेना एवं राजनीति के क्षेत्र में ब्राह्मणों के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए 14 साल की उम्र में वे जस्टिस पार्टी में शामिल हो गए थे। मुथुवेल करुणानिधि ने द्रविड़ आंदोलन के प्रचार प्रसार के लिए एक हस्तलिखित समाचार पत्र “मनावर नेसन” लिखना और प्रसार करना शुरू किया जो आगे चलकर द्रमुक के आधिकारिक मुखपत्र “मुरासोली” की उत्पत्ति में परिवर्तित हुआ।
मुथुवेल करुणानिधि ने 10 अगस्त 1942 को मुरासोली नामक एक मासिक अखबार शुरू किया वे संस्थापक संपादक और प्रकाशक थे जो बाद में एक साप्ताहिक और अब एक दैनिक अखबार बन गया है। जब सन 1944 में ईवी रामसामी ‘पेरियार’ ने जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर ‘द्रविड़ कड़गम’ कर दिया। तब वे द्रविड़ कड़गम में आ गए और द्रविड़ आंदोलन के सबसे विश्वसनीय चेहरा बन गए।
मुथुवेल करुणानिधि 1957 से 6 दशक तक लगातार विधायक रहे। इस सफर की शुरुआत कुलीतलाई विधानसभा सीट पर जीत के साथ शुरू हुई तथा 2016 में तिरूवरूर सीट से जीतने तक जारी रही। मुथुवेल करुणानिधि 1961 में डीएमके कोषाध्यक्ष बने और 1962 में राज्य विधानसभा में विपक्ष के उपनेता बने और 1967 में जब डीएमके सत्ता में आई तब वे सार्वजनिक कार्य मंत्री बने।
मुथुवेल करुणानिधि फरवरी 1969 में अन्नादुरई के निधन के बाद वी आर नेदुनचेझिएन को मात देकर करुणानिधि पहली बार मुख्यमंत्री बने। उन्हें मुख्यमंत्री बनाने में एम जी रामचंद्रन ने अहम भूमिका निभाई थी। सत्ता संभालने के बाद ही करुणानिधि जुलाई 1969 में द्रमुक के अध्यक्ष बने और अंतिम सांस लेने तक वह इस पद पर बने रहे।
इसके बाद करुणानिधि 1971, 1989, 1996 और 2006 में मुख्यमंत्री बने। उन्हें सबसे बड़ा राजनीतिक झटका उस वक्त लगा जब 1972 में एम जी रामचंद्रन ने उनके खिलाफ विद्रोह करते हुए उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर अलग पार्टी अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम (अन्नाद्रमुक) की स्थापना की। तब से लेकर आज तक तमिलनाडु राज्य की राजनीति इन्हीं दो दलों के इर्द गिर्द ही घूम रही है।
सामाजिक न्याय के सन्दर्भ में करुणानिधि के सबसे महत्त्व पूर्ण भूमिका रही, इसीलिए तो मंडल आयोग ने उनकी कार्यप्रणाली की सराहना करते हुए मंडल रिपोर्ट में लिखा है कि ओबीसी को विशेष सुविधाएँ प्रदान करने के मामले में तमिलनाडु अग्रणी रहा है। यह कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं की किसी अन्य भारतीय राजनेता के पास करुणानिधि की तरह वैचारिक विकास की अद्भूत वक्तृत्व क्षमता नहीं थी। आज भी कैसेट के रूप में दर्ज उनके राजनीतिक भाषण तमिल फिल्म गीतों से भी लोकप्रिय है।
ऐसे मुलनिवासी द्रविड़ महानायक पेरियार रामासामी के बिन ब्राह्मण आंदोलन के चुस्त सहयोगी, ब्राह्मणवाद विरोधी आन्दोलनकारी सामाजिक न्याय के महानतम योद्धा, तेज तर्रार अद्भूत वक्ता, कवि, लेखक, और प्रखर राजनेता: करुणानिधिजी का अलविदा कर जाना. ब्राह्मणवाद विरोधी आन्दोलन के दुसरे युग का अंत है. मुलनिवासी द्रविड़ महानायक मुथुवेल करूणानिधि को शत शत सलाम. वंदन. नमन!
-JD Chandrapal की क़लम से
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