लोकतंत्र के खतरे के लिए डॉ अंबेडकर की वो तीन चेतावनी, जो हकीकत होती दिख रही हैं !
विमर्श। डॉ अंबेडकर ने तभी आगाह कर दिया थाl 25 नवंबर, 1949 संविधान सभा के सामने दिए अपने भाषण में लोकतंत्र के लिए तीन बड़े खतरे गिनाए थे. और 26 नवंबर, 1949 को संविधान को स्वीकृति मिली थी। डॉ अंबेडकर का मानना था कि. यदि देश में जल्दी से जल्दी सामाजिक लोकतंत्र नहीं लाया गया तो यह स्थिति राजनीतिक लोकतंत्र के लिए खतरा बन जाएगी।
संविधान निर्माण में डॉ अंबेडकर के योगदान पर चर्चा कर रही है तब यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि खुद संविधान निर्माता ने भारतीय लोकतंत्र के लिए कौन से बड़े खतरे देखे थे. डॉ अंबेडकर ने 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में दिए अपने भाषण में भारतीय लोकतंत्र के लिए तीन बड़े खतरे बताए थे। और ताज्जुब की बात है कि ये सभी परिस्थितियां अतीत में देश देख चुका है. वर्तमान में भी इसके छिटपुट उदाहरण मौजूद हैं।
उनकी पहली चेतावनी जनता द्वारा सामाजिक-आर्थिक लक्ष्य हासिल करने के लिए अपनाई जाने वाली गैरसंवैधानिक प्रक्रियाओं पर थी. अपने भाषण में अंबेडकर सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति में संविधान प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग जरूरी बताते हुए कहते हैं, ‘इसका मतलब है कि हमें खूनी क्रांतियों का तरीका छोड़ना होगा, अवज्ञा का रास्ता छोड़ना होगा, असहयोग और सत्याग्रह का रास्ता छोड़ना होगा।’
संविधान निर्माता की लोकतंत्र के लिए यह पहली चेतावनी कितनी सही थी, आजादी के बाद हम इसके कई उदाहरण देख चुके हैं।
नक्सलवाद का उभार, जम्मू-कश्मीर का अलगाववादी आंदोलन, उत्तर-पूर्वी राज्यों में चल रहे विद्रोही आंदोलन आज भले ही राष्ट्रीय स्तर पर हमारे लोकतंत्र के लिए खतरा न हों, लेकिन जहां भी ये विद्रोही गतिविधियां चल रही हैं वहां लोकतंत्र देश के बाकी हिस्सों की तरह मजबूत नहीं है।
डॉ अंबेडकर के इस भाषण में दूसरी चेतावनी यह थी कि भारत सिर्फ राजनीतिक लोकतंत्र न रहे बल्कि यह सामाजिक लोकतंत्र का भी विकास करे. उनका मानना था कि यदि देश में जल्दी से जल्दी आर्थिक-सामाजिक असमानता की खाई नहीं पाटी गई यानी सामाजिक लोकतंत्र नहीं लाया गया तो यह स्थिति राजनीतिक लोकतंत्र के लिए खतरा बन जाएगी।
‘धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है लेकिन राजनीति में, भक्ति या नायक पूजा पतन का निश्चित रास्ता है और जो आखिरकार तानाशाही पर खत्म होता है’ अपने इसी भाषण में डॉ अंबेडकर लोकतंत्र के लिए एक तीसरा खतरा बताते हैं और जो वर्तमान राजनीति में बिल्कुल साफ-साफ देखा जा सकता है।
डॉ अंबेडकर ने संविधान सभा के माध्यम से आम लोगों को चेतावनी दी थी कि वे किसी भी राजनेता के प्रति अंधश्रद्धा न रखें नहीं तो इसकी कीमत लोकतंत्र को चुकानी पड़ेगी। दिलचस्प बात है कि उन्होंने यहां राजनीति में सीधे-सीधे भक्त और भक्ति की बात की है।
-सुशील कुमार
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