मोदी सरकार में नौकरी के नाम पर छात्रों को क्यों मिल रही लाठियां!
By- Aqil Raza
शिक्षा, रोज़गार, और नौकरी ये तीनों ऐसे शब्द हैं जो ज्यादातर सड़कों पर और धरना प्रदर्शन में सुनने को मिलते हैं। हां ये बात जरूर है कि एक बार और इन शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है, जब चुनाव में खादी पहनकर नेताजी हमारे और आपके द्वार आते है। ये शब्द राजनीतिक पार्टियों के प्रचार गाड़ियों पर बंधे लाउड स्पीकर से भी निकलते हैं, जिसमें इन तीनों शब्दों के साथ रोटी, कपड़ा, मकान, पानी और बिजली देने का नाम भी हमें सुनने को मिलता हैं।
एक बार जिस इलाकें में चुनाव कि प्रिक्रिया पूरी हो जाती है, तो मानों उस इलाके से इन चीज़ों का मतलब खत्म हो जाता है और इन सभी शब्दों और जरूरतों को उठाकर कचरे के डिब्बे में फैंक दिया जाता है, जिसके बाद ये मुद्दे धरना प्रदर्शन कर रहे छात्रों और बेरोज़गारो के काम आते हैं। वो इन्हीं नारों के साथ प्रदर्शन करते है, इन्हीं नारों और मुद्दों को अपनी तखती पर लिखकर दिन दिनभर अवाज़ बुलंद करते हैं।
लेकिन फर्क सिर्फ इतना होता है कि जब इन मुद्दों को लेकर सियासत दान वोट मांगते हैं, और रोज़गार देने का वादा करते हैं तो उनकी अवाज़ ज़रूर गोदी मीडिया सबमें उछाल देती है जिससे मतदाताओं को पता चल जाता है कि कौंसी पार्टी ने सबसे ज्यादा वादे किए हैं। पर जब सरकार बनने के बाद युवा उन वादों का हिसाब मांगते है, और युवा अपने साथ हो रही न इंसाफी और नौकरी की मांग करते हैं तो उनकी अवाज़ सब लोगों तक नहीं पहुंचती, क्योंकि गोदी मीडिया को युवाओं की अवाज़ सुनकर कोई फायदा नहीं होने वाला है।
हमारे देश में नौकरी और रोज़गार के नाम पर प्रदर्शन मानों एक आम बात सी लगने लगी है, ऐसा लगता है कि अब बच्चों को शिक्षा लेने के साथ साथ नौकरी लेने का हुनर भी सीख लेना चहिए। उन्हें ये आना चाहिए कि रोज़गार और नौकरी पाने के लिए तपती धूप में धरना कैसे दिया जाता है। अगर आज का युवा सीख लेता है तो कमसे कम उसे सीखना नहीं पड़ेगा की पकोड़े कैसे तले जाते हैं।
क्योंकि इस देश में अब अगर आप रोज़गार की बात करेंगे तो शायद आपको पकोड़ा तलना पड़ जाए। और ये काम इस देश के बहुत से युवाओं ने सीख भी लिया है। पिछले 18 दिनों से एसएससी की बाहर चल रहे धरना प्रदर्शन में युवाओं ने पकोड़ा तलकर मोदी सरकार का विरोध किया, एसएससी छात्रों ने कर्मचारी चयन आयोग की परिक्षाओं में हर बार सामने आ रही अनियमितताओं के मामले में सीबीआई जांच की मांग की।
इस दौरान छात्रों ने पकोड़ा तलने के साथ साथ “एसएससी की एक दबाई, सीबीआई सीबीआई” के नारे भी लगाए। लेकिन अफसोस की बात या है कि अब पकोड़ा तलना भी आम हो गया है, जिसका सरकार पर कोई असर नहीं पड़ता।
वहीं लखनऊ में बीजेपी मुख्यालय के बाहर जब बीटीसी अभ्यार्थी नौकरी की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे तो उन छात्र-छात्राओं पर लाठियां बरसा दी गईं।
इसमें सबसे ज्यादा दुख कि बात ये है कि एक युवा नौकरी पाने के लिए क्या कुछ नहीं करता,,, पढ़ाई करते हुए अपने घर से दूर हो जाता है महनत करके नंबर लाता है, औऱ डिग्री या एक्साम क्लियर करने के बाद जब वो सरकार के पास नौकरी मांगने जाती है तो उसे नौकरी की जगह लाठियां मिलती है। लेकिन सवाल ये है कि क्या लाठी डंडे खाने के लिए पढ़ाई की थी? क्या सरकारों में इतना दम नहीं कि वो देश के युवाओं को रोजगार दे सकें।
ये बात हमें नहीं भूलना चाहिए कि जब किसी देश का युवा पिछड़ता है तो उसके साथ-साथ वो देश भी पिछे जाता है, और आज हमारे देश के करोड़ों युवा सड़कों पर और सरकारी दफ्तरों के बाहर सरकार से नौकरी की मांग कर रहे हैं, जहां उन्हें नौकरियां तो नहीं मिलती है लेकिन उसके बदले में युवाओं को लाठिया मिल जाती है, तो ऐसे में ये सोचना बेहद जरूरी है कि आखिर सबका साथ-सबका सबका- विकास और युवाओं को हर साल करोड़ों रोजगार देने वाली सरकारों का यही वजूद रह गया कि वो नौकरी मांगने वाले युवाओं पर लाठियां पड़वा रही हैं. मोदी सरकार के पूरे चार साल बीत जाने के बाद भी युवा नौकरी-रोजगार के लिए सड़कों पर मारे-धारे फिर रहे हैं।
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