मनुवाद की जड़े मजबूत करने के लिए BJP क्यों चाहेगी 2019 का चुनाव जीतना?
Published By- Aqil Raza ~
मनुवाद की जड़ें मजबूत करनी है तो 2019 का चुनाव बीजेपी को जीतना होगा, समझें कैसे।
इसके लिए पहले समझना पड़ेगा कि आखिर दलित बनाये कैसे जाते हैं। दलित होने के लिए आवश्यक है कि बहुजन समाज को शिक्षा के लिए गैर ज़रूरी बना दिया जाय और व्यक्ति को संसाधन विहीन।
दलित बनाने में 75% योगदान अशिक्षा का है तो शेष योगदान संसाधनहीनता का है।
एक उदाहरण से समझते हैं,
एक अति-शिक्षित बेरोजगार जिसकी उम्र आज 25 से 30 साल के बीच है, आंदोलन कर रहा है, लाठी खा रहा है कि उसे जॉब चाहिए। उसे शिक्षित बनाने में उसके पिता की खून पसीने की कमाई लगी है। पिता ने अपने कुछ बच्चों को साइड में रखकर बेरोजगार युवक की पढ़ाई कराई है ताकि वह पढ़-लिख कर जॉब करे और अपने परिवार के लिए संसाधन जुटाए।
बीजेपी सरकार की चाल है कि उसको रोजगार से बंचित कर दो, मतलब जो आज अपने रोजगार के हक़ के लिए लाठी खा रहा है संसाधन विहीन है। उसके जैसे तमाम युवकों की पीढ़ी को संसाधन विहीन कर दो, यानी बहुजन समाज को दलित बना दो।
क्योंकि यही युवक अब शादीशुदा होंगे, इनके बच्चे होंगे परन्तु धन/ संसाधन के अभाव में शिक्षित और पोषित नहीं हो पायेंगे। ये अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा पायेंगे। और फिर ऐसे बच्चे कभी आन्दोलन नहीं कर पायेंगे।
यानि 10 साल में, इनके बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा इतनी नगण्य हो जायेगी कि अब वह अपने शिक्षित पिता की तरह आंदोलन नहीं कर पायेंगे बल्कि किसी वैश्य के यहां सेवादारी या ड्राईवरी का काम करेंगे।
पिछले 4 सालों में रिपोर्ट है कि कोई रोजगार श्रृजन नहीं हुआ बल्कि 2 करोड़ 70 लाख पद कम कर दिए गए हैं। मतलब साफ है कि किसी को जमीनी स्तर पर रोजगार नहीं मिला।
बीजेपी 2019 में ये स्थिति बरकरार रखने का भरपूर प्रयास कर रही है, क्योंकि 5 साल की बेकारी से बेरोजगार युवक संभल सकते हैं और अपने बच्चों को दलित होने से बचा सकते हैं,
क्योंकि तब बच्चे कक्षा 1 से 2 में होगें और यह परिस्थिति बदली जा सकती है। रोजगार पाते ही वह अपने बच्चों पर ध्यान दें सकता है और उन्हें बचा सकता है।
परन्तु अगर बीजेपी 2019 में चुनाव जीतती है यानि 5 साल और, तो कम-से-कम इस युवा पीढ़ी के बच्चों को तो दलित होने की मुहर ही लगा दी जायेगी, बीजेपी का यही चरणबद्ध प्रयास है। क्योंकि बच्चे का सार्वाधिक मानसिक विकास 7 साल की उम्र तक ही होता है। और तब यह उम्र निकल जायेगी।
यहां बात सिर्फ 85% वालों की हो रही है। 15% तो पहले से हि सिफारिशों से बाप दादाओं की कम्पनी में जाब कर रहे हैं और गुल-छर्रे उड़ा रहे हैं।
अब दूसरे कारण को देखें यानि शिक्षा को कैसे गैरज़रूरी कर दिया गया है।
सीधा सा मौलिक सवाल है कि राज्य नागरिकों के बीच जॉब का बंटवारा किस आधार पर करेंगा। स्वतंत्रता के बाद उत्तर था शिक्षा के स्तर के आधार पर।
यानि जो प्रतियोगिता में जीतेगा वह हक़दार होगा। आज की स्थिति क्या है, 97% जाब प्राईवेट सेक्टर में है। और सेलेक्शन इंटरव्यू से होता है।
है ना जागीरदारी जिसको चाहेंगे उसको सेलेक्ट करेंगे। हो गई न शिक्षा गैरज़रूरी, यही मनुवाद की शुरुआत है।
डा अम्बेडकर ने कांट्रेक्ट लेवर का खुलकर विरोध किया था। यह शोषण का सबसे बड़ा हथियार है, आज रिलाइंस जैसी कम्पनी में 10% पेरोल पर तो 90% कांट्रेक्ट लेवर है।
पेरोल के मुकाबले कांट्रेक्ट लेवर की तनख्वाह एक चौथाई होती है और कम्पनी की कोई जिम्मेदारी नहीं, जो कल मरता है वो आज मर जाये। क्या यह मनुवाद नहीं है।
मनुवाद की शुरुआत हो चुकी है , बचा है तो सिर्फ इतना कि लोगों का मुंह कैसे बन्द किया जाये। आंदोलनों को कैसे कुचला जाये।
बीजेपी इसके लिए बखूबी चरणबद्ध तरीके से प्रयासरत है। जब भी मौका मिलता है अपने भाईयों को सरकारी संसाधन तथा सरकारी कम्पनियां बेंच देती है, और 85% लोगों के लिए रोजगार के नाम पर ठेंगा है।
~विजय परमार
(लेखक के अपने निजी विचार हैं)
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