हमारी मानसिकता ब्राह्मणवाद से ग्रस्त जो है, बहुत बड़ा सवाल..कौन बेहतर..?
-Dr. JD Chandrapal
नजरिया। फ्रांस को फीफा विश्व कप की रोमांचक फाइनल जिताने वाला टीनऐजर फ़ॉरवर्ड किलियान एमबापे या फाइनल हारकर भी समूचे विश्व का दिल जितने वाले, दिल्ली के पांचवे हिस्से के बराबर आबादी वाले, 1991 में यूगोस्लोवाकिया के टूटने के बाद दुनिया के नक्शे पर आने वाले, यूरोपीयन देश दमदार क्रोएशिया के कप्तान और शानदार मीडफ़ील्डर लूका मोद्रिच लूका मोद्रिच का अतीत बहुत ही दिलचस्प है।
युद्ध- प्रभावित इलाके में रिफ्यूजी का जीवन बिताने वाले लुका का बचपन गोलियों-ग्रेनेड के धमाकों के बीच गुजरा, यहाँ तक की सर्बियाई विद्रोहियों ने उनके घर को आग लगा दी और उनके दादा को गोली मार दी। लुका मोद्रिच हंमेशा कहता है युद्ध ने मुझे और मजबूत बनाया। यह मेरे और मेरे परिवार के लिए काफी मुश्किल वक्त था। मैं उस वक्त को हमेशा अपने साथ लेकर जीना नहीं चाहता लेकिन मैं उसके बारे में भूलना भी नहीं चाहता।’
उधर फ्रांस की रोमांचक जीत के सुवर्णाक्षर पर हस्ताक्षर सामान किलियान एमबापे के पिता भी तो केमरून से फ्रान्स आये थे रोजगार की संभावनाओ के तलाशते हुए। कुछ भी हो..समूचे विश्व का दिल जितने में उनके देश या उनका रंग बिच में नहीं आया।
क्रिकेटर हरभजन सिंह तंज कसते हुए ट्वीट करते है कि लगभग 50 लाख की आबादी वाला देश क्रोएशिया फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप का फाइनल खेलेगा और हम 135 करोड़ लोग हिंदू-मुसलमान खेल रहे है।
#soch bdlo desh bdlega
बिलकूल सही कहा यहाँ हम रोज हिंदू-मुसलमान जातिवाद का खेल खेलते रहते हैं। जातिवाद का नंगा नाच और ढूंढते रहते है हिमा दास की जाति…ताकि उसकी सफलता का वजूद निर्धारित किया जा सके।
विश्व के अन्यो को…कोई फर्क नहीं पड़ता गोरा (लुका मोद्रिच) हो या काला (किलियान एमबापे) मगर हमें फर्क पड़ता है। क्योंकि हम श्रेष्ठता का निर्धारण जन्म, जाति, वर्ण के आधार पर करने के आदि जो है। क्योंकि हमारी मानसिकता ब्राह्मणवाद से ग्रस्त जो है।
-Dr. JD Chandrapal
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