क्यों संत रैदास को संघ एवं हिंदू दल और भाजपा अपना नायक नहीं मानते ?
By-डॉ सिद्धार्थ रामू~
क्यों संत रैदास को संघ, बजरंग दल, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व हिंदू परिषद और भाजपा हिंदू एवं अपना नायक नहीं मानते ?
रैदास मंंदिर तोड़ने, उसके बाद उसके विरोध मेंं देश-दुनिया के दलित-बहुजनों के सैलाब के उमड़ने और उसके बाद के सारे घटनाक्रम पर संघ-भाजपा और उसके अन्य आनुषांगिक संगठनों की चुप्पी क्या साफ-साफ इस बात की घोषणा नहीं है कि ये लोग रैदास को न तो हिंदू मानते हैं और न ही अपना नायक मानते हैं।
कल्पना कीजिए यदि आदि शंकराचार्य, तुलदीदास, सावरकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय का कोई मंदिर या स्मारक तोड़ा गया होता, तो ये हिंदूवादी संगठन चुप्प रहते? सड़क पर नहीं उतर आते? खून की नदियां बहाने के लिए तैयार नहीं हो जाते?
कोई कह सकता है कि संघ-भाजपा और उनके अन्य संगठन इसलिए रैदास मंदिर तोड़ने का विरोध नहीं कर रहे हैं,क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तोड़ा गया है। इस बात में कोई सच्चाई नहीं है। इन्हीं लोगों ने अभी हाल में सुप्रीमकोर्ट के आदेश की ऐसी-तैसी करके हजारों लोगों की मानव दीवार बनाकर सबरीमला मंदिर में महिलाओं को घुसन से रोका और सुप्रीम कोर्ट के आदेश की ऐसी की तैसी कर दी। इन्हीं लोगों ने यथास्थिति बनाए रखने के सुप्रीमकोर्ट के आदेश का खुलेआम उल्लंघन करके बाबरी मस्जिद तोड़ा था। इनको किसी कोर्ट के आदेश से कोई लेना-देना नहीं होता। अभी हाल में इन्होंने कानून की ऐसी की तैसी करके सावरकर की मूर्ति दिल्ली विश्वविद्यालय में लगा दी।
प्रश्न यह है कि आखिर संघ-भाजपा और उनके अन्य संगठन संत रैदास को हिंदू या अपना नायक क्यों नहीं मानते?
इसका पहला कारण तो यह है कि संघ-भाजपा और उसके अन्य संगठन ब्राह्मणों या अधिक से अधिक द्विजों को ही अपना नायक मानते है। हां केवल ब्राह्मण या द्विज होने से काम नहीं चलेगा, उस व्यक्ति का ब्राह्मणवादी होना भी जरूरी है, जिसका मतलब है वर्ण-जाति व्यवस्था और महिलाओं पर पुरूषों के प्रभुत्व को स्वीकार करना और अन्य धर्मावलंबियों, खासकर मुसलमानों और ईसाईयों से घृणा करना। संघ-भाजपा के करीब सभी नायक ब्राह्मण हैं, जैसे सावरकर, श्याम प्रसाद मुखर्जी, गोलवरकर, दीनदयाल उपाध्याय आदि और वर्ण-जाति व्यवस्था एवं मनुस्मृति की प्रशंसा करते है और मुसलमानों को हिंदुओं का दुश्मन घोषित करते हैं।
दूसरे प्रश्न यह है संघ-भाजपा संत रैदास को क्यों हिंदू और अपना नायक नहीं मानते। पहला कारण तो यह है कि संत रैदास दलित हैं और दूसरा कारण यह है कि उन्होंने वेदों, ब्राह्मणों, वर्ण-जाति व्यवस्था और हिंदू धार्मिक पाखंडों और अन्य मूल्यों-विचारों की तीखी आलोचना की है। इसके साथ वे मुसलमानों के प्रति हिंदुओं को ललकारने के भी काम नहीं आ सकते। क्योंकि उन्होंने कबीर की तरह ही हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रेम और भाईचारे की बात की है और दोनों के पोंगापंथ को खारिज किया है।
कभी भी हिंदू धर्म ने आज के अन्य पिछड़ों ( शूद्रों ), दलितों ( अतिशूद्रों ) और महिलाओं को हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं माना, न वे आज मानते हैं। यहां तक कि इनसे इंसान होने का दर्जा भी छीन लिया। इतना ही नहीं उनके भगवान भी इन्हें कभी अपना नहीं माने। हां यह सच है कि दलित-बहुजन और महिलाएं अपनी मानसिक गुलामी के चलते अपने को हिंदू मानते रहे और अधिकांश आज भी मानते हैं।
यही पूरे भारतीय समाज पर मुट्टठीभर द्विजों के वर्चस्व का आधार है।
वे रैदास को अपना नहीं मानते, लेकिन हम उनके राम को अपना मानकर बाबरी मस्जिद तोड़ने और रामंदिर बनाने के लिए सबकुछ न्यौछावर करने को तैयार हो जाते है। यही उनके वर्चस्व का आधार है। जिसे तोड़ने के लिए जोतिराव फुले, डॉ. आंबेडकर, पेरियार, पेरियार ललई सिंह यादव, रामस्वररूप वर्मा और स्वामी अछूतानंद ने अपना जीवन लगा दिया। लेकन अफसोस की आज भी दलित-बहुजनों का बड़ा हिस्सा संघ-भाजपा और द्विजों की पालकी ढ़ोने के लिए तैयार है। यही है ब्राह्मणवादी मानसिक गुलामी।
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