गणपति मौर्य ही क्यों ??!!
By: Kirti Kumar
भारत की उत्सव प्रिय जनता गणेशोत्सव को बहुत ही धूमधाम से मनाती है, लेकिन पहले गणपति के बारे में जानना भी जरूरी हो जाता है। सामान्य भाषा में समझने का प्रयास करे तो गण याने समूह और पति याने स्वामी-प्रमुख, यह दो शब्दों से गणपति शब्द बना है। आज हमारे सामने गणपति के दो स्वरूप है, एक वास्तविक है तो दूसरा काल्पनिक है। भारत में लोग वास्तविक गणपति की उपेक्षा कर काल्पनिक गणपति में ही ज्यादा विश्वास करते है, या ऐसा करने के लिए उन्हें भ्रमित किया गया है।
दोनों में से पहले वास्तविक गणपति की चर्चा करते है। प्राचीन काल में भारत में दो प्रकार की राज्य व्यवस्था थी। एक राजाधीन और दूसरी गणाधीन। राजाधीन को एकाधीन भी कहते थे, जहाँ गण या अनेक व्यक्तियों का शासन होता था, वे ही गणाधीन राज्य कहलाते थे। बुद्ध के काल में अनेक गणराज्य थे। तिरहुत से लेकर कपिलवस्तु तक गणराज्यों का एक छोटा सा गुच्छा गंगा से तराई तक फैला हुआ था। गौतम बुद्ध का गण शाक्य गण था। लिच्छवियों का गणराज्य इनमें सबसे शक्तिशाली था, उसकी राजधानी वैशाली थी। किंतु भारत में गणराज्यों का सबसे अधिक विस्तार वाहीक (आधुनिक पंजाब) प्रदेश में हुआ था। इनका राजनीतिक संघटन बहुत दृढ़ था और ये अपेक्षाकृत विकसित थे। इनमें क्षुद्रक और मालव दो गणराज्यों का विशेष उल्लेख आता है। उन्होंने यवन आक्रांता सिकंदर से घोर युद्ध किया था. वह मालवों के बाण से तो घायल भी हो गया था। ञात होता है कि सिंधु नदी के दोनों तटों पर गणराज्यों की यह श्रृंखला ऊपर से नीचे को उतरती सौराष्ट्र तक फैल गई थी क्योंकि सिंध नामक प्रदेश में भी इस प्रकर के कई गणों का वर्णन मिलता है।
गणतंत्र अनुसार राज्य का कोई भी नागरिक अपने गुण-कर्म की योग्यता से गणराज्य का शासक बन सकता था। इस तरह गणराज्य के शासक गण के आम नागरिक में से ही होते थे, इसलिए आम जनता इनका आदर भी करती थी। अगर उपरोक्त व्याख्यानुसार गणपति का अर्थ देखे तो ऐसे गणराज्य के शासक को ही गणपति माना जा सकता है। अगर इस तरह गण के प्रमुख को गणपति कहा जाये तो गणपति सिर्फ एक नहीं हो सकते, क्योंकि अलग-अलग गण के शासक अलग होते थे। विदेशी आर्यों के हमलों के बाद यह गणतंत्र प्रणाली खत्म हो गई और वंस परंपरा के अनुसार राजाशाही की ब्राह्मणी शासन व्यवस्था शुरू हुई और इसके साथ ही काल्पनिक गणपति का उदय हुआ। सन 1950 में स्वतंत्र भारत के संविधान ने भारत को गणराज्य घोषित किया।
दोस्तों भारतीय संविधान ने जनता को सिर्फ अपना शासक चुनने का अधिकार नहीं दिया है, बल्कि खुद शासक बनने का मौका भी दिया है! अब सवाल उठता है कि हम जिनकी पूजा करते है वह गणपति कौन है ?!!
इस काल्पनिक गणपति को ब्राह्मण ग्रंथो के मुताबिक़ भगवान शंकर का पुत्र बताया जाता है, हो सकता है यह गणपति भी कोई गण के शासक रहे होगे..!! इनके बारे मे बहुत सी प्रचलित मान्यताओं में से एक़ मान्यता ऐसी है कि, एक दिन भगवान शंकर को बहुत ही गुस्सा आया तो उन्होंने अपने पुत्र का सर धड़ से अलग कर दिया और फिर प्यार आ गया तो हाथी का सर लगा दिया!! प्राचीन इजिप्त के लोगों ने तो ‘स्फिंक्स’ की सिर्फ मूर्ति बनाई थी जिसका सर मनुष्य का था और बाकि शरीर शेर का था लेकिन ब्राह्मण पंडितो के शास्त्र तो उससे भी आगे गए और हाथी के सर और मनुष्य के धड़ वाले चलते फिरते गणपति बना दिये…!! ये सब बात का कोई वैज्ञानिक और तार्किक आधार नहीं है।
गण व्यवस्था भारत की प्राचीन राज्य व्यवस्था है, जिसे मिटाने के लिए ब्राह्मणों ने काल्पनिक शास्त्रों का सहारा लिया। रामायण के वाल्मीकि को ग़ैर ब्राह्मण बताया, और रामायण सुपरहिट, गीता को ग़ैर ब्राह्मण जननायक कृष्ण के मुँह से कहलवाया उसमें भी कामयाब रहे। महाभारत के लिए प्राचीन भारत की गण व्यवस्था के नायक गणपति का इस्तेमाल किया गया और कामयाब रहे! उसकी वजह यह नहीं कि ब्राह्मण हमसे ज़्यादा चालाक थे, बिलकुल साफ़ वजह थी कि महामानवों के उपदेश हम भूल गए और ब्राह्मणों की बातों पर हमने संशय नहीं किया।
ऑर्क्टिक होम इन वेदास में ब्राह्मणों के विदेशी होने की बात करने वाले तिलक इतिहास को अच्छी तरह जानते थे। प्राचीन भारत में गण व्यवस्था हुआ करती थी, उससे विपरीत आर्य-ब्राह्मणों में राजाशाही थी। बुद्ध और महावीर के समय भी भारत में गण व्यवस्था अस्तित्व में थी। और वैदिक ब्राह्मणों ने रचे काल्पनिक गणपति को डुबोकर भारत की वास्तविक गण व्यवस्था को अपमानित करने हेतु तिलक ने यह उत्सव शुरू किया। जिस तरह रावण को अपमानित करने हेतु जलाया जाता है, उसी तरह गणपति को डुबाया जाता है। इतिहासकार मौर्य शासन को भारत का सुवर्णयुग बताते है। कहा जाता है कि मौर्य क़ालीन भारत में भारत का जीडीपी 30% से भी ज़्यादा था। मौर्य साम्राज्य काफ़ी बड़ा और शक्तिशाली गणराज्य था, जिसके आगे सिकंदर को भी झुकना पड़ा था!
भले ही ब्राह्मणों ने मूलनिवासियों का इतिहास भुलाने के लिए हाथी के सर वाले अवैज्ञानिक और अतार्किक गणपति की रचना की हो, लेकिन भारत के लोग आज भी मौर्य राजा को ही अपना गणपति मानते है। इसलिए ब्राह्मणों के काल्पनिक गणेशोत्सव में भी भारत के बहुजन मौर्य शासन को याद करते हुए, ‘गणपति मौर्य..’ कहते है!
-कीर्ति कुमार
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