नहीं रहे हिंदी जगत के मशहूर साहित्यकार और विख्यात आलोचक डॉ नामवर सिंह
By- Aqil Raza ~
हिंदी जगत के मशहूर साहित्यकार और आलोचना की विधा के शिखर पुरुष नामवर सिंह नहीं रहे. मंगलवार देर रात दिल्ली के AIIMS में उन्होंने आखिरी सांस ली. नामवर सिंह पिछले एक महीने से एम्स ट्रामा सेंटर में भर्ती थे. ब्रेन हैमरेज की वजह से उन्हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया था. 92 साल के नामवर सिंह का डॉक्टर लंबे समय से इलाज कर रहे थे. डॉ नामवर सिंह के निधन से साहित्य जगत में गहरा शोक है. साहित्य और पत्रकारिता जगत के दिग्गजों ने उनके निधन पर शोक जताया है.
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश उर्मिल अपने शोक व्यक्त करते हुए लिखते हैं कि सन् 1978 में जब जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में मेरा दाखिला हुआ, वह भारतीय भाषा केंद्र के अध्यक्ष थे। उनके व्याख्यानों को सुनना मेरे लिए एक नया अनुभव था! वह जिस किसी विषय पर बोलते, लगता ज्ञान का सुरीला संगीत बज रहा है! उनकी कक्षा खत्म होने पर हमें कोफ्त होती! ओह, समय अभी क्यों खत्म हो गया!
सन् 1978 में कुछ ही महीने बाद मुझे विश्वविद्यालय छोड़ना पड़ा। अगले साल, फिर मैंने दाखिले की अर्जी डाली। दाखिला मिल गया! सन् 1979 में जेएनयू में वापसी हुई। जहां तक याद आ रहा है, डॉ सिंह ने एम्. फिल. के पहले सेमेस्टर में हमें साहित्येतिहास पढ़ाया था! साहित्य और समाज को लेकर आलोचनात्मक दृष्टि विकसित करने में उनके एक-एक व्याख्यान हम छात्रों के लिए बेहद महत्वपूर्ण थे। कोई शोध-छात्र उनका एक भी व्याख्यान नहीं छोड़ना नहीं चाहता था! यह बात मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वह अपने विषय के योग्यतम शिक्षक थे!
डॉ साहब से कई मुद्दों पर छात्र-जीवन में हमारी असहमतियां भी रहीं, जिनकी चर्चा कुछ साल पहले मैने ‘समयांतर’ पत्रिका में प्रकाशित अपने एक लेख: ‘जनेवि: एक अयोग्य छात्र के नोट्स’ में विस्तार से की! छात्र-जीवन में उनसे अपने असहज रिश्तों के बावजूद वह बाद के दिनों में जब कभी मिले, उनके सम्मान में मेरा सिर हमेशा झुक जाता। कई मौकों पर उन्होंने मेरे कुछेक कामों की प्रशंसा भी की। इस वक्त दो ऐसे मौक़े याद आ रहे हैं! नागपुर के एक सेमिनार(संभवतः सन्1992 या 93 ) में राहुल सांकृत्यायन पर मेरे व्याख्यान के बाद जब वह अध्यक्षीय भाषण देने उठे तो उन्होंने मेरा उल्लेख अपने ‘सुयोग्य शिष्य’ के रूप में किया! पटना में राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा प्रकाशित मेरी पुस्तक ‘योद्धा महापंडित’ के लोकार्पण (सन् 1994) में भी उन्होंने मेरी पुस्तक के एक खास अध्याय की तारीफ की। उस समारोह में डॉ कमला सांकृत्यायन भी मौजूद थीं!
हिन्दी के विख्यात आलोचक और अपने विद्वान शिक्षक डॉ नामवर सिंह को सलाम और सादर श्रद्धांजलि!
~ उर्मिलेश उर्मिल, वरिष्ठ पत्रकार
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